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द केरला स्टोरीः फिल्म के आंकड़ों से ज्यादा मूल बात को समझने की है

द केरला स्टोरीः फिल्म के आंकड़ों से ज्यादा मूल बात को समझने की है

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- निवेदिता सक्सेना हाल ही में रिलीज हुई फिल्म `द केरला स्टोरी' तथ्यपरख होने के साथ आने वाले भविष्य के लिए एक दस्तक भी है। जो न सिर्फ बेटियों के लिए, वरन हर उस इंसान के लिए जो अब तक अपने जीवन मूल्य के अस्तित्व को न समझ पाया है न ही उसे बताया गया है। एक बालक को कोई अपनी बात मनवाने के लिए झुनझुना पकड़ा दिया जाता है ताकि कुछ समय तक वह भ्रमित रहे और उससे खेलता रहे। वह झुनझुने से निकली आवाज से खुश होता रहे, लेकिन एक उम्र के बाद उसे उस झुनझुने की असलियत पता लगती है, तब वह उसके मायाजाल में नहीं फंसता। ये तो रही बच्चे की बात लेकिन धर्म एवं कर्म के नाम का झुनझुना जिंदगी को पलट देता है। स्थिरं जीवितं लोके ह्यस्थिरे धनयौवने । स्थिराः पुत्रदाराश्च धर्मः कीर्तिर्द्वयं स्थिरम् ॥ इस स्थिर जीवन/संसार में धन, यौवन, पुत्र-पत्नी आदि सबकुछ अस्थिर है। केवल धर्म और कीर्ति ये दो बातें स्थिर हैं। फिलहाल ऐसा भार...