Friday, November 22"खबर जो असर करे"

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कौन भूल सकता है क्रांतिदूत भाई परमानंद को

कौन भूल सकता है क्रांतिदूत भाई परमानंद को

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- रमेश शर्मा सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी भाई परमानंद को कौन भूल सकता है। चार नवंबर, 1870 को झेलम जिले के करियाला गांव में जन्मे भाई परमानंद ने काला पानी की सजा काट रहे भगत सिंह और राजगुरु जैसे क्रांतिदूत तैयार किए। करियाला गांव अब पाकिस्तान में है। भाई जी के परिवार की पृष्ठभूमि राष्ट्र और संस्कृति की रक्षा के लिए बलिदान की रही है । गुरु तेगबहादुर के साथ अपने प्राणों की आहुति देने वाले भाई मतिदास इन्हीं के पूर्वज हैं । उनके परिवार की ऐसी कोई पीढ़ी नहीं, जिसने राष्ट्र के लिए बलिदान न दिया हो । पिता ताराचंद ने किशोरवय में 1857 की क्रान्ति के संदेश वाहक के रूप में सक्रिय भूमिका निभाई थी। इस क्रांति की विफलता के बाद वे आर्य समाज से मिलकर सांस्कृतिक गौरव जागरण के काम में लग गये थे । इसलिये राष्ट्र और संस्कृति के समर्पण के संस्कार भाई परमानंद को बचपन से मिले। भाई परमानंद ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया। ब...
चित्तौड़ की रानी पद्मावती का जौहर कैसे कोई भूल सकता है

चित्तौड़ की रानी पद्मावती का जौहर कैसे कोई भूल सकता है

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- रमेश शर्मा अपने स्वत्व और स्वाभिमान रक्षा के लिए क्षत्राणियों की अगुवाई में स्त्री-बच्चों द्वारा स्वयं को अग्नि में समर्पित कर देने का इतिहास केवल भारत में मिलता है। इनमें सबसे अधिक शौर्य और मार्मिक प्रसंग है चित्तौड़ की रानी पद्मावती के जौहर का। इसका उल्लेख प्रत्येक इतिहासकार ने किया है। इस इतिहास प्रसिद्ध जौहर पर सीरियल भी बने और फिल्में भी बनीं। राजस्थान की लोकगाथाओं में सर्वाधिक उल्लेख इसी जौहर का है। जौहर के विवरण भारत की अधिकांश रियासतों के इतिहास में मिलता है । जौहर की स्थिति तब बनती थी जब पराजय और समर्पण के अतिरिक्त सारे मार्ग बंद हो जाते थे । जौहर के सर्वाधिक प्रसंग राजस्थान के हैं। वहां कोई भी ऐसी रियासत नहीं जहां जौहर न हुआ हो । चित्तौड़ में सबसे पहला और सबसे बड़ा जौहर रानी पद्मावती का ही माना जाता है । रानी पद्मावती सिंहल द्वीप की राजकुमारी थीं। उनका मूल नाम पद्मिनी था जो व...