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जातीय राजनीति की मानसिकता से कब उबरेंगे !

जातीय राजनीति की मानसिकता से कब उबरेंगे !

अवर्गीकृत
- गिरीश्वर मिश्र लोकतंत्र की व्यवस्था में राजनीति समाज की उन्नति के लिए एक उपाय के रूप में अपनाई गई । इसलिए सिद्धांततः उसकी पहली और अंतिम प्रतिबद्धता और जिम्मेदारी जनता और देश के साथ बनती है । दुर्भाग्यवश आज की दलगत राजनीति के चलते एक-दूसरे के साथ उठने वाली वर्चस्व की प्रतिस्पर्धा के बीच नेतागण राजनीति के इस बड़े प्रयोजन से आसानी से आंख मूंद लेते हैं । दूसरी ओर वे ऐसे मुद्दों और प्रश्नों को लेकर चिंताओं और विमर्शों को जीवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते जिनके सहारे उनके पक्ष की कुछ पुष्टि होती दिखती है या फिर मीडिया में चर्चा के बीच बने रहने के लिए कुछ जगह मिल जाती है । इस सिलसिले में ताजी हलचल जाति की प्रतिष्ठा को लेकर मची हुई है । हमारे राजनेता जाति को लेकर बड़े ही संवेदनशील रहते हैं क्योंकि वे एक ओर जाति का विरोध करते नहीं थकते क्योंकि वह अनेक विषमताओं का कारण मानी जाती है । एक सामाजिक...