जैव विकास में दशावतार की अवधारणा और डार्विन
- प्रमोद भार्गव
एनसीईआरटी अर्थात राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम से नवीं एवं दसवीं कक्षाओं की विज्ञान पुस्तकों से चार्ल्स डार्विन के जैव विकास के सिद्धांत को हटा दिए जाने पर विवाद गहरा रहा है। देश के लगभग 1800 वैज्ञानिक और शिक्षकों ने एनसीईआरटी की इस पहल की आलोचना करते हुए इसे शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा उपहास बताया है। दरअसल भारत के बुद्धिजीवियों का एक वर्ग जब भी किसी पाश्चात्य सिद्धांत या इतिहास के भ्रामक प्रसंगों को हटाए जाने की बात छिड़ती है तो उसके पक्ष में उठ खड़े होते हैं। जबकि चार्ल्स डार्विन ने जब जीवों के विकासवाद का अध्ययन करने के बाद 1859 में ‘ऑरिजिन ऑफ स्पीशीज‘ अर्थात ‘जीवोत्पत्ति का सिद्धांत‘ दिया तब इसका ईसाई धर्मावलंबियों और अनेक ईसाई वैज्ञानिकों ने जबरदस्त विरोध किया था। क्योंकि इसमें मनुष्य का अवतरण बंदर से बताया गया था।
अलबत्ता जब ...