Friday, September 20"खबर जो असर करे"

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अल्पसंख्यकवाद से मुक्ति पर विचार हो

अल्पसंख्यकवाद से मुक्ति पर विचार हो

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- डॉ. सौरभ मालवीय भारत विशाल देश है। यहां विभिन्न समुदाय के लोग निवास करते हैं। उनकी भिन्न-भिन्न संस्कृतियां हैं, परन्तु सबकी नागरिकता एक ही है। सब भारतीय हैं। कोई भी देश तभी उन्नति के शिखर पर पहुंचता है जब उसके निवासी उन्नति करते हैं। यदि कोई समुदाय मुख्यधारा के अन्य समुदायों से पिछड़ जाए, तो वह देश संपूर्ण रूप से उन्नति नहीं कर सकता। इसलिए आवश्यक है कि देश के सभी समुदाय उन्नति करें। आज देश में एक बार फिर से अल्पसंख्यक बनाम बहुसंख्यक का विषय चर्चा में है। उल्लेखनीय है कि ‘अल्पसंख्यक’ का तात्पर्य केवल मुस्लिम समुदाय से नहीं है। देश के संविधान में ‘अल्पसंख्यक’ शब्द की परिकल्पना धार्मिक, भाषाई एवं सांस्कृतिक रूप से भिन्न वर्गों के लिए की गई है। यह दुखद है कि कांग्रेस द्वारा इसका उपयोग अपने स्वार्थ के लिए किया गया, ताकि उसका वोट बैंक बना रहे। कांग्रेस द्वारा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम...

मानसिक गुलामी से मुक्ति की आवश्यकता

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- गिरीश्वर मिश्र अमृत-महोत्सव के संदर्भ में प्रधानमंत्री ने गुलामी की मानसिकता से मुक्त होने का आह्वान किया है । यह इसका स्मरण दिलाता है कि देश की आजादी अधूरी है। हम आज भी मानसिक रूप से पूरी तरह से स्वाधीन नहीं हो सके हैं। पराधीनता के बंधन में दास स्वामी की दृष्टि से स्वयं को और अपनी दुनिया को देखने का भी अभ्यस्त हो जाता है। अभ्यास में आने के बाद जब हम उसके आदी हो जाते हैं तो हमारी भावना, विचार और कर्म सभी उससे अनुबंधित हो जाते हैं। उसकी तीव्रता का अहसास भी खत्म होने लगता है और तब दासता दासता नहीं रह जाती। स्वतंत्रता की भ्रामक चेतना में गुलाम अपने आका की खुशी में ही अपनी भी खुशी देखता है। गुलामी की सोच या मनोवृत्ति (माइंड सेट) संकुचित या प्रतिबंधित दृष्टि के साथ बंधी बंधाई लीक पर चलने को बाध्य करती है। अनुगमन और अनुकरण करते रहना अपनी नियति मान कर इस तरह की सोच सर्जनात्मकता से भी विमुख करत...