सामाजिक-पारिवारिक मूल्यों के रखवाले हैं श्रीराम
- डॉ. राकेश राणा
भगवान श्रीराम का अतीत इतना व्यापक और विस्तारित है कि उस पर समझ और संज्ञान की सीमाएं हैं। उन्हें चिह्नित करना बहुत दूर की कौड़ी है। भारतीय समाज में श्रीराम उस वट वृक्ष की तरह हैं जिसकी छत्रछाया में भक्त, आलोचक, आम, खास, आराधक, विरोधी, संबोधक सबके सब न जाने कितने सालों से एक साथ चले आ रहे हैं। 'श्रीराम' भारतीय चिंतन परंपरा का सबसे चहेता चेहरा हैं। उनमें निर्गुणों व सगुणों सब ही का समान हिस्सा है। ब्रह्मवादी उनमें ब्रह्मस्वरूप देखते है। निर्गुणवादियों के लिए आत्मा ही श्रीराम है। अवतारवादियों के वे अवतार हैं।
वैदिक साहित्य में उनका विचित्र रूप है। बौद्ध कथाएं उनके करुणा रूप से कसी हुई हैं। वाल्मीकि के श्रीराम कितने निरपेक्ष हैं देखते ही बनता है। तुलसी के श्रीराम भारतीय जनमानस में बसे श्रीराम हैं, यहां सबके घट-घट में सजे श्रीराम हैं। श्रीराम ही हैं, जो भारत को उत्तर से दक...