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धरती की रक्षा वैश्विक दायित्व है

धरती की रक्षा वैश्विक दायित्व है

अवर्गीकृत
- गिरीश्वर मिश्र आज पर्यावरण का क्षरण और प्रदूषण तेजी से विकराल हो रहा है और विश्व के सभी देश विकट चुनौती से जूझ रहे हैं। भारत ने पर्यावरण और पर्यावरण की नैतिकता, प्रकृति के स्वरूप और महत्व को गहराई से अंगीकार किया था। यहां समस्त जगत में ईश्वर की उपस्थिति की अनुभूति की जाती रही है : ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किंचित जगत्यां जगत। फलतः प्रत्येक वस्तु पवित्र और धरती को माता कहा गया। प्रातःकाल उठ कर बिस्तर से उतार कर धरती पर पैर रखने के पहले पृथ्वी को प्रणाम करने और पैर रखने की विवशता के लिए क्षमा मांगते हुए यह कहने का विधान है ; समुद्र वसने देवि पर्वतस्तनमंडिते । विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे ।। अर्थात समुदरूपी वस्त्रोंको धारण करनेवाली, पर्वतरूपस्तनों से मंडित भगवान विष्णुकी पत्नी पृथ्वी देवि! आप मेरे पाद-स्पर्श को क्षमा करें। उपर्युक्त भावना हिन्दू , बौद्ध और जैन सभी भारतीय धर्...