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जीवन में संतुलन के लिए प्रकृति संरक्षण जरूरी

जीवन में संतुलन के लिए प्रकृति संरक्षण जरूरी

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- योगेश कुमार गोयल विश्वभर में आधुनिकीकरण और औद्योगिकीकरण के चलते प्रकृति के साथ बड़े पैमाने पर खिलवाड़ हो रहा है। प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन और प्रकृति के साथ निर्मम खिलवाड़ का ही नतीजा है कि पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ने के कारण मनुष्यों के स्वास्थ्य पर तो प्रतिकूल प्रभाव पड़ ही रहा है, जीव-जंतुओं की अनेक प्रजातियां भी लुप्त हो रही हैं। विश्वभर में मौसम चक्र में निरन्तर आते बदलाव और बिगड़ते पर्यावरणीय संतुलन के कारण पेड़-पौधों की अनेक प्रजातियों के अलावा जीव-जंतुओं की कई प्रजातियों के अस्तित्व पर भी अब संकट के बादल मंडरा रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता परिषद, ‘इंटरगवर्नमेंटल साइंस-पॉलिसी प्लेटफॉर्म ऑन बायोडायवर्सिटी एंड इकोसिस्टम सर्विसेज’ (आइपीबीईएस) द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में करीब 10 लाख प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है क्योंकि जैव विविधता और पारिस्थितिकी...

इसलिए जरूरी है एकीकृत चिकित्सा प्रणाली

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- डॉ. विपिन कुमार हाल के दशकों में संपूर्ण विश्व में योग का चलन तेजी से बढ़ा है। यह हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने का महत्वपूर्ण जरिया होने के साथ ही, आध्यात्मिक प्रगति के लिए भी जरूरी है। यह एक ऐसी विधा है, जिससे हमारी नैतिक शक्ति शाश्वत मूल्यों का विकास होता है। जब हम बात योग की कर रहे हों, तो वहां महर्षि पतंजलि का नाम लेना अनिवार्य है। महर्षि पतंजलि को योग का पितामह माना जाता है। उन्होंने न सिर्फ योग के 196 सूत्रों को सहेजा, बल्कि इसे धर्म और अंधविश्वास से बाहर निकालते हुए आम लोगों के लिए भी सहज बनाया। लेकिन समय के बहाव के साथ योग भारतीय जीवन शैली से गायब हो गया। 19वीं और 20वीं सदी के दौरान योग का फिर पदार्पण हुआ। इस कालखंड में योग को बढ़ावा देने में स्वामी विवेकानंद, परमहंस योगानंद, तिरुमलई कृष्णामाचार्य, स्वामी शिवानंद, आचार्य बीकेएस आयंगर जैसे महर्षियों का महत्वपूर्ण...