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ब्रह्मांड के समस्त रहस्यों को उद्घाटित करती है “गीता”

ब्रह्मांड के समस्त रहस्यों को उद्घाटित करती है “गीता”

जीवन शैली
गीता जयंती के पावन अवसर पर- - डॉ. पुनीत कुमार द्विवेदी, प्रोफ़ेसर एवं समूह निदेशक- मॉडर्न ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूट्स इंदौर “गीता” भारतीय संस्कृति और धर्म की महानता का प्रतीक है, और उसमें वैज्ञानिक और दार्शनिक तत्त्वों के साथ-साथ ब्रह्मांड के समस्त रहस्यों की व्यापक चिंतन की चर्चा की गई है। इस महान ग्रंथ में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को ब्रह्मांड के गहरे रहस्यों के बारे में बताया है और हमें उसकी महत्ता पर विचार करने के लिए प्रेरित किया है। मुख्यतः, इस ग्रंथ में ब्रह्मांड के सृजन, संरक्षण और संहार के विषय में चर्चा की गई है, जो कि ब्रह्मांड के समस्त रहस्यों को उद्घाटित करती है। “गीता” में ब्रह्मांड के सृजन के विषय में बताया गया है कि जब भगवान ने ब्रह्मांड की सृष्टि की तो उन्होंने इसे अपनी महानता और अनंत शक्ति से सृष्टि किया। इस विषय में गीता में कहा गया है कि भगवान ने ब्रह्मांड के सभी जी...
गीता में योग की प्रतिष्ठा

गीता में योग की प्रतिष्ठा

अवर्गीकृत
- हृदय नारायण दीक्षित दुख, तनाव और अवसाद समूचे विश्व की समस्या है। भारत का योग विज्ञान ऐसी समस्याओं का ठोस उपचार है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों से योग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित हो गया है। गीता का बड़ा हिस्सा योग प्रधान है। गीता में प्रकृति के सूक्ष्म विश्लेषण वाला सांख्य दर्शन है। इसे सांख्य योग कहा गया है। ईश्वर या देवताओं की आराधना भक्ति कही जाती है। गीता में भक्ति भी योग है। भारत का जीवन कर्म प्रधान है। गीता में कर्मयोग भी है। योग परिपूर्ण विज्ञान है। जैसे योग अंतरराष्ट्रीय हो गया है वैसे ही गीता भी तमाम ज्ञान सम्पदा के कारण अंतरराष्ट्रीय दर्शन ग्रंथ है।राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने हरियाणा में अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में हिस्सा लिया। उन्होंने कहा कि, ‘‘गीता में हर शंका का समाधान है। यह विश्व का पवित्र ग्रंथ है। सही अर्थ में अंतरराष्ट्रीय ग्रंथ है।” प्राचीन काल में...
गीता और सृष्टि का वास्तविक रहस्य

गीता और सृष्टि का वास्तविक रहस्य

अवर्गीकृत
- ह्रदय नारायण दीक्षित गीता दर्शन ग्रंथ है। इसका प्रारम्भ विषाद से होता है और समापन प्रसाद से। विषाद पहले अध्याय में है और प्रसाद अंतिम में। अर्जुन गीता समझने का प्रभाव बताते हैं- 'नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादान्मयाच्युत।' हे कृष्ण आपके प्रसाद से 'त्वत्प्रसादान्मयाच्युत' मोह नष्ट हो गया। प्रश्न उठता है कि यह विषाद क्या है? युद्ध के प्रारम्भ में ही अर्जुन के सामने कठिनाई आती है। उसके अपने घर के लोग ही युद्ध तत्पर सामने खड़े हैं। सगे सम्बंधी हैं। वह तय नहीं कर पाता कि क्या सगे सम्बंधियों को मार कर युद्ध में जीतकर राज्य लिया जाना चाहिए। अर्जुन विषाद ग्रस्त है। वह अपनी मनोदशा बताता है- 'सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति। हमारा पूरा शरीर कंपकपी में है। हमारा मुंह सूख रहा है। हे कृष्ण मैं युद्ध नहीं करूंगा।' यहां अर्जुन निश्चयात्मक हो गया है। पहले बाएं या दाएं जाने की बात थी। वह अब ...