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शारदीय नवरात्र, न्यायालय और हिंसा से मुक्ति की उम्मीद

शारदीय नवरात्र, न्यायालय और हिंसा से मुक्ति की उम्मीद

अवर्गीकृत
- डॉ. मयंक चतुर्वेदी कलकत्ता हाई कोर्ट का शारदीय नवरात्र स्थापना स्थान को लेकर जिस प्रकार का निर्णय आया है उसने आज एक नई उम्मीद जगाई है। भारत जैसे सर्वपंथ सद्भाव वाले देश में अनेक घटनाएं अब तक घट चुकी हैं, जब मजहब, पंथ, रिलीजन की आड़ लेकर न जाने कितनी ही हिंसा, तोड़फोड़, आगजनी जैसी वारदातें और अब तक न जाने कितने बेगुनाहों को अपनी जान तक गंवानी पड़ी है । पश्चिम बंगाल जैसी सरकार जोकि कई बार अपने निर्णयों से यह साबित कर चुकी है कि उसका झुकाव एक धर्म विशेष के प्रति है। वह जब चाहती है बहुसंख्यक समाज के धार्मिक आयोजनों को होने से रोक देती है, उनके स्थान बदल देती है। हां ; जिसे छूट देनी होती है उसे छूट जरूर वह दे देती है और जिन्हें नहीं देनी है उसके लिए तमाम नियम आड़े आ जाते हैं। अब तक इन परिस्थितियों में यह कई बार हुआ है कि न्याय पाने के लिए बहुसंख्यक समाज को कोर्ट की शरण लेनी पड़ी है। इस बार ...