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विशेष: ओजोन परत के बिना समाप्त हो जाएगा पृथ्वी पर जीवन

विशेष: ओजोन परत के बिना समाप्त हो जाएगा पृथ्वी पर जीवन

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- योगेश कुमार गोयल 16 सितंबर 1987 को मॉन्ट्रियल में ओजोन परत के क्षय को रोकने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय समझौता हुआ था, जिसमें उन रसायनों के प्रयोग को रोकने से संबंधित एक बेहद महत्वपूर्ण समझौता था, जो ओजोन परत में छिद्र के लिए उत्तरदायी माने जाते हैं। ओजोन परत कैसे बनती है, यह कितनी तेजी से कम हो रही है और इस कमी को रोकने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं, इसी संबंध में जागरुकता पैदा करने के लिए 1994 से प्रतिवर्ष ‘विश्व ओजोन दिवस’ मनाया जाता है किन्तु चिन्ता की बात यह है कि पिछले कई वर्षों से ओजोन दिवस मनाए जाते रहने के बावजूद ओजोन परत की मोटाई कम हो रही है। प्रतिवर्ष एक विशेष थीम के साथ यह महत्वपूर्ण दिवस मनाया जाता है और इस वर्ष विश्व ओजोन दिवस थीम है ‘मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल: फिक्सिंग द ओजोन लेयर एंड रिड्यूसिंग क्लाइमेट चेंज’ अर्थात ‘मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल: ओजोन परत को ठीक करना और जलवायु परिवर्...
पर्यावरण ही जीवन का स्रोत है

पर्यावरण ही जीवन का स्रोत है

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- गिरीश्वर मिश्र हमारा पर्यावरण पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश इन पंच महाभूतों या तत्वों से निर्मित है। आरम्भ में मनुष्य इनके प्रचंड प्रभाव को देख चकित थे। ऐसे में यदि इनमें देवत्व के दर्शन की परम्परा चल पड़ी तो कोई अजूबा नहीं है। आज भी भारतीय समाज में यह एक स्वीकृत मान्यता के रूप में आज भी प्रचलित है। अग्नि, सूर्य, चंद्र, आकाश, पृथ्वी, और वायु आदि ईश्वर के ‘प्रत्यक्ष’ तनु या शरीर कहे गए है। अनेकानेक देवी-देवताओं की संकल्पना प्रकृति के उपादानों से की जाती रही है जो आज भी प्रचलित है। शिव पशुपति और पार्थिव हैं तो गणेश गजानन हैं। सीताजी पृथ्वी माता से निकली हैं। द्रौपदी यज्ञ की अग्नि से उपजी ‘याज्ञसेनी’ हैं। वैसे भी पर्यावरण का हर पहलू हमारे लिए उपयोगी है और जीवन को सम्भव बनाता है। वनस्पतियाँ हर तरह से लाभकर और जीवनदायी हैं। वृक्ष वायु-संचार के मुख्य आधार हैं। शीशम और सागौन के वृक्ष सिर्फ ...
पर्यावरण संरक्षण से ही होगी पृथ्वी की सुरक्षा

पर्यावरण संरक्षण से ही होगी पृथ्वी की सुरक्षा

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- रमेश सर्राफ धमोरा हमारी धरती, जनजीवन को सुरक्षित रखने के लिए पर्यावरण का सुरक्षित रहना बहुत जरूरी है। पूरी दुनिया आधुनिकता की ओर बढ़ रही हैं। दुनियाभर में हर दिन ऐसी चीजों का इस्तेमाल बढ़ रहा है जिससे पर्यावरण खतरे में है। इंसान और पर्यावरण के बीच गहरा संबंध है। प्रकृति के बिना जीवन संभव नहीं। ऐसे में प्रकृति के साथ इंसानों को तालमेल बिठाना होता है। लेकिन लगातार वातावरण दूषित हो रहा है। जिससे कई तरह की समस्याएं बढ़ रही हैं। जो हमारे जनजीवन को तो प्रभावित कर ही रही हैं। साथ ही कई तरह की प्राकृतिक आपदाओं की भी वजह बन रही है। सुखी स्वस्थ जीवन के लिए पर्यावरण का संरक्षण जरूरी है। इसी उद्देश्य से हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इस दिन लोगों को विभिन्न कार्यक्रमों के जरिये प्रकृति को संरक्षित रखने और इससे खिलवाड़ न करने के लिए जागरूक किया जाता है। इन कार्यक्रमों के जरिये लोगों...
क्यों कोई जैव विविधता को बचाए?

क्यों कोई जैव विविधता को बचाए?

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- डॉ. सुशील द्विवेदी हमारे पृथ्वी ग्रह पर जीवन संतुलन को बनाए रखने के लिए बायोडायवर्सिटी अर्थात जैव विविधता बहुत आवश्यक है। यह पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की आधारशिला है। दुनिया भर में रहने वाले लगभग आठ अरब लोग लगातार धरती की धरोहर का उपभोग कर रहे हैं। जब हम बायोडाइवर्सिटी की बात करते हैं तब हमारा इशारा, धरती पर मौजूद तमाम जीवों और जैवप्रणालियों की जीवविज्ञानी (बायोलॉजिकल) और आनुवंशिक (जेनेटिक) विविधता से होता है। जैव विविधता के अन्तर्गत जीवित जीवधारियों पेड़-पौधों और पशु-पक्षियों के अलावा फफूंद और मिट्टी में मिलने वाले सूक्ष्मजीवी बैक्टीरिया भी शामिल हैं। वे पूरी दुनिया की उन तमाम व्यापक इको प्रणालियों का हिस्सा हैं जो बर्फीले अंटार्कटिक, ट्रॉपिकल वर्षावनों, सहारा रेगिस्तान, मैंग्रोव वेटलैंड, मध्य यूरोप के पुराने बीच वनों और समुद्री और तटीय इलाकों की विविधता से भरा है। ये बायोडायवर्सिटी ज...
धरती की रक्षा वैश्विक दायित्व है

धरती की रक्षा वैश्विक दायित्व है

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- गिरीश्वर मिश्र आज पर्यावरण का क्षरण और प्रदूषण तेजी से विकराल हो रहा है और विश्व के सभी देश विकट चुनौती से जूझ रहे हैं। भारत ने पर्यावरण और पर्यावरण की नैतिकता, प्रकृति के स्वरूप और महत्व को गहराई से अंगीकार किया था। यहां समस्त जगत में ईश्वर की उपस्थिति की अनुभूति की जाती रही है : ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किंचित जगत्यां जगत। फलतः प्रत्येक वस्तु पवित्र और धरती को माता कहा गया। प्रातःकाल उठ कर बिस्तर से उतार कर धरती पर पैर रखने के पहले पृथ्वी को प्रणाम करने और पैर रखने की विवशता के लिए क्षमा मांगते हुए यह कहने का विधान है ; समुद्र वसने देवि पर्वतस्तनमंडिते । विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे ।। अर्थात समुदरूपी वस्त्रोंको धारण करनेवाली, पर्वतरूपस्तनों से मंडित भगवान विष्णुकी पत्नी पृथ्वी देवि! आप मेरे पाद-स्पर्श को क्षमा करें। उपर्युक्त भावना हिन्दू , बौद्ध और जैन सभी भारतीय धर्...
पृथ्वी की पीड़ा को समझें

पृथ्वी की पीड़ा को समझें

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- हृदयनारायण दीक्षित भारतीय विवेक और श्रद्धा में पृथ्वी माता हैं। पृथ्वी को मां मानने और जानने की अनुभूति केवल भारत में है। हम सब पृथ्वी पुत्र हैं। इसी में जन्म लेते हैं। पृथ्वी ही पालती है। यही पोषण करती है। लेकिन दूषित पर्यावरण के कारण पृथ्वी का अस्तित्व संकट में है। सारी दुनिया का ताप बढ़ रहा है। पर्यावरण संरक्षण वैज्ञानिकों के सामने भी बड़ी चुनौती है। आज से 18 साल पहले 2005 में संयुक्त राष्ट्र का सहस्त्राब्दी पर्यावरण आकलन (मिलेनियन इकोसिस्टम असेसमेंट) आया था। यह एक गंभीर दस्तावेज था और है। इस अनुमान में कहा गया था कि पृथ्वी के प्राकृतिक घटक अव्यवस्थित हो गए हैं। यह अनुमान 18 वर्ष पुराना है। इसके पूर्व सन 2000 में भी पेरिस के `अर्थ चार्टर कमीशन' ने पृथ्वी और पर्यावरण संरक्षण के 22 सूत्र निकाले थे। लेकिन इस दिशा में कोई महत्वपूर्ण काम नहीं हुआ। कोई ठोस संकल्प नहीं लिए गए। वैसे वैदिक सा...
मूल धर्म में वापसी का स्वागत होना चाहिए

मूल धर्म में वापसी का स्वागत होना चाहिए

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- डॉ. मोक्षराज मजहबी कट्टरवाद ने धरती को नरक बना दिया है। मनमालिन्य से उत्पन्न घृणा एवं वर्चस्व के खोखले लक्ष्य मनुष्य के जीवन में भय, अविश्वास एवं हिंसा के बीज बो रहे हैं। कितना अच्छा हो कि सम्पूर्ण धरती पर रहने वाले सभी मनुष्य एक-दूसरे के प्रति ऐसी दया व सहानुभूति रखें, जैसी कि वे स्वयं के प्रति चाहते हैं। यह धरती सबका पोषण करने में सक्षम है, किंतु मूर्ख, धूर्त, क्रूर, स्वार्थी एवं अदूरदर्शी मुट्ठीभर मजहबी ठेकेदार इस धरती को स्वर्ग बनाने में बहुत-बड़े अवरोध हैं। वसुधैव कुटुम्बकम के उदार वाक्य की समझ विकसित होने में इन पढ़े-लिखे गंवारों को बहुत समय लगेगा। मित्रो ! इस बात को कभी झुठलाया नहीं जा सकता कि विश्व में वेद से पुराना व सार्वभौमिक कोई ज्ञानग्रंथ नहीं है। करोड़ों वर्ष पुराने वैदिक काल में कोई मत-सम्प्रदाय या मजहब नहीं था। इसलिए वेदों में केवल मनुष्य को सच्चा व अच्छा मनुष्य बनने की...
46 साल में ऐसे नीले से लाल होती चली गई धरती, NASA ने निकाला गर्मी का नक्शा

46 साल में ऐसे नीले से लाल होती चली गई धरती, NASA ने निकाला गर्मी का नक्शा

विदेश
पासाडेना । जून और जुलाई 2022 में तापमान इतना बढ़ा कि यूरोप (Europe), उत्तरी अफ्रीका (North Africa), मिडल-ईस्ट (Middle-East) और एशिया (Asia) के कई इलाकों में पारा 40 डिग्री सेल्सियस पार कर गया. कई जगहों पर तो पारे ने थर्मामीटर का रिकॉर्ड तोड़ डाला. यह जो नक्शा आप देख रहे हैं, यह 13 जुलाई 2022 का है. इसमें धरती के पूर्वी गोलार्ध के ऊपर सरफेस एयर टेंपरेचर दिखाया गया है. जो 40 डिग्री सेल्सियस के ऊपर है. इस नक्शे को गोडार्ड अर्थ ऑब्जरविंग सिस्टम (GOES) के ग्लोबल मॉडल से प्राप्त डेटा से बनाया गया है. इन नक्शे के मुताबिक वायुमंडल में बढ़ी हुई गर्मी और स्थानीयता आधार पर तापमान निकाला गया है. नासा गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर में ग्लोबल मॉडलिंग एंड एसिमिलेशन के प्रमुख स्टीवन पॉसन ने कहा कि आप इस नक्शे में लाल रंग वाले गर्म और नीले रंग वाले ठंडे इलाके स्पष्ट तौर पर देख सकते हैं. स्टीवन ने कहा कि इंस...