Friday, September 20"खबर जो असर करे"

Tag: Democracy

अभिनय का रंगमंच नहीं संसद

अभिनय का रंगमंच नहीं संसद

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- गिरीश्वर मिश्र संसद लोकतंत्र का मंदिर है जहां देश की जनता के कल्याण से जुड़े विषयों पर गहन चर्चा की जाती है और जरूरी फैसले लिए जाते हैं। वहीं भारत का संविधान अंगीकृत किया गया था और अभी भी वहाँ कानून बनाए जाते हैं जिनका राष्ट्रीय जीवन और अंतरराष्ट्रीय सम्बन्ध के लिए बड़ा महत्व होता है। इस तरह संसद एक बेहद गंभीर परिवेश में जिम्मेदारी से काम करने का परिसर होता है। देश की जनता अनुभव कर रही है कि विगत वर्षों में संसद में माननीय जन प्रतिनिधियों का आचरण शिष्टाचार और संसदीय कार्यकलाप की मर्यादाओं को सुरक्षित रखने में लगातार गिरावट दर्ज कर रहा है। विपक्ष के लिए संसद आंदोलन का रंगमंच होता जा रहा है। विरोध जताने का विपक्ष का अधिकार है और वह उनका कर्तव्य भी है। इसका अतिरेक और उद्दंडता जैसा रुख अख्तियार करना किसी भी तरह शोभा नहीं देता। पर इससे संगीन बात यह है कि संसद के सदनों की कार्यवाही को रोकना...
लोकतंत्र में अपनी बात कहने के कई रास्ते, संविधान के आधार स्तम्भ को तो मत हिलाओ!

लोकतंत्र में अपनी बात कहने के कई रास्ते, संविधान के आधार स्तम्भ को तो मत हिलाओ!

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- डॉ. मयंक चतुर्वेदी संसद को लोकतंत्र के मंदिर के रूप में देखा जाता है। भारतीय संसद न सिर्फ कानून बनाती है, बल्कि देश कैसे चलेगा, भारत के लोक का भविष्य क्या होना चाहिए, उसके लिए कौन से निर्णय लेने के साथ समाज की व्यवस्थाओं से लेकर लोक कल्याणकारी राज्य शासन के लिए जो भी कुछ श्रेष्ठ किया जा सकता है या किया जाना चाहिए वह सभी निर्णय लेने और उसके लिए कोष उपलब्ध कराने का काम यही संसद करती है। ऐसे में राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ की मिमिक्री करने का जो मामला हुआ है, उसने आज बहुत कुछ सोचने में मजबूर कर दिया है। क्या हम ऐसा करके अपनी ही संवैधानिक संस्थाओं की मर्यादा तार-तार नहीं कर रहे? अभी यही काम संविधान की एक अन्य स्तम्भ कही जानेवाली न्यायपालिका के प्रमुख को लेकर किया जाता तो क्या होता? आप विचार करिए। इस मामले में स्थिति की गंभीरता समझिए कि देश की 'राष्ट्रपति' तक को कहना पड़ रहा है कि जो...
चुनावी पिटारा कितना सहारा !

चुनावी पिटारा कितना सहारा !

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- गिरीश्वर मिश्र चुनाव को लोकतंत्र का पवित्र महोत्सव कहा जाता है । अब इसकी संस्कृति का पूरी तरह से कायाकल्प हो गया है । चुनाव आने के थोड़े दिन पहले गहमा-गहमी तेज होती है और अंतिम कुछ दिनों में हाईकमान अपने कंडिडेट का ऐलान करता है । साथ ही भूली बिसरी जनता की सुधि आती है। चुनाव आते ही सभी राजनीतिक दल अपना-अपना जादू का पिटारा खोलते है और उनकी सोई हुई जन-संवेदना जागती है । आहत जनता को राहत देने के लिए कमर कसते हुए सभी दल सुविधाओं की फेहरिस्त तैयार करने में जुट जाते हैं । रेल , सड़क , स्कूल , अस्पताल , नौकरी , कर्ज यानी जीने के लिए जो भी चाहिए उस सूची में शामिल किया जाता है । चुनावी राज्यों में पुलिस द्वारा करोड़ों रुपयों की जब्ती और शराब की आवाजाही आम बात हो गई है जिनका कोई दावेदार नहीं मिलता । यह सब इसलिए होता है ताकि जनता को अधिकाधिक मात्रा में लुभाया जा सके । जन-प्रलोभनों की यह अजीबोगरीब...
लोकतंत्र में नेताओं की जन छवि का सवाल

लोकतंत्र में नेताओं की जन छवि का सवाल

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- प्रभुनाथ शुक्ल भारतीय लोकतंत्र जागरूक और मजबूत है। यह सुखद और भविष्य के लिए अच्छी बात है। लेकिन हमारे राजतंत्र में राजनेताओं की स्थिति और छवि क्या बनती जा रही है, यह बड़ा सवाल है। लोकतंत्र को राजनेता नहीं जनता खुद धोखा दे रही है। जिसके हाथ में हम सत्ता सौंपने जा रहे हैं उसकी जन छवि क्या है। राजनीति में रहते हुए उसने कौन-सा विकास कार्य किया है। पांच साल के लिए जिस पर हमने भरोसा जताया वह हमारे लिए कितना खरा उतरा। समस्याओं का समाधान एवं चुनावी वायदों की गाड़ी कहां तक पहुंची, इसका खयाल हमें नहीं रहता। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की हालिया रिपोर्ट हमारे जनतंत्र का होश उड़ाने वाली है। लेकिन, वह हमारे लिए इतनी चिंता का विषय नहीं होगी। हमें सिर्फ शोर में जीने की आदत हो गई है। हम जमीन पर खड़े हैं कि नहीं यह आकलन भी हमें नहीं है। क्योंकि हम खुद अपनी चिंताओं में उलझे हैं कि देश और समा...
राहुल गांधी का ‘हिट’ पश्चिम बंगाल पर ‘फिट’

राहुल गांधी का ‘हिट’ पश्चिम बंगाल पर ‘फिट’

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- डॉ. दिलीप अग्निहोत्री तीर की तरह बयान भी कई बार गलत निशाने पर लग जाते हैं। राहुल गांधी के ब्रिटेन से लेकर अमेरिका तक में दिए गए बयानों का भी यही अंजाम हुआ। भारत का नाम लेकर उन्होंने नरेन्द्र मोदी पर निशाना लगाया। लेकिन उनके बयान पश्चिम बंगाल पर फिट हो गए। निशाने पर ममता बनर्जी आ गईं। राहुल गांधी ने विदेशों में आरोप लगाए थे कि भारत में लोकतंत्र को समाप्त किया जा रहा है। वह अपने बयान के समर्थन में कोई उचित प्रमाण नहीं दे सके थे। इसके साथ ही उन्होंने कहा था कि भारत में कुछ लोगों को निशाना बनाया जा रहा है। राहुल के ये बयान भारत पर तो लागू नहीं हुए, लेकिन पश्चिम बंगाल में पूरी तरह चरितार्थ हुए हैं। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव इसका प्रमाण है। शांति पूर्ण और निष्पक्ष चुनाव कराने में प्रदेश सरकार पूरी तरह विफल रही। हिंसा और उपद्रव के माहौल में निष्पक्ष चुनाव सम्भव भी नहीं होते। इस चुनाव में बैलेट स...
आपातकालः लोकतंत्र पर जबरदस्त आघात

आपातकालः लोकतंत्र पर जबरदस्त आघात

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- सुरेश हिंदुस्थानी सत्ता की ताकत का दुरुपयोग कैसे किया जाता है, इसका उदाहरण कांग्रेस सरकार द्वारा 1975 में देश पर तानाशाही पूर्वक लगाया गया आपातकाल है। जिसमें अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार ही समाप्त कर दिया था। इसे एक प्रकार से देश की आजादी को छीनने का दुस्साहसिक प्रयास भी माना जा सकता है। क्योंकि इंदिरा शासन द्वारा देश पर थोपे गए आपातकाल में सरकार के विरोध में आवाज उठाने को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया था। यहां तक कि सरकार ने विपक्ष की राजनीति करने वालों के साथ ही उन समाजसेवियों और राष्ट्रीय विचार के प्रति समर्पित उन संस्थाओं के व्यक्तियों को जेल में ठूंस दिया था, जो सरकार की कमियों के विरोध में लोकतांत्रिक तरीके से आवाज उठा रहे थे। सरकार के इस कदम को पूरी तरह से अलोकतांत्रिक कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इंदिरा गांधी की सरकार ने अपनी सरकार के खिलाफ उठने वाली हर उस आवाज को दबान...
हमारा लोकतंत्र कैसे सुधरे?

हमारा लोकतंत्र कैसे सुधरे?

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- डॉ. वेदप्रताप वैदिक भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। कई देशों में लोकतंत्र खत्म हुआ और तानाशाही आ गई लेकिन भारत का लोकतंत्र जस का तस बना हुआ है लेकिन क्या इस तथ्य से हमें संतुष्ट होकर बैठ जाना चाहिए? नहीं, बिल्कुल नहीं। भारतीय लोकतंत्र ब्रिटिश लोकतंत्र की नकल पर गढ़ा गया है। लंदन का राजा तो नाम मात्र का होता है लेकिन भारत में पार्टी-नेता सर्वेसर्वा बन जाते हैं। सभी पार्टियां प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों की तरह या तो कुछ व्यक्तियों या कुछ परिवारों की निजी संपत्तियां बन गई हैं। उनमें आंतरिक लोकतंत्र शून्य हो गया है। चुनाव से जो सरकारें बनती हैं, वे बहुमत का प्रतिनिधित्व क्या करेंगी? उन्हें कुल मतदाताओं के 20 से 30 प्रतिशत वोट भी नहीं मिलते और वे सरकारें बना लेती हैं। हमारी संसद और विधानसभाओं को पक्ष और विपक्ष के दल एक अखाड़े में तब्दील कर डालते हैं। चुनाव में खर्च होने वाले अरबों-ख...
ग्लोबल इंडेक्स का नापाक खंजर..!

ग्लोबल इंडेक्स का नापाक खंजर..!

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- कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल आज हम रास्ते से गुजर रहे थे, तभी लोकतन्त्र कक्का से भेंट हो गई। चूंकि लोकतन्त्र कक्का हमारे पुराने परिचित हैं इसलिए हमने उनको सदा की भाँति प्रणाम किया। कक्का ने हालचाल लेते हुए पूछा- बिटवा, आज बहुत दिन बाद मिले। वैसे आजकल तुम रहते कहाँ हो ? तुम्हारा कुछ अता-पता नहीं चलता। हमने कक्का से कहा- हमारा हाल आपसे कहाँ छिपा है, वैसे भी आप मेरे बारे में सब जानते ही हैं। लेकिन कक्का एक बात बताइए आजकल देश में बड़ी टेंशन चल रही है। क्या बिटवा - क्या बताओ..! उन्होंने आश्चर्य भरी नजर से पूछा। क्या बताएं कक्का - आजकल एक ग्लोबल हंगर इंडेक्स ने देश को 109 वां नम्बर दे दिया है। राजनीति के बाजार में बड़ा तूफान मचा हुआ है। उछलकूद और बहसबाजी इसी पर चल रही। कक्का ने ऊर्ध्व साँस भरी और कहा- अच्छा इस मामूली बात में हलाकान हो रहे हो। कक्का पूरी राजनीति इसकी मुनादी करते हुए 'सियासी रोटिय...

मतदाता की विशिष्ट पहचान, रुकेगा फर्जी मतदान

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- ऋतुपर्ण दवे भारत में फर्जी मतदान और दो जगहों पर दर्ज मतदाता, लोकतंत्र के लिए शुरू से बड़ी चुनौती रहे हैं। लेकिन अब बहुत जल्द यह सब बीते दिनों की बातें होकर रह जाएंगी। निश्चित रूप से इसके लिए तकनीक का ही सहारा होगा। यह दौर दुनिया में तकनीक का है। पहचान से लेकर सुरक्षा और आम जीवन के हर क्षेत्र में तकनीक बेहद उपयोगी साबित हो रही है। तकनीक के चलते ही डिजिटल से लेकर कैशलेस और पेपरलेस होने की अवधारणा न केवल सही हुई है बल्कि काफी हद तक करोड़ों-करोड़ पेड़ों को बचाकर पर्यावरण के लिए भी उपयोगी साबित हुई। ऐसे में बहुत जल्द ही वह दौर आएगा जब हरेक इंसान यहाँ तक कि हर किसी की चाहे वस्तु हो या इंसान या जीव-जन्तु सबकी पहचान बस कोडिंग से होगी। इसकी शुरुआत हो चुकी है और तेजी से हर रोज दुनिया भर में विस्तार हो भी रहा है। यदि सब कुछ ऐसा ही चलता रहा तो जो बचा-खुचा है वह तेजी से कोडिंग या नंबरों की दुनिया म...