Friday, September 20"खबर जो असर करे"

Tag: Hindi

गूगल ने भी माना हिन्दी का लोहा

गूगल ने भी माना हिन्दी का लोहा

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- योगेश कुमार गोयल आधुनिकता की ओर तेजी से अग्रसर कुछ भारतीय आज भले ही अंग्रेजी बोलने में अपनी आन, बान और शान समझते हों किन्तु सच यही है कि हिन्दी ऐसी भाषा है, जो प्रत्येक भारतवासी को वैश्विक स्तर पर मान-सम्मान दिलाती है। सही मायनों में विश्व की प्राचीन, समृद्ध एवं सरल भाषा है भारत की राजभाषा हिन्दी, जो न केवल भारत में बल्कि अब दुनिया के अनेक देशों में बोली जाती है। वैश्विक स्तर पर हिन्दी की बढ़ती ताकत का सबसे बड़ा सकारात्मक पक्ष यही है कि आज विश्वभर में करोड़ों लोग हिन्दी बोलते हैं और दुनियाभर के सैकड़ों विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जाती है। दुनियाभर में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए वातावरण निर्मित करने तथा हिन्दी को अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में प्रस्तुत करने के उद्देश्य से पिछले कई वर्षों से 10 जनवरी को ‘विश्व हिन्दी दिवस’ मनाया जाता है। यह दिवस वास्तव में अंतरराष्ट्रीय स्तर ...
हिंदी दिवस: दुनिया में सबसे समृद्ध भाषा है हिन्दी

हिंदी दिवस: दुनिया में सबसे समृद्ध भाषा है हिन्दी

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- रमेश सर्राफ धमोरा भारत की स्वतंत्रता के बाद 14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी की खड़ी बोली ही भारत की राजभाषा होगी। इस महत्वपूर्ण निर्णय के बाद 1953 से सम्पूर्ण भारत में 14 सितम्बर प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाते लगा, जो हिंदी भाषा के महत्व को दर्शाता है। किसी भी देश की भाषा और संस्कृति उस देश में लोगों को लोगों से जोड़े रखने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से हिन्दी और देवनागरी के मानकीकरण की दिशा में अनेक क्षेत्रों में प्रयास हुये हैं। हिन्दी भारत की सम्पर्क भाषा भी है। अतः हम कह सकते है कि हिन्दी एक समृद्ध भाषा है। भारत की राष्ट्रीय एकता को बनाये रखने में हिन्दी भाषा का बहुत बड़ा योगदान है। एक भाषा के रूप में हिंदी न सिर्फ भारत की पहचान है। बल्कि यह हमारे जीवन मूल्यों, संस्कृति एवं संस्कारों की सच्ची परिचा...
हिंदी दिवस : हिंदी का बदलता राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य

हिंदी दिवस : हिंदी का बदलता राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य

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- गिरीश्वर मिश्र अनुमान किया जा रहा है कि इक्कीसवीं सदी में विश्व-पटल पर भारत और चीन देशों की मुख्य भूमिका हो सकती है। वे कई परिवर्तनों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करते हैं। संचार माध्यमों के तीव्र विस्तार के साथ कई अर्थों में ‘विश्व-व्यवस्था’ और ‘विश्व-गाँव’ जैसे जुमले वास्तविकता का आकार ले रहे हैं। व्यापार-वाणिज्य को बढ़ावा देने के लिए नए किस्म की जरूरतें पैदा हो रही हैं। अपने हितों को देखते हुए अनेक बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भारत के साथ व्यापार बढ़ा रही हैं। चूंकि उपभोक्ता या ग्राहक हिंदी क्षेत्र में अधिक हैं अतः अर्थतंत्र की संघटना में हिंदी की स्थिति अपेक्षाकृत मजबूत हुई है। इस बीच सूचना-प्रौद्योगिकी का भी अप्रत्याशित विस्तार हुआ है जिसने भाषा-व्यवहार, कार्य के परिवेश और कार्य पद्धति में एक अनिवार्य बदलाव आ रहा है। हिंदी भाषा की क्षमता को कई तरह से आँका जाता है। उसके बोलने वालों का बढ़ता ...
स्वातंत्र्यवीर सावरकर और हिन्दू, हिन्दी, हिन्दुस्तान

स्वातंत्र्यवीर सावरकर और हिन्दू, हिन्दी, हिन्दुस्तान

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- रमेश सर्राफ धमोरा स्वातंत्र्यवीर सावरकर (विनायक दामोदर सावरकर) की 28 मई को 140वीं जयंती है। वह सारी उम्र हिन्दू, हिन्दी और हिन्दुस्तान के लिए जिये। भारत के महान क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक, इतिहासकार, राष्ट्रवादी और प्रखर विचारक वीर सावरकर हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीतिक विचारधारा के उन्नयन के प्रथम शिखर पुरुष हैं। वकील, राजनीतिज्ञ, कवि, लेखक और नाटककार वीर सावरकर हिन्दुत्व के पुरोधा हैं। उनके राजनीतिक दर्शन में उपयोगितावाद, तर्कवाद, प्रत्यक्षवाद, मानवतावाद, सार्वभौमिकता, व्यावहारिकता और यथार्थवाद के तत्व हैं। वह सभी धर्मों के रूढ़िवादी विचारों के विरोधी थे। वीर सावरकर का जन्म 28 मई, 1883 को महाराष्ट्र में नासिक के भागुर गांव में मां राधाबाई तथा पिता दामोदर पन्त सावरकर के घर पर हुआ था। इनके दो भाई गणेश (बाबाराव) व नारायण दामोदर सावरकर तथा एक बहन नैनाबाई थीं। वीर सावरकर नौ ...
वैश्विक परिप्रेक्ष्य में हिंदी

वैश्विक परिप्रेक्ष्य में हिंदी

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- गिरीश्वर मिश्र अनुमान किया जा रहा है कि इक्कीसवीं सदी में विश्व पटल पर भारत और चीन देशों की मुख्य भूमिका हो सकती है। वे कई परिवर्तनों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करते हैं। संचार माध्यमों के तीव्र विस्तार के साथ कई अर्थों में ‘विश्व-व्यवस्था’ और ‘विश्व-गांव’ जैसे जुमले वास्तविकता का आकार ले रहे हैं। व्यापार–वाणिज्य को बढावा देने के लिए नए किस्म की जरूरतें पैदा हो रही हैं। अपने हितों को देखते हुए अनेक बहुराष्ट्रीय कंपिनियां भारत के साथ व्यापार बढ़ा रही हैं। चूंकि उपभोक्ता या ग्राहक हिंदी क्षेत्र में अधिक हैं अतः अर्थ तंत्र की संघटना में हिंदी की स्थिति अपेक्षाकृत मजबूत हुई है। इस बीच सूचना-प्रौद्योगिकी का भी अप्रत्याशित विस्तार हुआ है जिसने भाषा-व्यवहार , कार्य के परिवेश और कार्य पद्धति में एक अनिवार्य बदलाव आ रहा है। हिंदी भाषा की क्षमता को कई तरह से आंका जाता है। उसके बोलने वालों का बढ़ता...
विश्व हिंदी या अंग्रेजी की गुलामी?

विश्व हिंदी या अंग्रेजी की गुलामी?

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- डॉ. वेदप्रताप वैदिक फिजी में 15 फरवरी से 12 वां विश्व हिंदी सम्मेलन होने जा रहा है। यह सम्मेलन 1975 में नागपुर से शुरू हुआ था। उसके बाद यह दुनिया के कई देशों में आयोजित होता रहा है। जैसे मॉरीशस, त्रिनिदाद, सूरीनाम, अमेरिका, ब्रिटेन, भारत आदि। पिछले दो सम्मेलनों को छोड़कर बाकी सभी सम्मेलनों के निमंत्रण मुझे मिलते रहे हैं। मुझे 1975 के पहले सम्मेलन से ही लग रहा था कि यह सम्मेलन हिंदी के नाम पर करोड़ों रुपये फिजूल बहा देने की कोशिश से ज्यादा कुछ नहीं है। नागपुर सम्मेलन के दौरान मैंने ‘नवभारत टाइम्स’ में संपादकीय लिखा था, जिसका शीर्षक था, ‘‘हिंदी मेलाः आगे क्या?’’ 38 साल बीत गए लेकिन जो सवाल मैंने उस समय उठाए थे, वे आज भी ज्यों के त्यों जीवित हैं। तत्कालीन दो प्रधानमंत्रियों के आग्रह पर मैंने मोरीशस और सूरीनाम के सम्मेलनों में भाग लिया। वहां दो-तीन सत्रों की अध्यक्षता भी की और दो-टूक भाषण भी...
विश्व हिन्दी दिवस:  हिन्दी का प्रसार बढ़ाने की दरकार

विश्व हिन्दी दिवस: हिन्दी का प्रसार बढ़ाने की दरकार

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- योगेश कुमार गोयल आधुनिकता की ओर तेजी से अग्रसर कुछ भारतीय ही भले ही अंग्रेजी बोलने में अपनी आन, बान और शान समझते हों किन्तु सच यही है कि हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी ऐसी भाषा है, जो प्रत्येक भारतवासी को वैश्विक स्तर पर मान-सम्मान दिलाती है। सही मायनों में विश्व की प्राचीन, समृद्ध एवं सरल भाषा है भारत की राजभाषा हिन्दी, जो न केवल भारत में बल्कि अब दुनिया के अनेक देशों में भी बोली और पढ़ी जाती है। वैश्विक स्तर पर हिन्दी की बढ़ती ताकत का सबसे बड़ा सकारात्मक पक्ष यही है कि आज विश्वभर में करोड़ों लोग हिन्दी बोलते हैं और दुनियाभर के सैंकड़ों विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जाती है। दुनियाभर में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए वातावरण निर्मित करने तथा हिन्दी को अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में प्रस्तुत करने के उद्देश्य से पिछले कई वर्षों से 10 जनवरी को ‘विश्व हिन्दी दिवस’ भी मनाया जाता है। यह दिवस वास्तव म...
मप्र के बाद उप्र की हिंदी में ऐतिहासिक पहल

मप्र के बाद उप्र की हिंदी में ऐतिहासिक पहल

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- डॉ. सौरभ मालवीय मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार ने हिंदी भाषा में चिकित्सा की पढ़ाई प्रारम्भ करके शिक्षा के क्षेत्र में इतिहास रच दिया है। इस पहल के लिए मुख्यमंत्री शिवराज चौहान की सरहाना की जानी चाहिए। भारत एक विशाल देश है। यहां के विभिन्न राज्यों की अपनी क्षेत्रीय भाषाएं हैं। स्वतंत्रता के पश्चात से ही मातृभाषा को प्रोत्साहित करने की बातें चर्चा में रही हैं, परंतु इनके विकास के लिए कोई ठोस उपाय नहीं किए गए। इसके कारण प्रत्येक क्षेत्र में विदेशी भाषा अंग्रेजी का वर्चस्व स्थापित हो गया। अब भारतीय जनता पार्टी की सरकारों ने देश इस दिशा में पहल शुरू की है। मध्य प्रदेश के पश्चात अब उत्तर प्रदेश में भी चिकित्सा एवं तकनीकी पढ़ाई हिंदी में होगी। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने ट्वीट के माध्यम से इसकी घोषणा करते हुए कहा है कि उत्तर प्रदेश में मेडिकल और इंजीनियरिंग की कुछ पुस्तकों क...
हिंदी के मार्ग में सौ-सौ रोड़े

हिंदी के मार्ग में सौ-सौ रोड़े

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- डॉ. वेदप्रताप वैदिक मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मेडिकल की तीन हिंदी किताबों का विमोचन कर ऐतिहासिक शुभारंभ किया है। मगर इसके साथ दो विपरीत प्रवृत्तियां भी सामने आई हैं। पहली तो यह कि कुछ लोगों ने हिंदी में प्रकाशित उन पुस्तकों का मजाक उड़ाया है। उन्होंने एकाध पुस्तक के कुछ पृष्ठों को प्रसारित करके बताया कि अनुवादकों ने कैसे हिंदी पर अंग्रेजी शब्दों को थोप रखा है और जो नमूना वे फेसबुक और इंटरनेट पर प्रचारित कर रहे हैं, उसका मूल सार यह है कि वह हिंदी की किताब नहीं है बल्कि हिंदी लिपि में छपी अंग्रेजी की ही किताब है। वे जिस पृष्ठ को दिखा-दिखाकर यह बात कह रहे हैं, उसे देखकर उनकी बात ठीक भी लगती है। यह जो अनुवाद हुआ है, उसे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य-शिक्षा मंत्री यदि हिंदी के कुछ विद्वानो को पहले दिखवा लेते तो ठीक रहता लेकिन यह भी सराहनीय है क...