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भारतीय संस्कृति और मर्यादा का अंतस

भारतीय संस्कृति और मर्यादा का अंतस

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- हृदयनारायण दीक्षित प्रत्यक्ष पर्यावरण प्रकृति की संरचना है। भारत के प्राचीनकाल में भी प्राकृतिक पर्यावरण की उपस्थिति मनमोहक थी। प्रकृति को देखते, उसके विषय में सोचते और सुनते मनुष्य ने भी सृजन कर्म में जाने अनजाने भागीदारी की। आज का भारत हमारे पूर्वजों, अग्रजों के सचेत कर्मों का परिणाम है। मनुष्य द्वारा किए गए सुंदर सत्कर्म संस्कृति हैं। प्रकृति स्वाभाविक है। लेकिन संस्कृति मनुष्य की रचना है। संक्षेप में विश्व के प्रत्येक जीव की लोकमंगल कामना और उसके लिए किए गए कर्म संस्कृति है। संस्कृति किसी एक व्यक्ति या समूह के कर्मफल का परिणाम नहीं होती। भारतीय संस्कृति के विकास में विज्ञान और दर्शन की महत्ता है। कोई अंधविश्वास नहीं। रूप, रस, गंध, शब्द और स्पर्श प्रत्यक्ष इंद्रिय बोध के हिस्से हैं। पूर्वजों की 'मंगल भवन अमंगल हारी'' कर्मठ चेतना से संस्कृति का विकास हुआ। सारांशतः भारत के बुद्धि ...
विश्व गौरैया दिवस: हमारी पर्यावरण दोस्त है चुलबुली गौरैया

विश्व गौरैया दिवस: हमारी पर्यावरण दोस्त है चुलबुली गौरैया

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- प्रभुनाथ शुक्ल हमारी सोच अब आहिस्ता-आहिस्ता बदलने लगी है। हम प्रकृति और जीव- जंतुओं के प्रति थोड़ा मित्रवत भाव रखने लगे हैं। घर की टेरेस पर पक्षियों के लिए दाना-पानी डालने लगे हैं। गौरैया से हम फ्रेंडली हो चले हैं। किचन गार्डन और घर की बालकनी में कृतिम घोंसला लगाने लगे हैं। गौरैया धीरे-धीरे हमारे आसपास आने लगी है। उसकी चीं-चीं की आवाज हमारे घर आंगन में सुनाई पड़ने लगी है। गौरैया संरक्षण को लेकर ग्लोबल स्तर पर बदलाव आया है। यह सुखद है। फिर भी अभी यह नाकाफी है। हमें प्रकृति से संतुलन बनाना चाहिए। हम प्रकृति और पशु-पक्षियों के साथ मिलकर एक सुंदर प्राकृतिक वातावरण तैयार कर सकते हैं। जिन पशु-पक्षियों को हम अनुपयोगी समझते हैं, वह हमारे लिए प्राकृतिक पर्यावरण को संरक्षित करने में अच्छी खासी भूमिका निभाते हैं, लेकिन हमें इसका ज्ञान नहीं होता। गौरैया हमारी प्राकृतिक मित्र है और पर्यावरण में ...
पर्यावरण ही जीवन का स्रोत है

पर्यावरण ही जीवन का स्रोत है

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- गिरीश्वर मिश्र हमारा पर्यावरण पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश इन पंच महाभूतों या तत्वों से निर्मित है। आरम्भ में मनुष्य इनके प्रचंड प्रभाव को देख चकित थे। ऐसे में यदि इनमें देवत्व के दर्शन की परम्परा चल पड़ी तो कोई अजूबा नहीं है। आज भी भारतीय समाज में यह एक स्वीकृत मान्यता के रूप में आज भी प्रचलित है। अग्नि, सूर्य, चंद्र, आकाश, पृथ्वी, और वायु आदि ईश्वर के ‘प्रत्यक्ष’ तनु या शरीर कहे गए है। अनेकानेक देवी-देवताओं की संकल्पना प्रकृति के उपादानों से की जाती रही है जो आज भी प्रचलित है। शिव पशुपति और पार्थिव हैं तो गणेश गजानन हैं। सीताजी पृथ्वी माता से निकली हैं। द्रौपदी यज्ञ की अग्नि से उपजी ‘याज्ञसेनी’ हैं। वैसे भी पर्यावरण का हर पहलू हमारे लिए उपयोगी है और जीवन को सम्भव बनाता है। वनस्पतियाँ हर तरह से लाभकर और जीवनदायी हैं। वृक्ष वायु-संचार के मुख्य आधार हैं। शीशम और सागौन के वृक्ष सिर्फ ...