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लोकतंत्र के महापर्व में संवाद की शालीनता अपरिहार्य

लोकतंत्र के महापर्व में संवाद की शालीनता अपरिहार्य

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- हृदयनारायण दीक्षित आम चुनाव की घोषणा के साथ आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू हो गई है। सामान्य संवाद की भाषा बदल गई है। शब्द आक्रामक हो गए हैं। संवाद की शालीनता समाप्त हो रही है। कायदे से दलतंत्र को लोकतंत्र की मजबूती के लिए काम करना चाहिए। संवाद की भाषा परस्पर प्रेमपूर्ण होनी चाहिए। दल परस्पर शत्रु नहीं हैं। वे लोकतांत्रिक व्यवस्था को आमजनों तक ले जाने और मजबूत करने के उपकरण हैं। लेकिन शब्द अपशब्द हो रहे हैं। वैचारिक आधार पर दलों के मध्य बहस नहीं है। प्रधानमंत्री तक को अपशब्द कहे गए हैं। भारत के आम चुनाव दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्री उत्सव हैं। लेकिन अपशब्दों के प्रयोग वातावरण को उतप्त कर रहे हैं। आचार संहिता में निर्देश दिए गए हैं कि सभी दल और उम्मीदवार जाति, सम्प्रदाय, पंथिक समूह या भाषाई समूहों के मध्य अलगाववाद बढ़ाने से दूर रहेंगे। परस्पर विद्वेष और तनाव बढ़ाने वाले शब्दों का प्रयोग नही...