Friday, September 20"खबर जो असर करे"

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धरती की रक्षा वैश्विक दायित्व है

धरती की रक्षा वैश्विक दायित्व है

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- गिरीश्वर मिश्र आज पर्यावरण का क्षरण और प्रदूषण तेजी से विकराल हो रहा है और विश्व के सभी देश विकट चुनौती से जूझ रहे हैं। भारत ने पर्यावरण और पर्यावरण की नैतिकता, प्रकृति के स्वरूप और महत्व को गहराई से अंगीकार किया था। यहां समस्त जगत में ईश्वर की उपस्थिति की अनुभूति की जाती रही है : ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किंचित जगत्यां जगत। फलतः प्रत्येक वस्तु पवित्र और धरती को माता कहा गया। प्रातःकाल उठ कर बिस्तर से उतार कर धरती पर पैर रखने के पहले पृथ्वी को प्रणाम करने और पैर रखने की विवशता के लिए क्षमा मांगते हुए यह कहने का विधान है ; समुद्र वसने देवि पर्वतस्तनमंडिते । विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे ।। अर्थात समुदरूपी वस्त्रोंको धारण करनेवाली, पर्वतरूपस्तनों से मंडित भगवान विष्णुकी पत्नी पृथ्वी देवि! आप मेरे पाद-स्पर्श को क्षमा करें। उपर्युक्त भावना हिन्दू , बौद्ध और जैन सभी भारतीय धर्...
भारत के मूल में मानवाधिकार की अवधारणा

भारत के मूल में मानवाधिकार की अवधारणा

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- रमेश सर्राफ धमोरा कुछ अधिकार ऐसे होते हैं जो व्यक्ति को जन्मजात मिलते हैं। उन अधिकारों का व्यक्ति के आयु, प्रजातीय मूल, निवास-स्थान, भाषा, धर्म पर कोई असर नहीं पड़ता। इतिहास गवाह है की भारत ने कभी भी संस्कृति, धर्म या अन्य कारकों के आधार पर दूसरों को अपने अधीन करने की कोशिश नहीं की है। भारत एक ऐसा देश है जिसके मूल में मानवाधिकार की अवधारणा है। भारत के लोग मानवाधिकारों का सम्मान करते हैं और उनकी रक्षा करने का संकल्प भी लेते हैं। भारत विश्व स्तर पर आज भी मानवाधिकार का समर्थन करता रहा है। मानव अधिकार वे मूल अधिकार हैं, जो इस धरती पर प्रत्येक व्यक्ति के पास हैं। मानवाधिकार मौलिक अधिकार और स्वतंत्रता हैं। मानवाधिकारों में जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार, गुलामी और यातना से मुक्ति, राय और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, काम और शिक्षा का अधिकार और बहुत कुछ शामिल हैं। बिना किसी भेदभाव के हर कोई इन अधिकार...
प्रदूषण से माता पृथ्वी की रक्षा हम सबका राष्ट्रधर्म

प्रदूषण से माता पृथ्वी की रक्षा हम सबका राष्ट्रधर्म

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- हृदय नारायण दीक्षित पृथ्वी का अस्तित्व संकट में है। पर्यावरण विश्व बेचैनी है। भारत में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण चिंताजनक है। प्रातः टहलने वाले लोग प्रदूषित वायु में सांस लेने को बाध्य हैं। काफी लम्बे समय से अक्टूबर- नवम्बर के महीनों में भारत के बड़े हिस्सों में वायु प्रदूषण बढ़ जाता है। पराली जलाने सहित इस प्रदूषण के अनेक कारण हैं। क्षिति, जल, पावक, गगन व समीर अव्यवस्थित हो रहे हैं। तुलसीदास ने रामचरितमानस में पृथ्वी संकट का उल्लेख किया है। लिखा है, ‘‘अतिशय देखि धरम कै हानी/परम सभीत धरा अकुलानी- धर्म की ग्लानि को बढ़ते देखकर पृथ्वी भयग्रस्त हुई। देवों के पास पहुंची। अपना दुःख सुनाया- निज संताप सुनाइस रोई।- पृथ्वी ने रोकर अपना कष्ट बताया। शंकर ने पार्वती को बताया कि वहां बहुत देवता थे। मैं भी उनमें एक था। तुलसी के अनुसार आकाशवाणी हुई, ‘‘हे धरती धैर्य रखो। मैं स्वयं सूर्यवं...