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दीपपर्व: दीपावली एक उत्प्रेक्षा है

दीपपर्व: दीपावली एक उत्प्रेक्षा है

अवर्गीकृत
- प्रो. रवींद्र नाथ श्रीवास्तव 'परिचय दास' दीपावली एक मंगल है। दीपावली एक उत्प्रेक्षा है। उस बहाने हम जीवन के रंग-बिरंगे पहलुओं पर सोच पाते हैं। ऐसे पर्व जीवन को उत्सव बना देते हैं। आजकल 'उत्सव' शब्द काफी चला हुआ लगता है परंतु मनुष्य की उत्सवधर्मिता का अंत नहीं। बाहरी और भीतरी दोनों तरह के प्रसंग जीवन को गतिशील उत्सव में बदल देते हैं। बाहर के मेले के साथ भीतर का मेला। लिखी जा रही बाहरी कविता और अलिखित भीतरी कविता दोनों इस दीपावली को उत्प्रेक्षा देते हैं। एक रूपक निरंतर चलता रहता है। अंधेरे और उजाले के द्वंद्व के रूप में। दोनों के उपयोग हैं। यदि उजाला न हो जीवन का संसार न चले और उजाला चकाचौंध में बदल जाए तो जीना मुश्किल। अंधेरा ही अंधेरा हो क्लोरोफिल न बने, जीवन असंभव हो जाए और रात को शांत अंधेरा न हो तो सुकून न मिले। अंधेरे-उजाले की धूप छांव से क्षण-क्षण की नूतनता बनती है। परिवर्तनशी...