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सावधान, रोजाना 1917 बुजुर्ग कोर्ट जाने को हो रहे मजबूर!

सावधान, रोजाना 1917 बुजुर्ग कोर्ट जाने को हो रहे मजबूर!

अवर्गीकृत
- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा एक तरफ यह माना जा रहा है कि 2050 आते-आते देश का हर पांचवां नागरिक बुजुर्ग होगा तो दूसरी और बुजुर्गों के साथ असम्मान में दिन-दूनी रात चौगुनी बढ़ोतरी हो रही है। हालिया रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक साल में सात लाख बुजुर्गों ने अदालतों के द्वार खटखटाये हैं। इसका मतलब है कि एक दिन में करीब 1917 बुजुर्गों ने कोर्ट को अपना दुखड़ा बताया। इससे पहले अदालतों में बुजुर्गों द्वारा दर्ज कराए गए पांच साल से अधिक के 20 लाख से अधिक मामले न्याय में लंबित हैं। सवाल यह नहीं है कि अदालतों में कितने मामले लंबित हैं। सवाल यह भी नहीं है कि कितने समय से लंबित हैं। सवाल यह भी नहीं है कि अदालतों में बुजुर्गों से संबंधित मामलों के निर्णय में क्यों देरी हो रही है? सीधा और सौ टके का सवाल यह है कि समाज में बुजुर्गों के प्रति असम्मान में क्यों बढ़ोतरी हो रही है। केवल और केवल एक साल में सात लाख म...
शिक्षा से दूर, बच्चे ही मजबूर

शिक्षा से दूर, बच्चे ही मजबूर

अवर्गीकृत
- सुशील पाण्डेय पढ़ने-लिखने की उम्र में श्रम के तंदूर में झुलसता बचपन किसी के लिए भी त्रासद हो सकता है। आखिर कौन माता-पिता नहीं चाहता कि उसका बेटा भी पढ़-लिखकर सुसभ्य नागरिक और देश का निर्माता बने। यह तब है जब भारत में बाल श्रम के खिलाफ राष्ट्रीय कानून और नीतियां प्रभावी हैं। भारत का संविधान (26 जनवरी 1950) मौलिक अधिकारों और राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांत की विभिन्न धाराओं के माध्यम से कहता है-14 साल के कम उम्र का कोई भी बच्चा किसी फैक्टरी या खदान में काम करने के लिए नियुक्त नहीं किया जाएगा और न ही किसी अन्य खतरनाक नियोजन में नियुक्त किया जाएगा (धारा 24)। राज्य अपनी नीतियां इस तरह निर्धारित करेंगे कि श्रमिकों, पुरुषों और महिलाओं का स्वास्थ्य तथा उनकी क्षमता सुरक्षित रह सके और बच्चों की कम उम्र का शोषण न हो तथा वे अपनी उम्र व शक्ति के प्रतिकूल काम में आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्...