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कृषि सुधार और अंतहीन बहस

कृषि सुधार और अंतहीन बहस

अवर्गीकृत
- प्रभुनाथ शुक्ल स्वतंत्र भारत में लघु और सीमांत किसानों की माली हालत किसी से छुपी नहीं है। मोदी सरकार किसानों की आय दोगुना करने का प्रयास कर रही है। इससे कुछ बदलाव भी दिख रहा है। बावजूद इसके देश का पेट भरने वाला अधिसंख्य किसान खुद भूखा, नंगा और फटेहाल है। भारत में कृषि सुधार एक अंतहीन बहस का मुद्दा रहा है। इस पर कब पूर्णविराम लगेगा, यह अबूझ पहेली है। आजादी के बाद श्वेत और हरित क्रांति के नारे बुलंद किए गए,लेकिन जमीनी स्तर पर उसका लाभ किसानों को नहीं मिला। तत्कालीन सरकारों की नीतियों की वजह से किसान आत्महत्या करने को मजबूर हुआ। बैंकों के कर्ज तले उसकी पीढ़ियां दबती चली गईं। किसानों की समस्याओं को लेकर एक स्वतंत्र आयोग का गठन नहीं किया जा सका जो किसानों की समस्याओं की निगरानी रखता। आधुनिक विकास में लघु और सीमांत किसानों के लिए कृषि लाभकारी साबित नहीं हो पाई। अगर ऐसा होता तो किसान आत्महत्...