अंग्रेजी के बढ़ते प्रभुत्व से संकट में देश का भविष्य..!
- कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल
संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस वर्ष ‘ बहुभाषावाद प्रस्ताव’ को पारित करते हुए हिन्दी समेत अन्य भारतीय भाषाओं उर्दू एवं बांग्ला को सहकारी भाषा के रुप में दर्ज कर लिया है। भारत सरकार विश्व स्तर पर यूएन की अन्य छ: आधिकारिक भाषाओं के साथ हिन्दी को भी यूएन की आधिकारिक ( सरकारी) भाषा के रुप में शामिल करने के लिए प्रयासरत दिखती है। लेकिन भारत की राष्ट्रभाषा के तौर पर हिन्दी को स्थापित करने के लिए संसद में प्रस्ताव पारित करने को लेकर इच्छाशक्ति नहीं दिखलाती है। सरकार को प्रायः भाषायी विवादों से डर लगा रहता है। यदि इस पर तत्परता नहीं दिखलाई जाएगी, और हिन्दी के स्थान पर अंग्रेजी के प्रभुत्व को लगातार बढ़ाया जाता रहेगा। तो क्या भविष्य में राष्ट्रभाषा के रुप में हिन्दी को स्थापित किया जाना संभव हो सकेगा? और राष्ट्र भाषा के रूप में हिन्दी की संस्थापना का संविधान ंं निर्माताओं का ...