Friday, November 22"खबर जो असर करे"

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शिक्षा में सृजनात्मकता को अवसर दिया जाए

शिक्षा में सृजनात्मकता को अवसर दिया जाए

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- गिरीश्वर मिश्र औपचारिक शिक्षा और सृजनात्मकता के आपसी सम्बन्ध समाज के वर्तमान और भविष्य के निर्माण के साथ गहनता से जुड़े हुए हैं । शिक्षा में सृजनात्मकता कितनी बची रहेगी और समाहित होगी इस बात पर देश का ही नहीं बल्कि सारी मनुष्यता का भविष्य निर्भर करता है। शिक्षा सृजनात्मकता के साथ शब्द और अर्थ की ही तरह आपस में जुड़ी हुई है । जैसे शब्द और अर्थ एक दूसरे से संपृक्त होते हैं, एक के बिना दूसरे का कोई मूल्य या उपयोगिता नहीं होती, ठीक वैसी ही शिक्षा और सृजनात्मकता भी एक दूसरे से जुड़े और अन्योन्याश्रित होते हैं। बगैर सृजनात्मकता के शिक्षा अर्थहीन होगी और सृजनात्मकता के विकास के लिए शिक्षा और प्रशिक्षण का अवसर भी ज़रूरी होता है। इसलिए शिक्षा की सार्थकता के लिए उसका रचनात्मक और सृजनात्मकता होना ही चाहिए । किंतु जब हम शिक्षा-व्यवस्था में सृजनात्मकता की जगह तलाशते हैं तो विफलता ही हाथ लगती है। रटना...
महंगी शिक्षा, लड़कियों की उच्च शिक्षा में बाधा है

महंगी शिक्षा, लड़कियों की उच्च शिक्षा में बाधा है

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- सपना कुमारी समाज के चतुर्दिक विकास के लिए हर नागरिक को शिक्षित होना जरूरी है. अफसोस है कि आजादी के इतने साल बाद भी हमारे देश के सभी परिवारों तक शिक्षा की पहुंच नहीं हो पायी है. यह शिक्षा पहले कुछ लोगों तक ही सीमित थी. समय ने करवट बदली और आज देश में शिक्षा का प्रचार-प्रसार तेजी से हुआ. आधुनिक युग में लोग शिक्षा का महत्व समझने लगे हैं. एक समय वंचित वर्ग के साथ ही महिलाओं को भी शिक्षा से दूर रखा गया था, लेकिन आज ये तमाम बेड़ियां टूट रही हैं. हर समाज के लोग अब पढ़ने लगे हैं. वास्तव में, एक मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास के लिए शिक्षा का उतना ही महत्व है, जितना जीवन जीने के लिए पानी की आवश्यकता है. शिक्षा हम सभी के भविष्य के लिए एक अहम भूमिका निभाती है. पहले की अपेक्षा आज ग्रामीण क्षेत्रों में भी शिक्षा का महत्व काफी तेजी से बढ़ता जा रहा है. अधिक से अधिक लड़के-लड़कियों को स्कूल से जोड़ने के ...
नये बजट में शिक्षा के लिए प्रावधान नाकाफी हैं

नये बजट में शिक्षा के लिए प्रावधान नाकाफी हैं

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- गिरीश्वर मिश्र भारत का वर्ष 23-24 का राष्ट्रीय बजट अमृत-काल में प्रस्तुत हुआ पहला बजट है। इस अवसर का लाभ लेते हुए सरकार ने इसे भविष्य के शक्तिशाली और समर्थ भारत की आधारशिला के रूप में पेश किया है। इसके अंतर्गत जीवन के सभी क्षेत्रों की जरूरतों को स्पर्श करते हुए संसाधन उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई है। उथल-पुथल के वर्तमान दौर में वैश्विक स्तर पर आर्थिक दृष्टि से आत्म विश्वास से भरी एक बड़ी हैसियत बनती भारत की अर्थव्यवस्था निश्चय ही चकित करने वाली है। इस परिवर्तन को देख-सुन सभी भारतवासी खुश दिख रहे हैं। ‘विकासशील’ की श्रेणी से निकल कर ‘विकसित’ देशों की श्रेणी में पहुँचने के लिए बड़ी छलांग की तैयारी इस बजट में साफ़ झलक रही है। सबको संतुष्ट करने की चेष्टा के साथ गरीब, मध्य वर्ग, अमीर, किसान, व्यापारी, सरकारी मुलाजिम हर किसी की झोली में कुछ न कुछ पहुँचाने की क़वायद इस बजट की एक बड़ी खूबी ह...
अमृतकाल में शिक्षा को जरूरत है संजीवनी की

अमृतकाल में शिक्षा को जरूरत है संजीवनी की

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- गिरीश्वर मिश्र आज के युग में किसी देश की उन्नति बहुत हद तक वहां की शिक्षा की गुणवत्ता पर ही निर्भर करती है। सूचना, ज्ञान और प्रौद्योगिकी की स्पर्धा में ज्यादा से ज्यादा बढ़त पाने को सभी देश आतुर हैं। आज जब देश ‘सशक्त’ और ‘आत्म निर्भर’ बनने को आतुर है तो शिक्षा दशा दिशा पर विचार और भी जरूरी हो जाता है हालांकि भारत ने विद्या, ज्ञान और शिक्षा का भौतिक और पारमार्थिक दोनों स्तरों पर महत्व बहुत पहले से पहचान रखा था। ज्ञान सबसे पवित्र था और ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में जितनी प्रगति थी उसकी बदौलत भारत को विश्व गुरु का दर्जा भी मिला था। परंतु औपनिवेशिक काल में शिक्षा पर ताला ऐसा पड़ा शिक्षा के भारतीय ज्ञान को ले कर जो संशय और उदासीनता हुई और हम ज्ञान के क्षेत्र में अनुकरण करने वाले होते गए। ज्ञान की परनिर्भरता ने सुदृढ़ होती गई और पश्चिम (यूरो-अमेरिकी मॉडल) को एकल, मानक और वैश्विक विकल्प मान ब...
औपनिवेशिकता से उबरने की चुनौती

औपनिवेशिकता से उबरने की चुनौती

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- गिरीश्वर मिश्र भारत में ज्ञान और शिक्षा की परम्परा की जड़ें न केवल गहरी और अत्यंत प्राचीन हैं बल्कि यहां विद्या को अर्जित करना एक पवित्र और मुक्तिदायी कार्य माना गया है । इसके विपरीत पश्चिम में ज्ञान का रिश्ता अधिकार और नियंत्रण के उपकरण विकसित करना माना जाता रहा है ताकि दूसरों पर वर्चस्व और एकाधिकार स्थापित किया जा सके । उसी रास्ते पर चलते हुए पश्चिमी दुनिया में मूल्य-निरपेक्ष विज्ञान के क्षेत्र का अकूत विस्तार होता गया और उसके परिणाम सबके सामने हैं । ऐतिहासिक परिवर्तनों के बीच विज्ञान की यह परम्परा यूरोप और अमेरिका से चल कर दुनिया के अन्य क्षेत्रों में फैली । इतिहास गवाह है कि औपनिवेशक दौर में पश्चिम से लिए गए विचार, विधियाँ और विमर्श अकेले विकल्प की तरह दुनिया के अनेक देशों में पहुँचे और हाबी होते गए । ऐसा करने करने का प्रयोजन ‘अन्य’ के ऊपर आधिपत्य था । इस प्रक्रिया में अंतर्निहित ए...
बजट पूर्व स्वास्थ्य, शिक्षा सहित सामाजिक क्षेत्र के प्रतिनिधियों के साथ विमर्श

बजट पूर्व स्वास्थ्य, शिक्षा सहित सामाजिक क्षेत्र के प्रतिनिधियों के साथ विमर्श

देश, बिज़नेस
नई दिल्ली। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट पूर्व छठी बैठक में स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्रामीण विकास एवं जल और स्वच्छता सहित सामाजिक क्षेत्र के प्रतिनिधियों के साथ विचार-विमर्श किया। सीतारमण ने गुरुवार को यहां वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए आयोजित बजट पूर्व छठी बैठक की अध्यक्षता करते हुए वित्त वर्ष 2023-24 के बजट के कई मसलों पर चर्चा की। वित्त मंत्री के समक्ष स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्रामीण विकास एवं जल और स्वच्छता सहित सामाजिक क्षेत्र के प्रतिनिधियों ने अपनी मांगों को रखा। बजट पूर्व छठी बैठक में निर्मला सीतारमण के साथ केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी और भागवत किशनराव कराड भी शामिल थे। इसके अलावा बैठक में वित्त सचिव टीवी सोमनाथन, वित्त मंत्रालय के अन्य विभागों के सचिव और मुख्य आर्थिक सलाहकार अनंत नागेश्वरन मौजूद रहे। उल्लेखनीय है कि आगामी वित्त वर्ष के लिए सालाना बजट तैयार करने की औ...
शिक्षा के साथ संस्कृति, संस्कार और धर्म जुड़ा है : कैलाश सत्यार्थी

शिक्षा के साथ संस्कृति, संस्कार और धर्म जुड़ा है : कैलाश सत्यार्थी

दिल्ली, देश
नई दिल्ली के पूसा सभागार में ज्ञानोत्सव का शुभारंभ नई दिल्ली। ज्ञानोत्सव ज्ञान का उत्सव ही नहीं, यह ज्ञान का यज्ञ है। सात्विक उद्देश्य से किए जाने वाले यज्ञ में सर्वश्रेष्ठ की आहुति देनी होती है। इस ज्ञानोत्सव में आने वाले साधारण कार्यकर्ता नहीं बल्कि आप भारत के निर्माता हैं। भारतीयता मेरी माँ के स्तन से निकले दूध के समान है। स्तन से निकला दूध रक्त का संचार करता है। भारतीय शिक्षा समावेशिता की यात्रा करती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मूल में सार्वभौमिकता, समता और समग्रता है। विद्या हमारे धर्म का लक्षण हैं। आप सभी श्रेष्ठ भारत के निर्माण में शिक्षा के क्रियान्वयन में भागीदार बने ऐसी आशा करता हूँ। यह उद्गार शिक्षा संस्कृति उत्थान द्वारा गुरुवार को आयोजित तीन दिवसीय ज्ञानोत्सव के शुभारंभ कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप मे नोबेल पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी ने व्यक्त किए। नई दिल्ली के ...
सीयूईटी : शिक्षा में समान अवसर

सीयूईटी : शिक्षा में समान अवसर

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- डॉ. सीमा सिंह बिहार के एक गांव में कोरियन भाषा में अपना भविष्य देखने वाला युवा यह जानता ही नहीं था की जेएनयू के अलावा भी किसी और विश्वविद्यालय में इसकी डिग्री स्तर पर पढ़ाई होती है। जेएनयू में एडमिशन नहीं हो पाने के कारण उसे अपना सपना छोड़ किसी और कोर्स में दाखिला लेना पड़ा। यह किसी एक युवा के साथ नहीं घटता बल्कि अधिकतर इसी समस्या से जूझ रहे हैं। पहली बार देश में सीयूईटी ने सभी युवाओं को ऐसा मंच दिया जहां 44 केंद्रीय विश्वविद्यालय में मौजूद सैकड़ों कोर्सेस को देखा जा सकता है। इनमें से अपने मतलब के कोर्स का चयन कर युवा अपने बेहतर भविष्य के आगे का रास्ता तय कर सकता है । देश का युवा बेहतर भविष्य की चाह में अपने पसंद के कोर्स में एडमिशन लेने के लिए अक्सर अन्य राज्यों का रुख करता है। पुरानी चयन प्रक्रिया जो कट ऑफ के माध्यम से होती थी उसके लिए रोड़ा सिद्ध होती है, क्योंकि उसका बोर्ड अन्य बोर्ड क...
भारत में शिक्षा की दुर्दशा

भारत में शिक्षा की दुर्दशा

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- डॉ. वेदप्रताप वैदिक भारत में शिक्षा की कितनी दुर्दशा है, इसका पता यूनेस्को की एक ताजा रपट से चल रहा है। 75 साल की आजादी के बावजूद एशिया के छोटे-मोटे देशों के मुकाबले भारत क्यों पिछड़ा हुआ है, इसका मूल कारण यह है कि हमारी सरकारों ने शिक्षा और चिकित्सा पर कभी समुचित ध्यान दिया ही नहीं। इसीलिए देश के मुट्ठीभर लोग अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाते हैं और निजी अस्पतालों में अपना इलाज करवाते हैं। देश के 100 करोड़ से भी ज्यादा लोगों के बच्चे उचित शिक्षा-दीक्षा से और वे लोग पर्याप्त चिकित्सा से वंचित रहते हैं। यूनेस्को ने भारत में खोज-पड़ताल करके बताया है कि देश के 73 प्रतिशत माता-पिता अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाना पसंद नहीं करते हैं, क्योंकि वहां पढ़ाई का स्तर घटिया होता है। वहां से पढ़े हुए बच्चों को ऊंची नौकरियां नहीं मिलती हैं, क्योंकि उनका अंग्रेजी ज्ञान कमजोर होता है। हमारी ...