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चित्तौड़ की रानी पद्मावती का जौहर कैसे कोई भूल सकता है

चित्तौड़ की रानी पद्मावती का जौहर कैसे कोई भूल सकता है

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- रमेश शर्मा अपने स्वत्व और स्वाभिमान रक्षा के लिए क्षत्राणियों की अगुवाई में स्त्री-बच्चों द्वारा स्वयं को अग्नि में समर्पित कर देने का इतिहास केवल भारत में मिलता है। इनमें सबसे अधिक शौर्य और मार्मिक प्रसंग है चित्तौड़ की रानी पद्मावती के जौहर का। इसका उल्लेख प्रत्येक इतिहासकार ने किया है। इस इतिहास प्रसिद्ध जौहर पर सीरियल भी बने और फिल्में भी बनीं। राजस्थान की लोकगाथाओं में सर्वाधिक उल्लेख इसी जौहर का है। जौहर के विवरण भारत की अधिकांश रियासतों के इतिहास में मिलता है । जौहर की स्थिति तब बनती थी जब पराजय और समर्पण के अतिरिक्त सारे मार्ग बंद हो जाते थे । जौहर के सर्वाधिक प्रसंग राजस्थान के हैं। वहां कोई भी ऐसी रियासत नहीं जहां जौहर न हुआ हो । चित्तौड़ में सबसे पहला और सबसे बड़ा जौहर रानी पद्मावती का ही माना जाता है । रानी पद्मावती सिंहल द्वीप की राजकुमारी थीं। उनका मूल नाम पद्मिनी था जो व...
विशेष: हाशिये पर मजदूर, प्रगति कैसे हो भरपूर

विशेष: हाशिये पर मजदूर, प्रगति कैसे हो भरपूर

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- योगेश कुमार गोयल प्रतिवर्ष 01 मई को विश्व श्रमिक दिवस मनाया जाता है। इसे बहुत जगह ‘मई दिवस’ भी कहा जाता है। यह दिवस समाज के उस वर्ग के नाम है, जिसके कंधों पर सही मायनों में विश्व की उन्नति का दारोमदार है। इसमें कोई दो राय नहीं कि किसी भी राष्ट्र की आर्थिक प्रगति तथा राष्ट्रीय हितों की पूर्ति का प्रमुख भार इसी वर्ग के कंधों पर होता है। वर्तमान मशीनी युग में भी उनकी महत्ता कम नहीं है। श्रमिक दिवस और श्रम के महत्व को रेखांकित करते हुए फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट ने कहा था कि किसी व्यवसाय को ऐसे देश में जारी रहने का अधिकार नहीं है, जो अपने श्रमिकों से जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक मजदूरी से भी कम मजदूरी पर काम करवाता है। जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक मजदूरी से उनका आशय सम्मानपूर्वक जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक मजदूरी से था। इस दिवस पर यह जानना भी दिलचस्प है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर श्रमिक दिवस कब से और ...
कैसे भारत में निवेश का केंद्र बना यूपी

कैसे भारत में निवेश का केंद्र बना यूपी

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- आर.के. सिन्हा भगवान राम और कृष्ण की पवित्र जन्मस्थली के रूप में जाना जाने वाला उत्तर प्रदेश अपने बिलकुल नए अवतार में भारत और दुनिया के शीर्ष व्यापारिक घरानों को निवेश करने के लिए आकर्षित कर रहा है। हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा आयोजित ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट 2023 में मुकेश अंबानी से लेकर कुमार मंगलम बिड़ला, टाटा समूह के एन. चंद्रशेखर से लेकर ज्यूरिख एयरपोर्ट एशिया के सीईओ डेनियल बिचर समेत कॉर्पोरेट जगत की कई दिग्गज हस्तियां न केवल मौजूद रहीं बल्कि उन्होंने राज्य में कुल मिलाकर 33.50 लाख करोड़ की राशि के निवेश की घोषणा की। ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में निवेश प्रस्तावों के लागू होने से 92.50 लाख (9.25 मिलियन) रोजगार के अवसर पैदा होंगे। ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट-2023 में 33.50 लाख करोड़ रुपये के निवेश प्रस्तावों को प्राप्त करने वाली राज्य सरकार 17.3 लाख करोड़ रुपये के संशोधित लक्ष्य से ...
अमेरिका की हिंसामुक्ति कैसे हो?

अमेरिका की हिंसामुक्ति कैसे हो?

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- डॉ. वेदप्रताप वैदिक अमेरिका दुनिया का सबसे संपन्न और शक्तिशाली देश है लेकिन यह भी सच है कि वह सबसे बड़ा हिंसक देश भी है। जितनी हिंसा अमेरिका में होती है, दुनिया के किसी देश में नहीं होती। वैसे तो अमेरिका में ईसाई धर्म को माननेवालों की संख्या सबसे ज्यादा है लेकिन क्या वजह है कि ईसा की अहिंसा का वहां कोई खास प्रभाव दिखाई नहीं पड़ता। कैलिफोर्निया में तो हिंसा थम नहीं रही। लास एंजिलिस के एक कस्बे में एक बंदूकची के कहर ढाने के बाद हुई दूसरी घटना में भी कई लोग मारे गए। साठ हजार की आबादी वाले लास एंजिलिस के इस कस्बे में एशियाई मूल के लोग बहुतायत में हैं, खास तौर से चीन के लोग। वे चीनी नव वर्ष का उत्सव मना रहे थे और उसी समय एक बंदूकची ने 10 लोगों को मौत के घाट उतार दिया। कई लोग घायल भी हो गए। यह इस नए साल की पहली घटना नहीं है। ऐसी घटनाएं आए दिन अमेरिका में होती रहती हैं। पिछले साल बंदूक की गोलिय...
रूबी आसिफ को जला भी दोगे तब भी इस्लाम की मूर्ति पूजा को कैसे करोगे बंद ?

रूबी आसिफ को जला भी दोगे तब भी इस्लाम की मूर्ति पूजा को कैसे करोगे बंद ?

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- डॉ. मयंक चतुर्वेदी पंथ के स्तर पर इस्लाम को लेकर यही मान्यता है कि वह मूर्ति या चित्र पूजा को नहीं मानता। इसी धारणा को आधार मानकर सदियों से अनेक संस्कृतियों को नष्ट करने का सिलसिला जारी है, क्योंकि उनमें मूर्ति जीवन्त है, उसकी प्राण प्रतिष्ठा है और आदिकाल से ये सभी संस्कृतियां मूर्ति पूजा करती आ रही हैं। यही कारण है कि मजहबी उन्माद और इस्लाम के आक्रमण से आक्रान्त कई सभ्यताएं अब तक नष्ट हो चुकी हैं। किंतु कुछ सभ्यता एवं संस्कृतियों ने अपने संघर्ष को बनाए रखा है और वे सभी आज भी हमारे बीच जीवन्त हैं। कहना चाहिए कि इन्हीं जागृत संस्कृतियों में से एक हिन्दू या सनातन संस्कृति भी है। भारत में आई इस इस्लामिक आंधी के प्रभाव में अनेक स्थलों पर मतान्तरण भी देखा गया, फिर वह छल से, बल से अथवा प्रभाव से ही क्यों न हो ? परन्तु क्या ऐसे प्रभाव को पूर्ण समाप्त किया जा सका जो हिन्दू न रहते हुए भी पूर्वव...

विदेशी पर्यटक कैसे आएं भारत

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- आर.के. सिन्हा कोरोना का असर कम होते ही देश भर के एयरपोर्ट तथा रेलवे स्टेशनों पर पर्यटकों की भीड़ रहने लगी है। दो-ढाई सालों से घरों में दुबके हुए हिन्दुस्तानी अब बाहर निकल रहे हैं। वे फिर से पहली वाली जिंदगी को जीना चाहते हैं। बेशक, कोरोना ने आम इंसान की सोच को भी बदला है। अब बहुत से लोगों को लगने लगा है कि जीवन तो क्षणभंगुर है। इसलिए जितना जीवन है उसका उतना आनंद तो ले ही लिया जाए। निश्चित रूप से इस सोच के चलते लोग पर्यटन स्थलों पर जा रहे हैं। इससे कोरोना के कारण तबाह हो गया पर्यटन क्षेत्र फिर से खड़ा होने लगा है। इस उद्योग से जुड़े लाखों लोगों की फिर से कमाई चालू हो गई है। पर अब भी भारत में विदेशी पर्यटकों की आवक कायदे से चालू तो नहीं हुई है। कहना न होगा कि कोरोना के कारण विदेशी पर्यटकों ने भी भारत आना बंद ही कर दिया था। इंडिया टुरिज्म स्टटिस्टिक्स की तरफ से हाल में जारी आंकड़ों के अनु...

बेमौसम की भारी बरसात: फसलों को हुए नुकसान की कैसे हो भरपाई

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- डॉ. रमेश ठाकुर खेती किसानी अब तुक्का हो गई है, सही सलामत फसल कट जाए तो समझो बड़ी गनीमत है। वरना, कुदरत का प्रकोप उन्हें नहीं छोड़ता। बीते तीन वर्षों से लगातार बेमौसम बारिश ने किसानों की कमर तोड़ रखी है। जब फसल पक कर खेतों में खड़ी होती है तभी बारिश हो जाती है और उसे बर्बाद कर देती है। किसान चाहकर भी कुछ नहीं कर पाते। अन्नदाताओं को बेमौसम की बारिश ने एक बार फिर तबाह कर दिया। किसान खेतों में जाकर बर्बाद हुई फसलों को मायूसी भरी निगाहों से देख रहे हैं। तेज बौछारों ने हजारों-लाखों हेक्टेयर फसल चौपट कर दी। कई महीनों की मेहनत पर क्षण भर में पानी फिर गया। अपने खेतों में बेचारे असहाय खड़े होकर कुदरत के कहर से बर्बाद होती फसलें देखते रहे। किसानों के लिए उनकी फसलें नवजात शिशु समान होती हैं जिसे वह छह महीने अपनी औलाद की तरह पालता-पोसता है। जब यही फसल नुमा बच्चे उनकी आंखों के सामने ओझल हो जाएं, तो उनके ...

कैसे खुल जाते हैं फर्जी विश्वविद्यालय

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- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने पिछले सप्ताह देश के 21 फर्जी विश्वविद्यालयों की सूची जारी कर दायित्व की इतिश्री कर ली है। आयोग का लगभग हर साल ऐसी सूची जारी करता है। सवाल यह है कि युवा पीढ़ी के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने वाले यह विश्वविद्यालय कैसे खुल जाते हैं। आखिर ऐसा तंत्र क्यों नहीं विकसित किया जाता जो इनको पनपने ही न दे। होता यह है कि जब तक ऐसी सूची जारी होती है तब तक हजारों छात्र- छात्राओं का भविष्य दांव पर लग चुका होता है। मोटे अनुमान के अनुसार ही पिछले एक दशक में 90 हजार से अधिक विद्यार्थियों का भविष्य इन फर्जी संस्थाओं की भेंट चढ़ चुका है। कई बार तो ऐसा भी होता है कि डिग्री लेने के सालों बाद पता चलता है कि वह फर्जी या अमान्य है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की इस सूची में मजे की बात यह है कि सर्वाधिक फर्जी विश्वविद्यालय देश की राजधानी दिल्ली में हैं। सूची क...

कैसे हों देश के मास्टरजी

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- आर.के. सिन्हा शिक्षक दिवस पर सारा देश अपने शिक्षकों की ही चर्चा करेगा। यह साफ है कि बेहतर और समर्पित शिक्षकों के बिना हम राष्ट्र निर्माण सही ढंग से नहीं कर सकते। पर हमारे देश में एक बड़ी समस्या यह सामने आ रही है कि कम से कम स्कूली स्तर पर कोई बहुत मेधावी युवा शिक्षक नहीं बन रहे हैं। आप अपने अड़ोस-पड़ोस के किसी मेधावी लड़के या लड़की को शिक्षक बनता नहीं देखेंगे। ये ऐसा क्यों हो रहा है? इसी पर हमें गंभीरता से विचार करना होगा। हमें अपने मेधावी नौजवानों को भी शिक्षक बनने के लिए प्रेरित करना चाहिए। सच में वर्तमान में तो चिंताजनक स्थिति ही बनी हुई है। जिस भारत के राष्ट्रपिता भी शिक्षक रहे हों वहां के योग्य नौजवान मन से शिक्षक नहीं बन रहे हैं। वास्तव में यह विडंबना ही है। यह तथ्य कम लोगों को पता है कि महात्मा गांधी कुछ समय तक मास्टर जी भी रहे हैं। उनकी पाठशाला राजधानी की वाल्मिकी बस्ती में चलत...