Friday, September 20"खबर जो असर करे"

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प्राचीन भारत में आर्थिक क्षेत्र में अभिशासन का किया जाता रहा है अनुपालन

प्राचीन भारत में आर्थिक क्षेत्र में अभिशासन का किया जाता रहा है अनुपालन

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- प्रहलाद सबनानी पिछले कुछ वर्ष से निगमित अभिशासन को विभिन्न बैकों एवं कम्पनियों में लागू करने के भरपूर प्रयास किए जा रहे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने भी इस सम्बंध में विस्तार से दिशा-निर्देश जारी किए हैं एवं इन्हें सहकारी क्षेत्र के बैंकों में लागू करने के प्रयास किए जा रहे हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त होने के पश्चात अमेरिका में लागू की गई पूंजीवाद की नीतियों के चलते कम्पनियों को अमेरिकी सरकार द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापार करने की खुली छूट दी गई थी ताकि अमेरिकी में बिलिनायर नागरिकों की संख्या तेजी से बढ़ाई जा सके और अमेरिका एक विकसित राष्ट्र की श्रेणी में शामिल हो जाए। अमेरिका एवं अन्य देशों में व्यापार को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से अमेरिका में आर्थिक नियमों में भारी छूट दी गई थी। इस छूट का लाभ उठाते हुए कई अमेरिकी कम्पनियों ने अन्य देशों में भी अपने व्यापार का विस्तार ...
शौर्य और जनहितकारी शासन की प्रतीक रानी दुर्गावती

शौर्य और जनहितकारी शासन की प्रतीक रानी दुर्गावती

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- हितानंद भारत के इतिहास में मुगलों को चुनौती देने वाले योद्धाओं में महाराणा प्रताप और शिवाजी महाराज का नाम लिया जाता है। लेकिन इस सूची में गोंडवाना की रानी दुर्गावती का भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। रानी दुर्गावती ने आखिरी दम तक मुगल सेना को रोककर उनके राज्य पर कब्जा करने की हसरत को कभी पूरा नहीं होने दिया। शौर्य या वीरता रानी दुर्गावती के व्यक्तित्व का एक पहलू था। वो एक कुशल योद्धा होने के साथ-साथ एक कुशल प्रशासक थीं और उनकी छवि एक ऐसी रानी के रूप में भी थी, जो प्रजा के कष्टों को पूरी गहराई से अनुभव करती थीं। इसीलिए गोंडवाना क्षेत्र में उन्हें उनकी वीरता और अदम्य साहस के अलावा उनके जनकल्याणकारी शासन के लिए भी याद किया जाता है। मुगल शासक अकबर और उसके सिपहसालारों का मानमर्दन करने वाली रानी दुर्गावती का जन्म 24 जून को 1524 को बांदा जिले में कलिंजर के चंदेला राजपूत राजा कीरतसिंह चं...
लोकतंत्र के लिए !

लोकतंत्र के लिए !

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- गिरीश्वर मिश्र जनता द्वारा, जनता का और जनता के लिए शासन के महास्वप्न को साथ लेकर लोकतंत्र की शासन-विधा आधुनिक युग में सबसे प्रबुद्ध, व्यावहारिक और विवेकशील सरकार चलाने की पद्धति के रूप में स्वीकार की गई है। उत्तर कोरिया और चीन जैसे देश ज़रूर इसके अपवाद हैं जहाँ भिन्न क़िस्म की शासन-व्यवस्थाएँ हैं। यह भी सही है कि जिन देशों में लोकतंत्र है सभी एक जैसे नहीं हैं। राजतंत्र और सैन्य हस्तक्षेप के विविध रूप ऐसे अनेक देशों में मिलते हैं जहां स्वतंत्रता पर पहरा है, अन्याय और असमानता है। इन भेदों के बावजूद लोकतंत्र की व्यवस्था में जनता के चुने प्रतिनिधि या सीधे जनता से चुने लोगों को शासन सँभालने की ज़िम्मेदारी सौंपी जाती है। इसके मूल में ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ का ही आदर्श सक्रिय है। सबकी भागीदारी के लिए अवसर देना, ज़िम्मेदारी और पारदर्शिता के साथ शासन चलाना, शांति और समानता के सिद्धान्तों को ...
मप्र लीडरशिप समिट से शासन में बढ़ेगी कुशलता और दक्षताः मुख्यमंत्री डॉ. यादव

मप्र लीडरशिप समिट से शासन में बढ़ेगी कुशलता और दक्षताः मुख्यमंत्री डॉ. यादव

देश, मध्य प्रदेश
- अटल बिहारी वाजपेयी सुशासन एवं नीति विश्लेषण संस्थान में मंत्रि-परिषद का ओरिएंटेशन प्रोग्राम भोपाल (Bhopal)। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव (Chief Minister Dr. Mohan Yadav) ने कहा कि मध्यप्रदेश लीडरशिप समिट (Madhya Pradesh Leadership Summit) से शासन में कुशलता और दक्षता (efficiency and proficiency) आएगी। यह मंत्रि-परिषद की नेतृत्व क्षमता को विकसित करने वाला प्रबोधन कार्यक्रम है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव शनिवार को अटल बिहारी वाजपेयी सुशासन एवं नीति विश्लेषण संस्थान में मध्यप्रदेश लीडरशिप समिट में मंत्रि-परिषद के दो दिवसीय प्रशिक्षण और ओरिएंटेशन कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि राज्य की मंत्रि-परिषद के निर्णय से प्रदेश की समूची जनता प्रभावित होती है। इसलिए मंत्रि-परिषद के सदस्यों का समय-समय पर प्रशिक्षण आवश्यक है। प्रशिक्षण से शासन की बारीकियां सीखने का अवसर मिलेगा, जिससे प्रशास...
अंग्रेजी गुड़क रही अब नीचे

अंग्रेजी गुड़क रही अब नीचे

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- डॉ. वेदप्रताप वैदिक भारत से अंग्रेजों को विदा हुए तो 75 वर्ष हो गए लेकिन भारत के भद्रलोक पर आज भी अंग्रेजी सवार है। देश का राज-काज, संसद का कानून, अदालतों के फैसलों और ऊंची नौकरियों में अंग्रेजी का वर्चस्व बना हुआ है। ज्यों ही इंटरनेट, मोबाइल फोन और वेबसाइट का दौर चला, लोगों को लगा कि अब हिंदी और भारतीय भाषाओं की कब्र खुद कर ही रहेगी। ये सब आधुनिक तकनीकें अमेरिका और यूरोप से उपजी हैं। वहां अंग्रेजी का बोलबाला है। ये तकनीकें भारत में भी तूफान की तरह फैल रही थीं। जो लोग अंग्रेजी नहीं जानते थे लेकिन मोबाइल फोन, इंटरनेट या वेबसाइटों का इस्तेमाल करना चाहते थे, उन्हें मजबूरन अंग्रेजी (कामचलाऊ) सीखनी पड़ती थी लेकिन भारत के भद्रलोक को अब पता चला है कि उल्टे बांस बरेली पहुंच गए हैं। हिंदी के एक अखबार ने जो ताजातरीन सर्वेक्षण छापा है, वह भारतीय भाषा प्रेमियों को गदगदायमान कर रहा है। उसके अनुसार द...

भाजपा की रगों में दौड़ता है सांस्कृतिक राष्ट्रवाद

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- डॉ. दिलीप अग्निहोत्री भाजपा अपने जन्मकाल से ही सुशासन और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रति समर्पित है। यही उसका वैचारिक आधार और संबल है। इसके बल पर ही उसने जनता का विश्वास प्राप्त किया है। केंद्र और उत्तर प्रदेश में लगातर दूसरी बार पूर्ण बहुमत से उसे सरकार बनाने का अवसर मिला है। वस्तुतः जनसंघ की स्थापना ही इसी वैचारिक अवधारणा के साथ हुई थी। प्रारंभिक दशकों में उसका संख्याबल बल कांग्रेस के मुकाबले बहुत कमजोर था। मगर इस विचारधारा के आधार पर उसने देश की राजनीत में महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है। श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन में वह अन्य सभी पार्टियों से अलग रही। इससे उसका जनाधार बढ़ा ही नहीं अपितु उसने देश की राजनीति की दिशा और दशा ही बदल दी। भाजपा सरकार ने सुशासन की मिसाल कायम की है। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार है। यह डबल इंजन सरकार है। इस दौरान अनेक ऐतिहासिक कार्य हुए। सदियों से लंबित ...
अपनी दशा-दिशा के लिए कांग्रेस ही जिम्मेदार

अपनी दशा-दिशा के लिए कांग्रेस ही जिम्मेदार

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- डॉ. अनिल कुमार निगम देश में सर्वाधिक अवधि तक शासन करने वाली कांग्रेस अपनी दशा और दिशा के लिए खुद ही जिम्मेदार है। आज यह पार्टी बेहद बदहाली के दौर से गुजर रही है। भाजपा के विराट कद के सामने विपक्ष बौना है। किसी मजबूत लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए सशक्त विपक्ष का होना जरूरी है पर कांग्रेस की नीतियां और कार्यशैली ही ऐसी है कि उसे देश की जनता अपने पास फटकने नहीं दे रही। कांग्रेस का सांगठनिक ढांचा जर्जर हो चुका है। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए लगभग चार महीने गुजर चुके हैं लेकिन अभी तक कोई प्रदेश अध्यक्ष नहीं मिला है। कांग्रेस की कर्ता-धर्ता सोनिया गांधी हैं, लेकिन उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता। ऐसे में 'असली अध्यक्ष' की भूमिका राहुल गांधी निभाते हैं। राहुल को उनके अपरिपक्व एवं असंयमित व्यवहार के चलते पार्टी के अंदर और बाहर गंभीरता से नहीं लिया जाता। इसलिए पार्टी वर्तमान मे...