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‘कौओं’ के बगैर श्राद्ध पक्ष की परंपरा अधूरी

‘कौओं’ के बगैर श्राद्ध पक्ष की परंपरा अधूरी

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- डॉ. रमेश ठाकुर श्राद्ध पक्ष चल रहे हैं। इन दिनों गुजरे लोगों को याद करना और उनका मनपसंद भोजन बनाकर परोसने की परंपरा निभाई जाती है। मान्यताओं के मुताबिक स्वर्गीय तक यह भोजन कौओं द्वारा पहुंचाया जाता है। श्राद्ध में कौए परलोकी लोगों के वाहक बनते हैं। पर, कौए इन्हीं दिनों में दूर-दूर तक दिखाई नहीं पड़ते। श्राद्ध का भोजन लेकर लोग उनके आगमन का लंबा इंतजार करते रहते हैं लेकिन वो नहीं आते। हों तो ही आए न? हैं ही नहीं। जबकि श्राद्ध में भोजन उन्हीं को ध्यान में रख कर तैयार किया जाता है। जाहिर है जब कौए ही नहीं होंगे, तो श्राद्ध की मान्यताएं भला कैसी पूरी होगी? हमेशा से होता आया है कि श्राद्ध में पितरों का भोजन जब तक कौए न खाएं श्राद्ध की मान्यताएं पूरी नहीं होती। कौए आएंगे, खाना चुगेंगे और पितरों तक पहुंचाएंगे, लेकिन कौवे नहीं आते? ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी कहीं-कहीं दिख जाते हैं लेकिन शहरों से...
विभाजन विभीषिका : सपने सच होने बाकी हैं, रावी की शपथ अधूरी है

विभाजन विभीषिका : सपने सच होने बाकी हैं, रावी की शपथ अधूरी है

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- डॉ. मयंक चतुर्वेदी भारत का विभाजन हुआ यह सभी ने देखा। कहा जाता है कि नियति ही उस दिन की ऐसी थी, पहले से सब कुछ तय था । पटकथा लिखी जा चुकी थी, परिवर्तन की संभावना शून्य थी। लेकिन इतिहास तो ऐसे कई उदाहरणों से भरा पड़ा है, जब पूर्ण वेग विपरीत दिशा में था उसके बाद भी परिवर्तन संभव हो सके, जो कहीं वर्तमान में दिखाई नहीं देते थे। भारत विभाजन का एक सच यह भी है, यदि उस समय देश का अहिंसक आन्दोलन जिसमें कि सबसे अधिक जनसंख्या में लोगों का विश्वास रहा, उसका नेतृत्व कर रहे महात्मा गांधी अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की तरह निर्णय लेने की दृढ़ प्रतिज्ञा कर लेते तो देश का परिदृश्य ही कुछ ओर होता, क्योंकि यह स्वभाविक है कि जैसा नेतृत्व होता है, संगठन, सत्ता, शासन की धारा उसी अनुसार बही चली जाती है। दुनिया जानती है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अंग्रेजों का भारत छोड़कर जाना अपरिहार्य ...