Friday, September 20"खबर जो असर करे"

Tag: Indian culture

भारतीय संस्कृति में जन्माष्टमी का महत्व

भारतीय संस्कृति में जन्माष्टमी का महत्व

अवर्गीकृत
- योगेश कुमार गोयल जन्माष्टमी का त्योहार भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में प्रतिवर्ष भाद्रपक्ष कृष्णाष्टमी को मनाया जाता है, जो इस वर्ष 26 अगस्त को मनाया जा रहा है। मान्यता है कि मथुरा के कारागार में वसुदेव की पत्नी देवकी ने कृष्ण को इसी दिन जन्म दिया था। भारतीय संस्कृति में जन्माष्टमी पर्व का इतना महत्व क्यों है, यह जानने के लिए भगवान श्रीकृष्ण के जीवन दर्शन और उनकी अलौकिक लीलाओं को समझना अनिवार्य है। बाल्याकाल से लेकर बड़े होने तक श्रीकृष्ण की अनेक लीलाएं विख्यात हैं। उन्होंने अपने बड़े भाई बलराम का घमंड तोड़ने के लिए हनुमान जी का आह्वान किया था, जिसके बाद हनुमान जी ने बलराम की वाटिका में जाकर बलराम से युद्ध किया और उनका घमंड चूर-चूर कर दिया था। श्रीकृष्ण ने नररकासुर नामक असुर के बंदीगृह से 16100 बंदी महिलाओं को मुक्त कराया था, जिन्हें समाज द्वारा बहिष्कृत कर दिए जाने पर उन महिलाओं न...
भारतीय संस्कृति और मर्यादा का अंतस

भारतीय संस्कृति और मर्यादा का अंतस

अवर्गीकृत
- हृदयनारायण दीक्षित प्रत्यक्ष पर्यावरण प्रकृति की संरचना है। भारत के प्राचीनकाल में भी प्राकृतिक पर्यावरण की उपस्थिति मनमोहक थी। प्रकृति को देखते, उसके विषय में सोचते और सुनते मनुष्य ने भी सृजन कर्म में जाने अनजाने भागीदारी की। आज का भारत हमारे पूर्वजों, अग्रजों के सचेत कर्मों का परिणाम है। मनुष्य द्वारा किए गए सुंदर सत्कर्म संस्कृति हैं। प्रकृति स्वाभाविक है। लेकिन संस्कृति मनुष्य की रचना है। संक्षेप में विश्व के प्रत्येक जीव की लोकमंगल कामना और उसके लिए किए गए कर्म संस्कृति है। संस्कृति किसी एक व्यक्ति या समूह के कर्मफल का परिणाम नहीं होती। भारतीय संस्कृति के विकास में विज्ञान और दर्शन की महत्ता है। कोई अंधविश्वास नहीं। रूप, रस, गंध, शब्द और स्पर्श प्रत्यक्ष इंद्रिय बोध के हिस्से हैं। पूर्वजों की 'मंगल भवन अमंगल हारी'' कर्मठ चेतना से संस्कृति का विकास हुआ। सारांशतः भारत के बुद्धि ...
संस्कृत का उत्थान, राष्ट्र और भारतीय संस्कृति का उत्थानः शिवराज

संस्कृत का उत्थान, राष्ट्र और भारतीय संस्कृति का उत्थानः शिवराज

देश, मध्य प्रदेश
- मुख्यमंत्री ने संस्कृत विद्यालयों के लिए सिंगल क्लिक से अंतरित की 2.30 करोड़ रुपये की राशि भोपाल (Bhopal)। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Chief Minister Shivraj Singh Chouhan) ने कहा कि संस्कृत (sanskrit) का उत्थान राष्ट्र और भारतीय संस्कृति (Indian culture) का उत्थान है। इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि जो उत्थान संस्कृत का होना था, वह बाहरी लोगों के शासन के कारण देश में नहीं हो सका। संस्कृत का अनादर हुआ। हमारी संस्कृति जो वसुधैव कुटुम्बकम (The whole world is a family) और सर्व कल्याण की बात कहती है, संस्कृत के श्लोकों में अभिव्यक्त हुई है। अब देश में सांस्कृतिक उत्थान के स्वर्ण युग का आरंभ हुआ है और हम माँ संस्कृत की सेवा कर पा रहे हैं। मुख्यमंत्री चौहान सोमवार शाम को मुख्यमंत्री निवास स्थित समत्व भवन के सभा कक्ष से महर्षि पतंजलि संस्कृत संस्थान से संबद्ध प्राच्य गुरूकुलों के लिए आर्थिक सह...
भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों के रक्षक थे संत रविदास: मुख्यमंत्री शिवराज

भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों के रक्षक थे संत रविदास: मुख्यमंत्री शिवराज

देश, मध्य प्रदेश
- प्रधानमंत्री 12 अगस्त को सागर में संत रविदास के भव्य मंदिर और स्मारक का शिलान्यास करेंगे भोपाल (Bhopal)। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Chief Minister Shivraj Singh Chouhan) ने संत शिरोमणि रविदास (Saint Shiromani Ravidas) को समरसता का अग्रदूत बताते हुए कहा कि वे भारतीय संस्कृति (Indian culture) और जीवन मूल्यों के रक्षक (protector of life) थे। उनकी वाणी आज भी प्रासंगिक है। उनकी शिक्षा, व्यक्तित्व, कृतित्व और योगदान को चिरस्थायी बनाने और भावी पीढ़ियों को परिचित कराने के लिये सागर में एक भव्य मंदिर और विशाल स्मारक (grand temple and grand monument) बनाने का फैसला लिया गया है। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि मंदिर का भूमिपूजन करने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 12 अगस्त को सागर पधार रहे हैं। वे बड़तुमा (सागर) में 100 करोड़ रुपये की लागत से संत शिरोमणि रविदास के भव्य मंदिर एवं विशाल स्...
राम भारतीय संस्कृति के वैश्विक प्रतीक

राम भारतीय संस्कृति के वैश्विक प्रतीक

अवर्गीकृत
- हृदयनारायण दीक्षित सत्य, शिव और सुन्दर भारतीय संस्कृति के मूल तत्व हैं। भारतीय राष्ट्र का उद्भव सांस्कृतिक भाव भूमि में ही हुआ था। प्रकृति के प्रति आत्मीय भाव इस संस्कृति की विशेषता है। भारतीय संस्कृति उदात्त है। इस विशाल देश में यहां अनेक भाषाएं और अनेक बोलियां हैं। अनेक भाषाओं और बोलियों के बावजूद यहां सांस्कृतिक एकता है। सभ्यता राष्ट्र की देह है। संस्कृति प्राण है। यह कला, गीत, संगीत, स्थापत्य आदि अनेक रूपों में व्यक्त होती है। सबसे खास बात है भारतीय संस्कृति में विश्व एक परिवार है। 'वसुधैव कुटुंबकम' के सूत्र में समूचा विश्व परिवार जाना गया है। स्वाधीनता संग्राम सांस्कृतिक नवजागरण था। यूरोप के पुनर्जागरण से भिन्न था। ऋग्वेद में सभी दिशाओं से ज्ञान प्राप्ति की स्तुति है। काव्य साहित्य और स्थापत्य संस्कृति की अभिव्यक्ति रहे हैं। सभी भारतीय भाषाओं में राष्ट्र का सांस्कृतिक प्रवाह प्रकट...
अहिल्याबाई होल्कर: भारतीय संस्कृति और मूर्तिमान वीरता की प्रतीक

अहिल्याबाई होल्कर: भारतीय संस्कृति और मूर्तिमान वीरता की प्रतीक

अवर्गीकृत
- मृत्युंजय दीक्षित राष्ट्र और धर्म के लिए समर्पित, भारतीय संस्कृति और मूर्तिमान वीरता की प्रतीक महारानी अहिल्याबाई होल्कर सशक्त भारतीय नारी का पर्याय हैं । रानी अहिल्याबाई होल्कर का जन्म महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के चौंढ़ी नामक गांव में एक साधारण किसान माणिकोजी शिंदे के घर 31 मई, 1725 को हुआ था। उनकी माता का नाम सुशीला शिंदे था। उनके पिता शिवभक्त माणिकोजी किसान होने के साथ ही एक विचारवान व्यक्ति भी थे। उन्होंने अपनी पुत्री अहिल्याबाई को बचपन से ही शिक्षा देना प्रारम्भ कर दिया था। यह उस कालखंड की बात है जिसमें महिलाओं को शिक्षा नहीं दी जाती थी। अहिल्याबाई अध्ययनशील होने के साथ ही दयाभाव से कार्य करती थीं। पिता की शिव भक्ति का संस्कार भी उनके मन पर बहुत था। विवाह और पारिवारिक जीवन - एक बार राजा मल्हार राव होल्कर उनके गाँव से होकर जा रहे थे और उन्होंने मंदिर में आरती होते हुए देखा कि पुजार...
खेलो इंडिया : परंपरा को मिला पुनर्जीवन

खेलो इंडिया : परंपरा को मिला पुनर्जीवन

अवर्गीकृत
- प्रो. संजय द्विवेदी विराट भारतीय संस्कृति और परंपराओं में बचपन से ही पढ़ाई के साथ-साथ खेलों का भी एक विशेष महत्व रहा है। हमारा यह विश्वास रहा है कि जिस प्रकार अध्ययन मानसिक विकास में आवश्यक है, उसी तरह खेल शारीरिक विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हमारे जीवन में खेल और स्वास्थ्य का बहुत बड़ा योगदान है। खेल हमारे भीतर टीम भावना पैदा करते हैं। साथ ही इनसे हमारे अंदर, सही समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता, नेतृत्व कौशल, लक्ष्य निर्धारण और जोखिम लेने का आत्मविश्वास भी उत्पन्न होता है। शताब्दियों तक भारतीय ज्ञान, अध्ययन और अध्यापन परंपरा में खेलों को समान महत्व दिया गया, क्योंकि एक सुदृढ़ व्यक्तित्व का निर्माण तभी संभव है, जब उसमें एक ‘विचारशील मन’ और एक ‘सुगठित तन’, दोनों शामिल हों। हमारे प्राचीन गुरुकुलों में दी जाने वाली शिक्षा इसका प्रमाण है, जिसमें शास्त्रों-वेदों के अलावा विभिन...
भारतीय संस्कृति के आच्छादन में सभी अपने हैं

भारतीय संस्कृति के आच्छादन में सभी अपने हैं

अवर्गीकृत
- हृदयनारायण दीक्षित ऋतुराज बसंत मदन गंध बिखेर कर चलते बने। होली का रस रंग अभी ताजा है। अब भारतीय नवसम्वत्सर का उल्लास। यह रस गहरा है। देवी उपासना के नवरात्र उत्सवों की धूम है। भारत का मन उत्सवधर्मा हो गया है। कालरथ के घोड़ों की पगध्वनियां सुनाई पड़ रही हैं। काल पुरुष नृत्यमगन है। यह सबको नचाता है, स्वयं भी नाचता है। यह काल सबके भीतर है और बाहर से भी सबका आच्छादन करता है। ऋग्वेद में यह तीन धूरियों वाला है। पृथ्वी अंतरिक्ष और द्युलोक तीन नामियाँ हैं। अथर्ववेद के ऋषि भृगु से लेकर महाभारत के रचनाकार व्यास तक कालबोध और कालदर्शन की प्राचीन परम्परा है। काल के प्रभाव में वायु प्रवाह है। काल से ही आयु है। काल में जीवन और काल में मृत्यु। कालरथ किसी को नहीं छोड़ता। जीवन देता है, लहकाता है। जराजीर्ण करता है। जीवन का अवसान भी करता है। काल अखण्ड सत्ता है। भूत भविष्य और वर्तमान हम सबने अपनी मन तरंग में रच...
छठ पूजा और भारतीय संस्कृति

छठ पूजा और भारतीय संस्कृति

अवर्गीकृत
- श्याम जाजू "भारत कोई भूमि का टुकड़ा नहीं है, यह जीता जागता राष्ट्रपुरुष है। ये वंदन की धरती है, ये अभिनन्दन की भूमि है । ये अर्पण की भूमि है ये तर्पण की भूमि है। इसकी नदी-नदी हमारे लिए गंगा है, इसका कंकर-कंकर हमारे लिए शंकर है।"- यह पक्तियां परम श्रद्धेय स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी की हैं। यह मात्र पंक्ति नहीं अपितु भारत के प्रत्येक नागरिक के हृदय की अभिव्यक्ति है। सनातन संस्कृति का यह देश आदिकाल से राष्ट्र भूमि के लिए सर्वस्व न्योछावर कर देने वालों की भूमि रहा है। हमारी संस्कृति ने हमें इंसान के साथ जीव-जंतु, पेड़-पौधे, सूर्य-चंद्रमा, पृथ्वी और आकाश सभी की आराधना करना सिखाया है। हम पृथ्वी को मां मानते हैं और प्रकृति को माता पृथ्वी का श्रृंगार। इसी महान प्रकृति के उपासना का पर्व है महापर्व छठ। सूर्य उपासना एवं लोक आस्था के महापर्व छठ को हम सिर्फ त्योहार नहीं अपितु अपना संस्कार मानते है...