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भाजपा को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने से क्या फर्क पड़ता है ?

भाजपा को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने से क्या फर्क पड़ता है ?

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- डॉ. मयंक चतुर्वेदी लोकसभा चुनाव-2024 में जिस तरह का चुनावी परिणाम आया है, उसने अच्छे-अच्छे राजनीतिक विश्लेषकों को धूल चटा दी है, एनडीए नीत भाजपा की मोदी सरकार को 300 पार के सभी बड़े-बड़े दावे धरे रह गए और देश की जनता ने मजबूत विपक्ष देकर यह संदेश देने की कोशिश की है कि सहमति और विरोध का स्वर बराबर का हो, किंतु इसके साथ ही अनेक प्रश्न आज इस बार के चुनावों ने भारतीय राजनीति के लिए समीक्षा करने की दृष्टि से छोड़ दिए है । देश में नया नैरेटिव यह है कि किसी को भी भारत की जनता लोकतंत्र में इतना मजबूत नहीं देखना चाहती कि वह अन्य को छोटा समझने की मानसिकता रखे या उनके बारे में थोड़ा भी कमजोर सोच पाए, लेकिन इसके साथ जो बड़ा प्रश्न आज खड़ा हो गया है, वह है कमजोर सत्ता क्या एक सबल राष्ट्र के निर्माण में अपनी प्रभावी भूमिका निभा सकती है ? यह आज सभी के सामने है कि कैसे जनता ने भाजपा को पूरी तरह अ...
राष्ट्र और नेशन में फर्क समझिए

राष्ट्र और नेशन में फर्क समझिए

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- हृदयनारायण दीक्षित हिन्दू राष्ट्र सम्प्रति चर्चा में है। भारत विश्व का पहला राष्ट्र है। यूरोप के देशों में ‘नेशन’ और नेशनेलिटी का जन्म 9वी-10वीं सदी में हुआ। भारत में राष्ट्रभाव का उदय ऋग्वेद के रचनाकाल से भी प्राचीन हो सकता है। ऋग्वेद में ‘राष्ट्र’ शब्द का कई बार उल्लेख हुआ है। राष्ट्र के लिए अंग्रेजी में कोई समानार्थी शब्द नहीं है। राष्ट्र की अवधारणा भिन्न है और नेशन की बिल्कुल भिन्न। राष्ट्र और नेशन एक नहीं हैं। इतिहास के मध्यकाल तक पश्चिम में नेशलिज्म या राष्ट्रवाद जैसा कोई विचार नहीं था। ऋग्वेद (8.24.27) में मंत्र है कि “इन्द्र ने सप्तसिन्धुषु में जल प्रवाहित किया।” सप्त सिंधु 7 नदियों के प्रवाह वाला विशेष भूखण्ड है। इसकी पहचान 7 नदियों से होती है। वैदिक साहित्य के विवेचक मैक्डनल और कीथ ने लिखा है कि “यहां एक सुनिश्चित देश का नाम लिया गया है।” पुसाल्कर ने नदी नामों के आधार पर इस...

आजादी के अमृत और गुलामी के विष का फर्क तो समझें

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- सियाराम पांडेय'शांत' आजादी मन का विषय है। यह तन और धन का विषय है ही नहीं। हालांकि तन, मन और धन एक-दूसरे के पूरक हैं। एक-दूसरे से जुड़े हैं। इनमें से एक भी कम हो तो बात बिगड़ जाती है और बिगड़ी बात कभी बनती नहीं। उसी तरह जैसे बिगड़े हुए दूध से मक्खन नहीं बनता। मतभेद तो फिर भी दूर किए जा सकते हैं लेकिन मनभेद को दूर करना किसी के भी वश का नहीं। इस साल भारत अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। तिरंगा यात्रा निकाल रहा है। देश के हर घर, हर संस्थान पर तिरंगा लहरा रहा है। कुछ राजनीतिक दल अगर राष्ट्रध्वज बांट रहे हैं तो कुछ इस पर टिप्पणी भी कर रहे हैं। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव कह रहे हैं कि तिरंगे की आड़ में भाजपा अपने पाप छिपा रही है। तिरंगा उसे अपने कार्यालयों पर लगाना चाहिए। पार्टी का झंडा उतारकर लगाना चाहिए। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और खंडित शिवसेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे कह र...