Friday, November 22"खबर जो असर करे"

Tag: ‘Hindustan’

यह विभाजन तो नहीं था

यह विभाजन तो नहीं था

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- संजय तिवारी अंग्रेज शासकों ने 'एक भारत' के पूरब और पश्चिम में एक-एक रेखा खींच दी। कह दिया कि एक महादेश दो अलग-अलग देशों में बांट रहे हैं। यानी एक हिस्सा पूरब, एक हिस्सा पश्चिम और बीच में हिंदुस्तान। पूरब और पश्चिम वाले को नाम दिया पाकिस्तान और कहा कि यह मुसलमान भाइयों के लिए है। बीच वाला हिंदू, बौद्ध, सिख, जैन, ईसाई, यहूदी आदि के लिए छोड़ दिया। यह मोहम्मद अली जिन्ना को भी समझ में नहीं आया कि इतनी जल्दी यह कैसे मिल रहा है। उनकी खुद की सोच थी कि उनके जीते जी पाकिस्तान तो नहीं मिलने वाला। जिन्ना का सपना साकार हो गया और दोनों रेखाओं के भीतर एक-एक राष्ट्रपिता मिल गए। बंटवारे के बाद के पिता। पाकिस्तान के कायदे आजम और हिंदुस्तान के राष्ट्रपिता। यह कोई भी बुद्धिमान बड़ी गहराई से सोच सकता है कि एक महान और महादेश को बांटने के बाद कोई उसका पिता क्यों बन जाता है? कहीं दुनिया में और ऐसा हुआ तो नहीं ...
स्वातंत्र्यवीर सावरकर और हिन्दू, हिन्दी, हिन्दुस्तान

स्वातंत्र्यवीर सावरकर और हिन्दू, हिन्दी, हिन्दुस्तान

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- रमेश सर्राफ धमोरा स्वातंत्र्यवीर सावरकर (विनायक दामोदर सावरकर) की 28 मई को 140वीं जयंती है। वह सारी उम्र हिन्दू, हिन्दी और हिन्दुस्तान के लिए जिये। भारत के महान क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक, इतिहासकार, राष्ट्रवादी और प्रखर विचारक वीर सावरकर हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीतिक विचारधारा के उन्नयन के प्रथम शिखर पुरुष हैं। वकील, राजनीतिज्ञ, कवि, लेखक और नाटककार वीर सावरकर हिन्दुत्व के पुरोधा हैं। उनके राजनीतिक दर्शन में उपयोगितावाद, तर्कवाद, प्रत्यक्षवाद, मानवतावाद, सार्वभौमिकता, व्यावहारिकता और यथार्थवाद के तत्व हैं। वह सभी धर्मों के रूढ़िवादी विचारों के विरोधी थे। वीर सावरकर का जन्म 28 मई, 1883 को महाराष्ट्र में नासिक के भागुर गांव में मां राधाबाई तथा पिता दामोदर पन्त सावरकर के घर पर हुआ था। इनके दो भाई गणेश (बाबाराव) व नारायण दामोदर सावरकर तथा एक बहन नैनाबाई थीं। वीर सावरकर नौ ...

जपो निरन्तर एक ज़बान, हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान..

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- गौरव अवस्थी भारतेंदु युग के प्रमुख स्तंभ पंडित प्रताप नारायण मिश्र की अल्प आयु में पिता की मृत्यु के चलते औपचारिक पढ़ाई तो बहुत नहीं हो पाई लेकिन स्वाध्याय के बल पर वह पत्रकारिता और साहित्य के प्रकांड पंडित बने। परवर्ती साहित्यकारों और संपादकों में तो उनके प्रति सम्मान का भाव था ही पूर्ववर्ती साहित्यकार भी उनके पांडित्य से प्रभावित रहा करते थे। 24 सितंबर 1856 को जन्मे पंडित प्रताप नारायण मिश्र के जन्म स्थान को लेकर साहित्यकारों में कुछ मतभेद हैं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल और डॉ. सुरेश चंद्र शुक्ल ने उनके जन्म स्थान के रूप में कानपुर को मान्यता दी है। इनका मत है कि पंडित प्रताप नारायण के पिता पंडित संकटा प्रसाद मिश्र को परिवार पालन के लिए 14 वर्ष की अल्पायु में कानपुर आना पड़ा। इसलिए उनका (प्रताप नारायण) जन्म कानपुर में ही हुआ होगा लेकिन अपने संपादन में 'प्रताप नारायण मिश्र कवितावली' प्रकाश...

बदलाव की बयार में इंडिया से प्यारा है ‘हिन्दुस्थान’

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- राजीव खंडेलवाल देश में ही नहीं वरन विश्व में भारत के अभी तक के सर्वाधिक लोकप्रिय और किसी क्रिया-प्रतिक्रिया की चिंता किए बिना अनोखी शैली व कार्यपद्धति से कुछ असंभव (जैसे राम मंदिर का निर्माण, तीन तलाक, अनुच्छेद 370 की समाप्ति) से लगते ठोस कार्य करने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ कर न केवल स्वयं को ‘‘कर्तव्य बोध’’ का एहसास दिलाया, बल्कि सबको भी अपना कर्तव्य निभाने के लिए एक संदेश भी दिया। यह बात उनके भाषण से स्पष्ट रूप से झलकती भी है। अब तय आपको करना है कि '' मैं '' अपने कर्तव्य का पालन करने में सफल हूं अथवा विफल? प्रधानमंत्री ने ‘कर्तव्य पथ’ के नामकरण व ‘सेंट्रल विस्टा एवेन्यू’ के उद्घाटन कार्यक्रम में एक नहीं तीन महत्वपूर्ण संदेश दिए हैं। प्रथम, ब्रिटिश इंडिया के जमाने की गुलामी की प्रतीक राजपथ वर्ष 1955 के पूर्व किंग्स-वे नाम से जानी जाती थी। इसका न...