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शिक्षक की गरिमा: पुनर्प्रतिष्ठा की अनिवार्यता

अवर्गीकृत
- गिरीश्वर मिश्र भारतीय संस्कृति में गुरु या शिक्षक को ऐसे प्रकाश के स्रोत के रूप में ग्रहण किया गया है जो ज्ञान की दीप्ति से अज्ञान के आवरण को दूर कर जीवन को सही मार्ग पर ले चलता है। इसीलिए उसका स्थान सर्वोपरि होता है। उसे ‘साक्षात परब्रह्म’ तक कहा गया है। आज भी सामाजिक, आध्यात्मिक और निजी जीवन में बहुत सारे लोग किसी न किसी गुरु से जुड़े मिलते हैं। गुरु से प्रेरणा पाने और उनके आशीर्वाद से मनोरथों की पूर्ति की कामना आम बात है यद्यपि गुरु की संस्था में इस तरह के विश्वास को कुछ छद्म गुरु नाजायज़ फ़ायदा भी उठाते हैं और गुरु-शिष्य के पावन सम्बन्ध को लांछित करते हैं। शिक्षा के औपचारिक क्षेत्र में गुरु या शिक्षक एक अनिवार्य कड़ी है जिसके अभाव में ज्ञान का अर्जन, सृजन और विस्तार सम्भव नहीं है। भारत में शिक्षक दिवस डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की स्मृति को जीवंत करता है, वे एक महान अध्यापक और राजनयिक...