स्वराज का बिम्ब और स्वदेशी का संकल्प
- गिरीश्वर मिश्र
सन् 1909 में लंदन से दक्षिण अफ्रीका लौटते हुए गांधी जी ने तब तक के अपने सामाजिक-राजनैतिक विचारों को सार रूप में गुजराती में दर्ज किया था जिसे ‘हिंद स्वराज’ शीर्षक से प्रकाशित किया था। उसे बंबई की सरकार ने जब्त कर लिया। फिर जब गांधी जी 1915 में दक्षिण अफ्रीका का कार्य पूरा कर भारत लौटे तब इस पुस्तिका को अंग्रेजी में छपवाया । इस बार सरकार ने विरोध नहीं किया और यह पढ़ने के लिए सब को उपलब्ध हो गई। इसे लेकर देश-विदेश में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह की आलोचनाएं होती रहीं। खुद गांधी जी के शब्दों में ‘इसके विचार उनकी आत्मा में गढ़े-जड़े हुए’ से थे। सन् 1938 में सेवाग्राम, वर्धा में आर्यन पथ नामक पत्रिका में अंग्रेजी में इसके प्रकाशन के अवसर पर उन्होंने कहा था कि ‘इसे लिखने के बाद तीस साल मैंने अनेक आंधियों में बिताए हैं, उनमें मुझे इस पुस्तक में फेर बदल करने का कुछ भी कारण न...