करवट लेता भारतीय सिनेमा
- मृत्युंजय दीक्षित
राजा हरिश्चंद्र से आज तक भारतीय सिनेमा ने न केवल तकनीकी विकास वरन कला और वैचारिक प्रधानता के भी कई दौर देखे हैं ।आज की पीढ़ी को एंग्री यंग मैन का समय स्मरण है जब सामाजिक समस्याओं से उकताए लोग सुनहरे पर्दे पर अमिताभ बच्चन को बीस-बीस गुंडों को मारने के काल्पनिक दृश्य देखकर तालियां बजाते अपनी कुंठा से बाहर निकलने का प्रयास करते थे। फिर खान बंधुओं की फिल्मों का समय प्रारम्भ हुआ और एंगर की जगह रोमांस ने ले ली। इन्हीं खान बंधुओं ने ग्रे शेड वाले हीरो को जन्म दिया और अपराध को महिमा मंडित करने लगे और लोग उनके लिए दीवाने होने लगे। इस सबके बीच सामानांतर सिनेमा भी चलता रहा । धीरे-धीरे दर्शकों में यह समझ उभरने लगी कि उनके साथ छल हो रहा है। उन्होंने अनुभव किया कि वामपंथी और तथाकथित सेक्युलर इस महत्वपूर्ण माध्यम का उपयोग वृहद हिंदू समाज और संस्कृति को अपमानित करने और युवा हिन्दू को अ...