मीडिया और समाज : दरकता विश्वास
- प्रो संजय द्विवेदी
पिछले दिनों देश के एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी दैनिक द्वारा आयोजित एक सम्मान समारोह में मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि यदि किसी देश को लोकतांत्रिक रहना है, तो प्रेस को स्वतंत्र रहना चाहिए। जब प्रेस को काम करने से रोका जाता है, तो लोकतंत्र की जीवंतता से समझौता होता है। मुख्य न्यायाधीश ऐसा कहने वाली पहली विभूति नहीं हैं। उनसे पहले भी कई बार कई प्रमुख हस्तियां प्रेस और मीडिया की स्वतंत्रता को लेकर मिलते-जुलते विचार सार्वजनिक रूप से अभिव्यक्त कर चुकी हैं। मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है, तो वह अकारण नहीं है। उसने समय-समय पर लोकतांत्रिक मूल्यों और सामाजिक हितों की रक्षा के लिए बहुत काम किया है और इसके लिए बड़ी कीमत भी चुकाई है। इसके बदले उसे समाज का, लोगों का भरपूर विश्वास और सम्मान भी हासिल हुआ है। दुर्भाग्य से बीते दो-तीन दशकों में यह विश्वास लगातार...