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वैश्विक परिप्रेक्ष्य में हिंदी

वैश्विक परिप्रेक्ष्य में हिंदी

अवर्गीकृत
- गिरीश्वर मिश्र अनुमान किया जा रहा है कि इक्कीसवीं सदी में विश्व पटल पर भारत और चीन देशों की मुख्य भूमिका हो सकती है। वे कई परिवर्तनों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करते हैं। संचार माध्यमों के तीव्र विस्तार के साथ कई अर्थों में ‘विश्व-व्यवस्था’ और ‘विश्व-गांव’ जैसे जुमले वास्तविकता का आकार ले रहे हैं। व्यापार–वाणिज्य को बढावा देने के लिए नए किस्म की जरूरतें पैदा हो रही हैं। अपने हितों को देखते हुए अनेक बहुराष्ट्रीय कंपिनियां भारत के साथ व्यापार बढ़ा रही हैं। चूंकि उपभोक्ता या ग्राहक हिंदी क्षेत्र में अधिक हैं अतः अर्थ तंत्र की संघटना में हिंदी की स्थिति अपेक्षाकृत मजबूत हुई है। इस बीच सूचना-प्रौद्योगिकी का भी अप्रत्याशित विस्तार हुआ है जिसने भाषा-व्यवहार , कार्य के परिवेश और कार्य पद्धति में एक अनिवार्य बदलाव आ रहा है। हिंदी भाषा की क्षमता को कई तरह से आंका जाता है। उसके बोलने वालों का बढ़ता...