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Tag: History

ढाई हजार साल में 24 विभाजन हुए भारत के

ढाई हजार साल में 24 विभाजन हुए भारत के

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- रमेश शर्मा संसार में भारत अकेला ऐसा देश है जिसका इतिहास यदि सर्वोच्च गौरव से भरा है तो सर्वाधिक दर्द से भी। यह गौरव है पूरे संसार को शब्द, गणना और ज्ञान विज्ञान से अवगत कराने का ।... और दर्द है निरंतर आक्रमणों और अपनी धरती के हुये विभाजन का। बीते ढाई हजार वर्षों में 24 और 1873 से 1947 के बीच केवल सत्तर सालों में सात विभाजन हुए। अंतिम विभाजन करोड़ों लोगों के बेघर होने और लाखों निर्दोष नागरिकों की निर्मम हत्या के साथ हुआ। आज स्वतंत्र भारत का जो स्वरूप और सीमा हम देख रहे हैं उसका भूगोल अतीत के गौरव का 10 प्रतिशत भी नहीं है । वैदिक संस्कृति से आलोकित इस भू-भाग का नाम कभी जंबूद्वीप था । इसका स्मरण आज भी पूजन संकल्प में होता है "जंबूद्वीपे भरत खंडे आर्यावर्ते.. " पर यह अब केवल इतिहास की पुस्तकों तक ही सिमिट गया । समय के साथ भारत कभी आर्यावर्त है तो कभी भारतवर्ष भी रहा । हिमालय इसके मध्य में...
मूर्ख दिवस का है दिलचस्प इतिहास

मूर्ख दिवस का है दिलचस्प इतिहास

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- योगेश कुमार गोयल ‘मूर्ख दिवस’ मनाने की परम्परा कब, कैसे और कहां प्रचलित हुई, इस बारे में दावे के साथ तो कुछ नहीं कहा जा सकता पर माना यही जाता है कि इस परम्परा की शुरूआत फ्रांस में 16वीं सदी के उत्तरार्द्ध में हुई थी। माना जाता है कि एक अप्रैल 1564 को फ्रांस के राजा ने मनोरंजक बातों के जरिये एक-दूसरे के बीच मैत्री और प्रेम भाव की स्थापना के लिए एक सभा का आयोजन कराया था। उसके बाद निर्णय लिया गया कि अब से हर वर्ष इसी दिन ऐसी ही सभा का आयोजन होगा, जिसमें सर्वाधिक मूर्खतापूर्ण हरकतें करने वाले व्यक्ति को ‘मास्टर ऑफ फूल’ की उपाधि से सम्मानित किया जाएगा। इस सभा में शिरकत करने वाले व्यक्ति अनोखी और विचित्र वेशभूषाएं धारण करके अपनी अजीबोगरीब हरकतों से उपस्थित जनसमूह का मनोरंजन किया करते थे और सर्वाधिक मूर्खतापूर्ण हरकत करने वाले व्यक्ति को ‘मूर्खों का अध्यक्ष’ चुना जाता था, जिसे ‘बिशप ऑफ फूल्स...
Australian Open: भारतीय टेनिस खिलाड़ियों ने इतिहास में दर्ज कराया है अपना नाम

Australian Open: भारतीय टेनिस खिलाड़ियों ने इतिहास में दर्ज कराया है अपना नाम

खेल
नई दिल्ली (New Delhi)। ऑस्ट्रेलियन ओपन (Australian Open) में भारतीय खिलाड़ियों का सबसे शानदार प्रदर्शन (best performance of Indian players) देखने को मिला है। दृढ़ संकल्प, लचीलेपन और धैर्य के माध्यम से, भारतीय टेनिस खिलाड़ियों (Indian tennis players) ने इस प्रतिष्ठित ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट (Grand Slam Tournament.) में इतिहास की किताबों में अपना नाम दर्ज कराया है। 2016 ऑस्ट्रेलियन ओपन में सानिया मिर्जा का ऐतिहासिक प्रदर्शन 2016 ऑस्ट्रेलियन ओपन को भारतीय टेनिस इतिहास में एक निर्णायक क्षण के रूप में याद किया जाएगा क्योंकि सानिया मिर्जा ने अपनी युगल जोड़ीदार मार्टिना हिंगिस ने फाइनल में चेकिया जोड़ी एंड्रिया ह्लावाकोवा और लूसी हराडेका [(7-6 (1), 6-3)] को हराकर प्रतिष्ठित खिताब जीता था। इस जीत के साथ ही सानिया मिर्जा ऑस्ट्रेलियन ओपन के महिला युगल वर्ग में ग्रैंड स्लैम खिताब हासिल करने वाली ...
आपातकाल और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

आपातकाल और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

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- डॉ. सौरभ मालवीय आपातकाल को स्वतंत्र भारत के इतिहास का सबसे विवादास्पद एवं अलोकतांत्रिक काल कहा जाता है। आपातकाल को 48 वर्ष बीत चुके हैं, परन्तु हर वर्ष जून मास आते ही इसका स्मरण ताजा हो जाता है। इसके साथ ही आपातकाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका भी स्मरण हो जाती है। संघ ने आपातकाल का कड़ा विरोध किया था। संघ के हजारों कार्यकर्ता जेल गए थे एवं बहुत से कार्यकर्ताओं ने बलिदान दिया था। उल्लेखनीय है कि 12 जून 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया था कि इंदिरा गांधी ने वर्ष 1971 के लोकसभा चुनाव में अनुचित तरीके अपनाए। न्यायालय ने उन्हें दोषी ठहराते हुए उनका चुनाव रद्द कर दिया था। इंदिरा गांधी के चुनाव क्षेत्र रायबरेली से उनके प्रतिद्वंद्वी राज नारायण थे। यद्यपि चुनाव परिणाम में इंदिरा गांधी को विजयी घोषित किया गया था। किन्तु इस चुनाव में पराजित हुए राज नारायण चुनावी प्रक्रिया ...
राहुल गांधी कभी पढ़ भी लेते मुस्लिम लीग का इतिहास

राहुल गांधी कभी पढ़ भी लेते मुस्लिम लीग का इतिहास

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- आर.के. सिन्हा राहुल गांधी ने मुस्लिम लीग को सेक्युलर पार्टी होने का प्रमाणपत्र देकर एक बार फिर साबित कर दिया कि उनकी इतिहास की समझ एक स्कूली बच्चे से भी कमजोर है। जाहिर है कि अमेरिका यात्रा पर गये राहुल गांधी के बयान पर हंगामा खड़ा हो गया है। अब सभी कांग्रेसी राहुल गांधी का बचाव करने में भी लगे हैं। यह भारत में ही संभव है कि मोहम्मद अली जिन्ना की जिस ऑल इंडिया मुस्लिम लीग ने भारत को तोड़ा था, उससे मिलते-जुलते नाम से इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) भारत विभाजन के कुछ माह बाद ही एक राजनीतिक पार्टी के रूप में सामने आई। इसका गठन 10 मार्च 1948 को हुआ। ये मुख्य रूप से केरल में ही सक्रिय रही है। कभी-कभी तमिलनाडु में भी चुनाव लड़ती रही है। क्या भारतीय कांग्रेस या भारतीय समाजवादी पार्टी के नाम से कोई पार्टी पाकिस्तान में बन सकती थी? ऐसी ही एक गलती भारतीय जनता पार्टी के महा शक्तिशाली नेता औ...
इतिहासबोध राष्ट्रबोध का आधार

इतिहासबोध राष्ट्रबोध का आधार

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- हृदयनारायण दीक्षित राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) द्वारा दसवीं, ग्यारहवीं व बारहवीं की पुस्तकों में कतिपय संशोधन किए गए हैं। इन पुस्तकों में बच्चों के लिए ज्ञानवर्धक पाठ्यक्रम बनाए जाते हैं। विषय विशेषज्ञों की समिति विचार करती है। अन्य विषय की पुस्तकों में भी संशोधन हुए हैं। लेकिन इतिहास की पुस्तकों में हुए कतिपय संशोधनों को लेकर बहस चल रही है। अध्ययन की दृष्टि से इतिहास, संस्कृति और दर्शन महत्वपूर्ण विषय माने जाते हैं। इतिहासबोध राष्ट्रबोध का आधार है। भारत में इतिहास संकलन की विशेष परंपरा रही है। यूरोपीय तर्ज के इतिहास में राजाओं और सामंतों के संघर्षों का वर्णन ज्यादा होता है। भारतीय इतिहास में संस्कृति का विवरण महत्वपूर्ण होता है। इतिहास सर्वोच्च मार्गदर्शी होता है। सृष्टि के उदय से लेकर अब तक का विवरण इतिहास है। इतिहास का अर्थ है-ऐसा ही हुआ था। भारतीय जीवन...
पहले जमीयत के महमूद इतिहास तो पढ़ लेते!

पहले जमीयत के महमूद इतिहास तो पढ़ लेते!

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- डॉ. मयंक चतुर्वेदी जमीयत उलेमा-ए-हिंद प्रमुख महमूद मदनी का यह कहना, 'इस्लाम एक ऐसा धर्म है जो बाहर से आया है, सरासर गलत और निराधार है। इस्लाम सभी धर्मों में सबसे पुराना धर्म है। इस्लाम भारत का ही मजहब है और सारे मजाहिद और सारे धर्मों में सबसे पुराना मजहब है। इस्लाम के आखिरी इसी दिन को मुकम्मल करने के लिए तशरीफ लाए थे।' बहुत आश्चर्य है ! एक नैरेटिव गढ़ने के लिए वे झूठ भी बोलते हैं तो इतनी सफाई से। जिस खुदा और उनके शब्दों में पैगंबर हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम(प्रोफेट मोहम्मद) का वे जो हवाल देते हैं, कम से कम अपनी नहीं तो अपने खुदा एवं अपने ईश्वर का तो बोलते वक्त ध्यान रख लेते? देखा जाए तो इस समय नैरेटिव गढ़ने का दौर चल पड़ा है। कभी-कभी लगता है कि 21वीं सदी विकास के लिए कम नैरेटिव के लिए जरूर अधिक याद की जाएगी । आखिर अब 'ईसाइयत' के बाद सार्वजनिक मंच से 'इस्लाम' को भी झूठ के सह...
इतिहास में शोध का दायरा बढ़ाने की वकालत के मायने

इतिहास में शोध का दायरा बढ़ाने की वकालत के मायने

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- कमलेश पांडेय क्या आपको पता है कि आधुनिक इतिहास में शोध का दायरा बढ़ाने की वकालत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी क्यों कर रहे हैं? जवाब होगा, शायद इसलिए कि साम्राज्यवादी ताकतों द्वारा रणनीतिक रूप से लिखवाए गए ऐतिहासिक कथ्यों और भ्रामक तथ्यों से जनमानस को मुक्ति मिले। देश शोधपूर्ण तथ्यों, लोकश्रुतियों में रचे-बसे कथ्यों से अवगत हो सकें। भारतीय राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक चेतना को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए यह बहुत जरूरी है। यह आज की सबसे बड़ी वैज्ञानिक और विषयगत जरूरत है। नेहरू स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय की वार्षिक आम बैठक में प्रधानमंत्री की टिप्पणी के कई मायने हैं। हालांकि, जब आप इस नजरिये से यानी मध्यकालीन भारतीय इतिहास और प्राचीन भारतीय इतिहास को भी शोधपरक दृष्टि से देखेंगे, जांचेंगे, परखेंगे और फिर लिखेंगे तो आम जनमानस में वह इतिहास दृष्टि विकसित होगी, जिससे वर्तमान ही नहीं बल्कि भविष्य को ...
उतार-चढ़ाव से भरा है नये साल का इतिहास

उतार-चढ़ाव से भरा है नये साल का इतिहास

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- रमेश शर्मा एक जनवरी से नया साल आरंभ हो रहा है। अब पूरी दुनिया वर्ष 2023 में प्रवेश करेगी। समय नापने की यह पद्धति ग्रेगोरियन कैलेण्डर के अनुसार है। पर यह ग्रेगोरियन कैलेण्डर पद्धति 2022 वर्ष पुरानी नहीं है। यह केवल 441 वर्ष पुरानी है और भारत में इसे लागू हुए केवल 270 वर्ष ही हुए हैं। दुनिया में काल गणना का इतिहास बहुत उतार-चढ़ाव से भरा है। संसार के विभिन्न देशों में पिछले सात हजार वर्ष में बीस से अधिक काल गणना कैलेण्डरों का इतिहास उपलब्ध है। वर्तमान ग्रेगेरियन कैलेण्डर जिसके अनुसार आज की दुनिया चल रही है, इसका आरंभ आज से केवल 441 वर्ष पहले 1582 ईस्वी सन् में हुआ था और अंग्रेजों ने भारत में इसे 270 वर्ष पहले 1753 में लागू किया था। पर तब भारत में इसका उपयोग केवल यूरोपीय समुदाय ही करता था। शेष भारत में कहीं विक्रम संवत और कहीं हिजरी सन् का प्रचलन था। आज भारत में भले अंग्रेजों द्वारा स्थाप...