नई शिक्षा नीति और सीखने-सिखाने की संस्कृति का विकास
- गिरीश्वर मिश्र
कहा जाता है धरती पर ज्ञान जैसी कोई दूसरी पवित्र वस्तु नहीं है। भारत में प्राचीनकाल से ही न केवल ज्ञान की महिमा गाई जाती रही है बल्कि उसकी साधना भी होती आ रही है। इस बात का असंदिग्ध प्रमाण देती है काल के क्रूर थपेड़ों के बावजूद अभी भी शेष बची विशाल ज्ञान राशि। अनेकानेक ग्रंथों तथा पांडुलिपियों में उपस्थित यह विपुल सामग्री भारत की वाचिक परम्परा की अनूठी उपलब्धि के रूप में वैश्विक स्तर पर अतुलनीय और आश्चर्यकारी है। यह हमारे लिए सचमुच गौरव का विषय है कि आज जैसी उन्नत संचार तकनीकी के अभाव में भी मानव स्मृति में भाषा के कोड में संरक्षित होकर यह सब जीवित रह सका।
इस परम्परा में मनुष्य के जीवन में होने वाले आरम्भ में विकास और उत्तर काल में ह्रास की अकाट्य सच्चाई को स्वीकार करते हुए मनुष्य को जीने के लिए तैयार करने की व्यवस्था की गई थी। ज्ञान केंद्रित भारतीय संस्कृति के अंतर्गत अभ...