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कैसे रुकें रेल हादसे और पुलों के टूटने के मामले

कैसे रुकें रेल हादसे और पुलों के टूटने के मामले

अवर्गीकृत
- आर.के. सिन्हा पहले ओडिशा में हुई दर्दनाक रेल दुर्घटना और उसके बाद बिहार में एक पुल का टूटना। इन दोनों घटनाओं के कारण सारा देश उदास भी है और गुस्से में भी है। उदासी मासूमों के मारे जाने पर है और गुस्सा इसलिए है कि ये हादसे थम ही नहीं रहे। पिछली 2 जून को ओडिशा में 3 ट्रेनें आपस में भिड़ गईं। इनमें लगभग तीन सौ मासूम यात्री मारे गए और ना जाने कितने हजार घायल हो गए। यह दुर्घटना भारत में अब तक की सबसे घातक रेल दुर्घटनाओं में से एक है। ऐसा माना जाता था कि पहली ट्रेन पटरी से उतर गई थी और इसके कुछ डिब्बे पलट गए और विपरीत ट्रैक में गिर गए थे, जहां वे दूसरी ट्रेन से टकरा गए थे। हादसे में एक मालगाड़ी भी चपेट में आ गई। देखिए, यह तो कोई भी मानेगा कि दुनिया भर में हर क्षण कहीं न कहीं कोई न कोई हादसा हो ही रहा है। तेज रफ्तार की जिंदगी में यह अनहोनी भले हो मगर हो रही है, तो हो रही है। असल में 'जीरो एक्स...
नेताओं की बदजुबानी कैसे रुके?

नेताओं की बदजुबानी कैसे रुके?

अवर्गीकृत
- डॉ. वेदप्रताप वैदिक सर्वोच्च न्यायालय ने इस मुद्दे पर अपना फैसला सुनाया है कि कोई मंत्री यदि आपत्तिजनक बयान दे तो क्या उसके लिए उसकी सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है? यह मुद्दा इसलिए उठा था कि 2016 में आजम खान नामक उ.प्र. के मंत्री ने बलात्कार के एक मामले में काफी आपत्तिजनक बयान दे दिया था। सर्वोच्च न्यायालय के पांच जजों में से चार की राय थी कि हर मंत्री अपने बयान के लिए खुद जिम्मेदार है। उसके लिए उसकी सरकार को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इस राय से अलग हटकर न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्न का कहना था कि यदि उस मंत्री का बयान किसी सरकारी नीति के मामले में हो तो उसकी जिम्मेदारी सरकार पर डाली जानी चाहिए। शेष चारों जजों का कहना था कि संविधान कहता है कि देश में सबको अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। इस स्वतंत्रता का जो भी दुरुपयोग करेगा, उसे सजा मिलेगी। ऐसी स्थिति में अलग से कोई कानून थोपना तो अभिव्...