Friday, September 20"खबर जो असर करे"

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विश्व हिंदी या अंग्रेजी की गुलामी?

विश्व हिंदी या अंग्रेजी की गुलामी?

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- डॉ. वेदप्रताप वैदिक फिजी में 15 फरवरी से 12 वां विश्व हिंदी सम्मेलन होने जा रहा है। यह सम्मेलन 1975 में नागपुर से शुरू हुआ था। उसके बाद यह दुनिया के कई देशों में आयोजित होता रहा है। जैसे मॉरीशस, त्रिनिदाद, सूरीनाम, अमेरिका, ब्रिटेन, भारत आदि। पिछले दो सम्मेलनों को छोड़कर बाकी सभी सम्मेलनों के निमंत्रण मुझे मिलते रहे हैं। मुझे 1975 के पहले सम्मेलन से ही लग रहा था कि यह सम्मेलन हिंदी के नाम पर करोड़ों रुपये फिजूल बहा देने की कोशिश से ज्यादा कुछ नहीं है। नागपुर सम्मेलन के दौरान मैंने ‘नवभारत टाइम्स’ में संपादकीय लिखा था, जिसका शीर्षक था, ‘‘हिंदी मेलाः आगे क्या?’’ 38 साल बीत गए लेकिन जो सवाल मैंने उस समय उठाए थे, वे आज भी ज्यों के त्यों जीवित हैं। तत्कालीन दो प्रधानमंत्रियों के आग्रह पर मैंने मोरीशस और सूरीनाम के सम्मेलनों में भाग लिया। वहां दो-तीन सत्रों की अध्यक्षता भी की और दो-टूक भाषण भी...
अंग्रेजी गुड़क रही अब नीचे

अंग्रेजी गुड़क रही अब नीचे

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- डॉ. वेदप्रताप वैदिक भारत से अंग्रेजों को विदा हुए तो 75 वर्ष हो गए लेकिन भारत के भद्रलोक पर आज भी अंग्रेजी सवार है। देश का राज-काज, संसद का कानून, अदालतों के फैसलों और ऊंची नौकरियों में अंग्रेजी का वर्चस्व बना हुआ है। ज्यों ही इंटरनेट, मोबाइल फोन और वेबसाइट का दौर चला, लोगों को लगा कि अब हिंदी और भारतीय भाषाओं की कब्र खुद कर ही रहेगी। ये सब आधुनिक तकनीकें अमेरिका और यूरोप से उपजी हैं। वहां अंग्रेजी का बोलबाला है। ये तकनीकें भारत में भी तूफान की तरह फैल रही थीं। जो लोग अंग्रेजी नहीं जानते थे लेकिन मोबाइल फोन, इंटरनेट या वेबसाइटों का इस्तेमाल करना चाहते थे, उन्हें मजबूरन अंग्रेजी (कामचलाऊ) सीखनी पड़ती थी लेकिन भारत के भद्रलोक को अब पता चला है कि उल्टे बांस बरेली पहुंच गए हैं। हिंदी के एक अखबार ने जो ताजातरीन सर्वेक्षण छापा है, वह भारतीय भाषा प्रेमियों को गदगदायमान कर रहा है। उसके अनुसार द...
भारत 2035 तक अंग्रेजियत से मुक्ति पाने की ओर अग्रसर

भारत 2035 तक अंग्रेजियत से मुक्ति पाने की ओर अग्रसर

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- डॉ. विपिन कुमार हमारी हिन्दी दुनिया की सबसे सरल और सहज भाषाओं में से एक है। हिन्दी की मूल भाषा संस्कृत है। वह दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा है। उसे 'देव भाषा' का भी दर्जा हासिल है। आज संपूर्ण विश्व में हिन्दी बोलने और समझने वालों की संख्या 80 करोड़ से भी अधिक है और यह चीनी के बाद सबसे बड़ी भाषा मानी जाती है। लेकिन, इस विषय में यदि हिंदी शोध संस्थान, देहरादून के महानिदेशक डॉक्टर जयंती प्रसाद नौटियाल की 'शोध अध्ययन - 2021' की मानें, तो आज हिन्दी विश्व की सबसे बड़ी भाषा बन चुकी है और उनका यह शोध केंद्रीय हिन्दी निदेशालय, भारत सरकार,आगरा द्वारा नियुक्त भाषा विशेषज्ञों द्वारा पूर्णतः प्रमाणित भी है। हिन्दी ने अपना यह स्वरूप कई सदियों के पश्चात हासिल किया है। इसकी लिपि देवनागिरी है, जो कई अन्य देशज भाषाओं में भी सहायक है। यही कारण है कि हिन्दी हमारी राष्ट्रीय एकता, अखंडता और अस्मिता की प्रतीक ...

अंग्रेजी के बढ़ते प्रभुत्व से संकट में देश का भविष्य..!

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- कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस वर्ष ‘ बहुभाषावाद प्रस्ताव’ को पारित करते हुए हिन्दी समेत अन्य भारतीय भाषाओं उर्दू एवं बांग्ला को सहकारी भाषा के रुप में दर्ज कर लिया है। भारत सरकार विश्व स्तर पर यूएन की अन्य छ: आधिकारिक भाषाओं के साथ हिन्दी को भी यूएन की आधिकारिक ( सरकारी) भाषा के रुप में शामिल करने के लिए प्रयासरत दिखती है। लेकिन भारत की राष्ट्रभाषा के तौर पर हिन्दी को स्थापित करने के लिए संसद में प्रस्ताव पारित करने को लेकर इच्छाशक्ति नहीं दिखलाती है। सरकार को प्रायः भाषायी विवादों से डर लगा रहता है। यदि इस पर तत्परता नहीं दिखलाई जाएगी, और हिन्दी के स्थान पर अंग्रेजी के प्रभुत्व को लगातार बढ़ाया जाता रहेगा‌। तो क्या भविष्य में राष्ट्रभाषा के रुप में हिन्दी को स्थापित किया जाना संभव हो सकेगा? और राष्ट्र भाषा के रूप में हिन्दी की संस्थापना का संविधान ंं निर्माताओं का ...