Friday, September 20"खबर जो असर करे"

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`मैं’ से `हम’ की अंतर्यात्रा

अवर्गीकृत
- हृदय नारायण दीक्षित `मैं' से `हम' की अंतर्यात्रा आनंददायी है। `मैं' होना एकाकी है। एकाकी में उदासी है और विषाद है।`हम' सामूहिकता हैं और प्रसाद हैं । `मैं' होना दुखदायी है। ‘हम‘ होना विश्व का अंग होना है। ‘मैं‘ होना उल्लासहीनता है। ‘हम‘ होना उल्लासपूर्ण सांस्कृतिक अनुभूति है। ‘मैं‘ होना सिकुड़ना है और ‘हम‘ होना विस्तीर्णता है। आदिम काल में ‘मैं‘ भयभीत था। वह ‘मैं‘ से ‘हम‘ हुआ। सामूहिक हुआ। ‘हम‘ सामूहिकता है। फिर सामूहिक जीवन सामाजिक हुआ, सांस्कृतिक हुआ। मानव जाति में संवेदनशीलता बढ़ी। लोकजीवन व्यवस्थित हुआ। सोच विचार बढ़ा। तर्क प्रतितर्क हुए। वाद विवाद संवाद बढ़ा। दर्शन का विकास हुआ। जीवन नियमबद्ध हुआ। इसी का नाम धर्म हुआ। आधुनिक हिंदुत्व इसी परंपरा का अमृत प्रसाद है। मैं हूँ। यह हमारी अस्मिता है। मैं समुद्र की लहरों में उठती विलीन होती बूँद हूँ। बूँद इकाई है। इकाई लघुता है। लघुतम है। समुद्...