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यह संसार शब्दों का ही मेला है

यह संसार शब्दों का ही मेला है

अवर्गीकृत
- हृदयनारायण दीक्षित शब्दों की भीड़। दशों दिशाओं से हमारी ओर आते गतिशील शब्द। पूरब से आते शब्द पश्चिम से आते शब्दों से टकराते हैं, मिलते हैं। इसी तरह उत्तर दक्षिण सहित सभी दिशाओं से भी। भारतीय चिन्तन में आकाश का गुण शब्द कहा गया है। शब्द ध्वनि ऊर्जा हैं। शब्द पहले अरूप थे। लिपि नहीं थी। सिर्फ बोले सुने जाते थे। वे संवेदन प्रकट करने का माध्यम थे। फिर हर्ष, विषाद, क्रोध और बोध आदि भाव प्रकट करने का माध्यम बने। विश्व शब्द भंडार बढ़ता रहा। मुझे लगता है कि यह संसार शब्दों का ही मेला है। तत्सम्, तद्भव यहां मिलते हैं, छोटाई बड़ाई त्याग कर। हरेक रूप के लिए शब्द। जितने रूप उतने शब्द। फिर लिपि बनी उनका रूप बना। उनकी छपाई की तकनीकी विकसित हुई। शब्द संचय पुस्तक बने। पुस्तकें भाव संवेदन, विषाद, प्रसाद और हर्ष उल्लास की भी प्राणवान काया बनी। पुस्तकें ज्ञान संचय हैं। संप्रति भारत की राष्ट्रीय राजधानी में...