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छठः सूर्योपासना की भारतीय संस्कृति और विश्व परंपरा

छठः सूर्योपासना की भारतीय संस्कृति और विश्व परंपरा

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- डॉ. जंग बहादुर पाण्डेय सृष्टि के सभी प्राणियों में मनुष्य सर्वाधिक चिंतनशील एवं क्रियाशील प्राणी है। इसकी तीव्र बुद्धि ने इसे विकास की सीढ़ियां प्रदान की, लेकिन यह मानना होगा कि अभी भी विज्ञान ने हमारे भीतर की कोमल भावनाओं को ध्वस्त नहीं किया है। हम सुख में मुस्कुराते हैं और दुख में आठ आठ आंसू बहाते हैं। इन्हीं सुख-दुखों की भावाभिव्यक्ति से पर्व त्योहारों का श्रीगणेश हुआ है। भारत धर्म प्रधान देश है। आध्यात्म के प्रति महर्षियों की वाणी में धर्म की कीर्ति लहराती थी, नैतिकता का संदेश गूंजता था। हमारा दृष्टिकोण मुख्य रूप से राजनैतिक, आर्थिक अथवा भौतिक न होकर धार्मिक नैतिकतावादी और आध्यात्मिक था। धर्म की दृष्टि से अपने महान उपलब्धियों के दिनों को हमने पर्व त्यौहार की संज्ञा दी है। सभ्यता के विकास के चरण में उन क्षणों का महत्वपूर्ण योग है। भारतीय संस्कृति में सूर्योपासना की प्राचीन परंपरा रह...
भारतीय त्योहार देते हैं अर्थव्यवस्था को गति

भारतीय त्योहार देते हैं अर्थव्यवस्था को गति

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- प्रहलाद सबनानी भारतीय संस्कृति में त्योहारों का विशेष महत्व है। भारतीय नागरिक इन त्योहारों को श्रद्धा एवं उत्साह के साथ मनाते है। गणेश चतुर्थी, नवरात्रि, दशहरा, दीपावली, होली, ओणम, रामनवमी, महाशिवरात्रि, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी आदि त्योहारों को देश में सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में गिना जाता है। कुछ त्योहारों, जैसे दीपावली, के तो एक दो माह पूर्व ही सभी परिवारों द्वारा इसे मनाने की तैयारियां प्रारम्भ कर दी जाती हैं। यह त्योहार अक्सर भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बहुत बड़ी खुशखबरी लाते हैं, क्योंकि देश के सभी नागरिक मिलकर इन त्योहारों के शुभ अवसर पर वस्तुओं की खूब खरीदारी करते हैं जिसके कारण देश की अर्थव्यवस्था को बल मिलता है। इन त्योहारों के दौरान देश में एक से लेकर दो लाख करोड़ रुपये के बीच खुदरा व्यापार होता है जो पूरे वर्ष के दौरान होने वाले खुदरा व्यापार का एक बहुत बढ़ा हिस्सा रहता है। ...

प्राकृतिक संसाधनों का संवर्धन

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- डॉ. दिलीप अग्निहोत्री भारतीय संस्कृति में प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार का उपभोगवादी विचार नहीं है। इसके विपरीत प्रकृति के प्रति सम्मान को महत्व दिया गया। इसके अंतर्गत उसके संरक्षण और संवर्धन का भाव समाहित है। ऐसा होने पर प्रकृति स्वयं मानव के लिए कल्याणकारी होगी। तब उस पर अधिकार जमाने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी। तब किसी को यह बताने की जरूरत नहीं रहेगी कि प्राकृतिक संसाधनों पर पहला अधिकार किसका है। यह अधिकार का नहीं कर्तव्य का विषय है। प्रतिस्पर्धा अधिकार के लिए नहीं, कर्तव्य के लिए होनी चाहिए। तब किसी के लिए प्राकृतिक संसाधनों की कोई कमी नहीं रहेगी। भारतीय चिंतन के इस विचार को योगी आदित्यनाथ ने समझा। इसीलिए उन्होंने पांच वर्षों के दौरान प्राकृतिक संरक्षण और संवर्धन संबन्धी अभूतपूर्व कार्य किए हैं। पिछले कार्यकाल के दौरान प्रदेश में सौ करोड़ पौधों का रोपण कर कीर्तिमान बनाया गया। दूसरे कार...