Friday, November 22"खबर जो असर करे"

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भारत में पर्यावरण संकट और समाज की भूमिका

भारत में पर्यावरण संकट और समाज की भूमिका

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- अजय दीक्षित हमने प्रकृति से जो खिलवाड़ किया है उसी का परिणाम हमारे सामने है । प्रकृति ने हमें पेड़, पौधे और हरियाली दी। पशु-पक्षी दिए, लेकिन हमने पेड़-पौधों को काटकर कंक्रीट का जंगल बना लिया। जहां पेड़ नहीं तो चिड़िया की चहचहाहट और कोयल की कूक होने का सवाल ही कहां उठता है। लेकिन समझदार कहलाने वाले मनुष्य ने प्लास्टिक के पेड़ और घर में कोयल की आवाज वाली डोर बेल लगाकर ऐसा दिखने की कोशिश की मानों कुछ हुआ ही न हो। पेड़ों की ठंडी छांव की कमी दूर करने के लिए हमने वातानुकूलित संयंत्रों का सहारा तो लिया लेकिन यह तमाम एसी भी तो तापमान में वृद्धि करने का कारण बन रहे हैं। आज 45 से 49 डिग्री सेल्सियस तापमान को 55 से 60 होने में देर नहीं लगेगी। इसलिए हम सभी को अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाने के नारे और कागजी बातें छोड़कर न केवल धरा पर पौधे लगाने चाहिए बल्कि उनकी सतत निगरानी भी करनी होगी। एक पौधे को बड...

हिमालय में गंभीर होता पर्यावरणीय संकट

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- कुलभूषण उपमन्यु इस साल की बरसात पूरे देश के लिए तबाही ले कर आई है। किन्तु हिमालयी क्षेत्रों में जैसी तबाही हुई है, वह अभूतपूर्व हैं। हिमाचल प्रदेश में शिमला-सिरमौर से लेकर चंबा तक तबाही का आलम पसर गया है। सड़कें बंद हैं। चक्की का रेल पुल बह गया है। बहुमूल्य जन-धन की क्षति हुई है। सिहुंता घाटी में 135 लोगों को घरों से निकाल कर जनजातीय भवन में आश्रय दिया गया है। मंडी में 22 लोग काल का ग्रास बन गए। प्रदेश में कई लोग अभी लापता हैं। 18 अगस्त से 20 अगस्त की दोपहर तक बारिश की भयावहता से लोग कांप गए। 48 घंटे में ही धर्मशाला से सिहुंता घाटी तक 500 मिलीमीटर बारिश हो गई। पूरे प्रदेश में अगस्त में इस क्षेत्र में औसत 349 मिलीमीटर से 600 मिलीमीटर बारिश होती है। कुल्लू जिला की स्थिति भी बहुत ही खराब हुई है। चारों ओर बादल फटे हैं। यह वैश्विकस्तर पर जलवायु परिवर्तन का परिणाम तो है ही किन्तु हिमालय में त...