ग्रैंड पेरेंट्स को वृद्धाश्रमों में नहीं, दिल में दें जगह
- डॉ. रमेश ठाकुर
ग्रैंड पेरेंट्स तजुर्बे की खान ही नहीं होते, बल्कि आदर-सम्मान, संस्कार की अव्वल पाठशाला होते हैं। उन्हीं के दिए हुए शुरुआती संस्कार के रूप में शिक्षा बच्चों के ताउम्र काम आती है। आमतौर पर कहा जाता है कि जिनके सिर पर घर के बुजुर्गों का हाथ होता है, वह जिंदगी में कभी मात नहीं खाते और जिनकी जिंदगी में ये नहीं होते वो बच्चे अभागे समझते जाते हैं? पर अफसोस आज के वक्त में ग्रैंड पेरेंट्स यानी घरों की धरोहर घरों में कम, वूद्वाश्रमों में ज्यादा दिखते हैं। ये सिलसिला तब से ज्यादा बढ़ा, जबसे ‘एकल परिवार‘ की संस्कृति समाज में ज्यादा बढ़ी है। जबकि, देखा जाए तो बुजुर्ग आंगन की शोभा-सभ्यता जैसे होते हैं। इनके रहने मात्र से घरों की दीवारें गुलजार होती हैं और घर-आंगन खुशी से चहकते भी हैं। बुजुर्ग बरगद के विशाल पेड़ होते हैं जो तमाम समस्याओं से पहले खुद सामना करते हैं। उनकी पीठ बच्चों के लिए ...