देवी उपासक है भारत का लोकजीवन
- हृदयनारायण दीक्षित
माँ प्रत्येक जीव की आदि अनादि अनुभूति है। हम सबका अस्तित्व माँ के कारण है। माँ न होती तो हम न होते। माँ स्वाभाविक ही दिव्य हैं, देवी हैं, पूज्य हैं, वरेण्य हैं, नीराजन और आराधन के योग्य हैं। मार्कण्डेय ऋषि ने ठीक ही दुर्गा सप्तशती (अध्याय 5) में “या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता बताकर नमस्तस्ये, नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमोनमः” कहकर अनेक बार नमस्कार किया है। माँ का रस, रक्त और पोषण ही प्रत्येक जीव का मूलाधार है। ऋषियों ने इसीलिए माँ को देवी जाना और देवी को माता कहा। मां के निकट होना आनंददायी है।
हमारी भाषा में निकटता के लिए ‘उप’ शब्द का प्रयोग हुआ है। ‘उप’ बड़ा प्यारा है। इसी से ‘उपनिषद’ बना। उप से उपासना भी बना है। उपनिषद् का अर्थ है-ठीक से निकट बैठना। उत्तरवैदिक काल में इसका प्रयोग आचार्य और शिष्य की ज्ञान निकटता था। उपासना का अर्थ भी निकट होना है। उपवास का भी अर्थ ...