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जीवन में आरोग्य

जीवन में आरोग्य

अवर्गीकृत
- गिरीश्वर मिश्र ‘जीवेम शरद: शतम्’ ! भारत में स्वस्थ और सुखी सौ साल की जिंदगी की आकांक्षा के साथ सक्रिय जीवन का संकल्प लेने का विधान बड़ा पुराना है। पूरी सृष्टि में मनुष्य अपनी कल्पना शक्ति और बुद्धि बल से सभी प्राणियों में उत्कृष्ट है। वह इस जीवन और जीवन के परिवेश को रचने की भी क्षमता रखता है। साहित्य,कला, स्थापत्य और ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में उसकी विराट उपलब्धियों को देखकर कोई भी चकित हो जाता है। यह सब तभी सम्भव है जब जीवन हो और वह भी आरोग्यमय हो। परंतु लोग स्वास्थ्य पर तब तक ध्यान नहीं देते जब तक कोई कठिनाई न आ जाए। दूसरों से तुलना करने और अपनी बेलगाम होती जरूरतों और महत्वाकांक्षाओं के बदौलत तरह-तरह की चिंताए कष्ट, तनाव और अवसाद से ग्रस्त होना आज आम बात हो गई है। मुश्किलों के आगे घुटने टेक कई लोग तो जीवन से ही निराश हो बैठते हैं । कुछ लोग इतने निराश हो जाते हैं कि उन्हें कुछ सूझता ...