श्रीकृष्ण जन्माष्टमी: समग्र का सनातन सौंदर्य
- गिरीश्वर मिश्र
श्रीकृष्ण जितने अलौकिक और विस्मयजनक रूप से विराट हैं वैसे ही सामान्य लोकजीवन में रचे-पगे सरलता और सहजता को स्वीकार करने में भी बेमिसाल हैं। ऐसी विस्तृत व्याप्ति वाला कोई दूसरा लोकनायक दूर-दूर तक नहीं दिखता । उनकी विलक्षण लीलाएं लघु और महान की आंख-मिचौली करती हैं । जन्म से लेकर बाल्यावस्था, कैशोर्य, युवावस्था, प्रौढ़ावस्था, वृद्धावस्था से होते हुए लीला-संवरण तक का समग्र कृष्ण-चरित अपने भीतर अनगिन कौतूहलों को सहेजे हुए है। इसके बारे में यही कहा जा सकता है कि यह मोहक रूप परिपूर्णता की कसौटी है।
कृष्णचरित में बहुत कुछ ऐसा भी दिखता है जो ऊपर से परस्परविरुद्ध और उटपटांग लगता हो पर पूर्णावतार कृष्ण उन सभी अन्तर्विरोधों के बीच वे अच्युत खड़े रहते हैं। वे तरह-तरह की मर्यादाओं का निर्वाह करते हैं, अहितकर होने पर उन्हें तोड़ते भी हैं और फिर पहले से बड़ी नई मर्यादा भी खड़ी करते हैं।...