Friday, November 22"खबर जो असर करे"

Tag: culture

विकसित भारत के लिए पर्यटन

विकसित भारत के लिए पर्यटन

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- गजेन्द्र सिंह शेखावत एक दशक पहले तक भारतीय पर्यटन को पर्यटन क्षेत्र में अन्य देशों के समकक्ष या उनसे आगे स्थापित करने के लिए भी एक ब्रांड एम्बेसडर की जरूरत सामान्य बात थी। जिस तरह अन्य देश अपने देश के पर्यटन के प्रचार-प्रसार के लिए सुविख्यात फिल्मी सितारों और सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों पर विज्ञापन राशि खर्च कर रहे थे उसी तरह यहाँ भी यह महसूस किया गया कि अतुल्य भारत को एक नया रूप दिए जाने की आवश्यकता है। पिछले एक दशक और पिछले 100 दिनों से भारत के केन्द्रीय पर्यटन मंत्री के रूप में कार्य करते हुए मैंने सभी को यह कहते सुना कि इस देश के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि हमारे बीच एक ऐसे नेता हैं जो न केवल हमारे प्रधानमंत्री हैं बल्कि वे अतुल्य भारत के सबसे बड़े वैश्विक ब्रांड एम्बेसडर और हिमायती हैं। अपनी हर भूमिका में, वे भारत की बेहतरी के लिए काम करते हैं। एक प्रधानमंत्री के रूप में वे निरंत...
भारतीय दर्शन और संस्कृति जैसी श्रेष्ठता कहीं नहीं

भारतीय दर्शन और संस्कृति जैसी श्रेष्ठता कहीं नहीं

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- अरुण कुमार दीक्षित स्वामी विवेकानंद ने भारतीय दर्शन को दुनिया के देशों में प्रचारित किया। उन्होंने पूरे विश्व को यह सन्देश देने का प्रयास किया कि भारतीय दर्शन और संस्कृति जैसी श्रेष्ठता कहीं नहीं है। हम पूरी पृथ्वी पर एक श्रेष्ठतम राष्ट्र हैं। हम सभी सभ्यताओं का स्वागत करते हैं। हम गहन तमस से भरे विश्व को मार्ग दिखा सकते हैं। हम सब भारत के लोग एक गौरवशाली संस्कृति के वाहक हैं। हमारा सामना विश्व की भोग विलास में लिप्त संस्कृतियां नहीं कर सकती। हम भारत के लोग बर्बर नही हैं। हम भिन्न भाषा-भाषी संस्कृतियों, बोलियों को आत्मसात करते हुए चलते हैं। भारत की संस्कृति में हमेशा उच्चतम विचारों को प्राथमिकता दी गयी है। हम किसी को मतान्तरित कर अपनी संख्या नहीं बढ़ाते। हम युद्ध के माध्यम से साम्राज्य का विस्तार करने वाली संस्कृति के पुत्र नहीं हैं। हम पूरी दुनिया को परिवार मानने वाले हैं। हमारा राष्ट्र...
मनोरंजन का बाजार, संस्कृति पर प्रहार

मनोरंजन का बाजार, संस्कृति पर प्रहार

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- सुशील शर्मा आजकल देश में मनोरंजन का बाजार भारतीय संस्कृति पर तगड़ा प्रहार कर रहा है। धारावाहिकों और मनोरंजन शोज में द्विअर्थी-भद्दे संवाद और दृश्य खुल्लम-खुल्ला सुनाए और दिखाए जा रहे हैं। सिनेमा के परदे पर शीला-मुन्नी जैसे गानों की भरमार है। युवा रास्ते में आती-जाती लड़कियों पर इन गानों के माध्यम से फब्तियां कसते हैं। फिल्म और टेलीविजन ऐसी चीजों की जानकारी देने लगते हैं जिन्हें बच्चे सही अर्थों में जानने के बजाय गलत तरीके से अपनाने लगते हैं। इसी का परिणाम जघन्य यौन अपराध के रूप में बार-बार प्रकट हो रहा है। अश्लीलता परोसे जाने की इस प्रवृत्ति के साथ फूहड़ विज्ञापनों की भरमार ने सुसभ्य समाज की चिंता बढ़ा दी है। इनमें सामान्यतः नारी की फूहड़ छवि प्रस्तुत की जा रही है। इसका विरोध हमेशा शून्य रहा है। तभी तो यह सब धड़ल्ले से चल रहा है। यदि समय रहते इन अश्लील विज्ञापनों, पोस्टरों, पत्रिकाओं ...
लोक-कला-संस्कृति के प्रसार में मालवा उत्सव का विशेष महत्वः मुख्यमंत्री डॉ. यादव

लोक-कला-संस्कृति के प्रसार में मालवा उत्सव का विशेष महत्वः मुख्यमंत्री डॉ. यादव

देश, मध्य प्रदेश
- मालवा उत्सव में मप्र, गुजरात एवं महाराष्ट्र के लोक नृत्य दलों ने दी मनमोहक प्रस्तुतियां भोपाल (Bhopal)। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव (Chief Minister Dr. Mohan Yadav) ने कहा कि लोक कला और संस्कृति के व्यापक प्रसार में मालवा उत्सव (Malwa Utsav) का विशेष महत्व है। मालवा उत्सव (Malwa Utsav) को और विस्तार दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि मालवा की कला और संस्कृति का दुनियाभर में व्यापक प्रसार हो, इसके लिए भी विशेष प्रयास किए जाएंगे। कला और संस्कृति से एक से दूसरे देश को तथा मानव सभ्यता को जोड़ने में विशेष महत्व रहता है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव शनिवार देर शाम इंदौर में आयोजित मालवा उत्सव को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि माँ अहिल्या द्वारा स्थापित संस्कृति की ध्वजपताका आज भी फहरा रही है। उन्होंने कहा कि उज्जैन महालोक में ठोस पत्थर की प्रतिमाएं स्थापित की जा रही है। कार्यक्रम में जल संसाधन मंत्...
भारतीय नृत्य संस्कृति की संसार ने हमेशा सराहना की

भारतीय नृत्य संस्कृति की संसार ने हमेशा सराहना की

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- डॉ. रमेश ठाकुर नृत्य दुनिया भर की संस्कृतियों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। नृत्य एक कला भी है और शिक्षा भी। मानव शरीर को स्वस्थ रखने की साधना भी। आज ‘अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस’ है जिसकी शुरुआत 29 अप्रैल 1982 से हुई थी। आज का ये खास दिन नृत्य कला के महान सुधारक जीन-जॉर्जेस नोवरे की जन्म स्मृति पर आधारित है। जहां तक भारतीय नृत्यों की बात है, दुनिया भर में हमेशा से मशहूर रहे हैं। भरतनाट्यम और कथक नृत्य का आज भी कोई जवाब नहीं। इंग्लैंड की महारानी हों, या पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो से लेकर कई देशों के प्रमुखों का पसंदीदा कथक नृत्य ही रहा। कथक नृत्य की वेशभूषा आज भी लोगों को आकर्षित करती है। आज का ये विशेष दिन यूनेस्को के अंतरराष्ट्रीय थिएटर इंस्टीट्यूट की अंतरराष्ट्रीय डांस कमेटी ने 29 अप्रैल को नृत्य दिवस के रूप में सर्वसम्मति से मनाने का निर्णय लिया था। वर्ष-2023 में ‘अं...
देश में समरसता का माहौल

देश में समरसता का माहौल

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- बृजनन्दन राजू भारत की संस्कृति राममय है। राम राष्ट्रनायक हैं। भारत के जीवन दर्शन में सर्वत्र राम समाये हुए हैं। भारत की आस्था, भारत का मन, भारत का विचार, भारत का दर्शन, भारत का चिंतन, भारत का विधान राम से है। भारत का प्रताप, प्रभाव व प्रवाह भी राम हैं। राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से राम की सर्वव्यापकता के दर्शन हुए। भारत के नगर, ग्राम, गिरी और कंदराओं से लेकर दुनिया के 125 देशों में रहने वाले हिन्दुओं ने उत्सव मनाया। युवाओं के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम से बढ़कर कोई आदर्श नहीं हो सकता। राम ने अपने जीवन का स्वर्णिम समय 'तरुणाई' को राष्ट्र के काम में लगाया। राम का सारा जीवन प्रेरणा से भरा है। राम की राजमहल से जंगल तक की यात्रा को देखें तो कठिनतम परिस्थितियों में भी वह अविचल रहे। उन्होंने समाज में सब प्रकार का आदर्श स्थापित किया। आदर्श भाई,आदर्श मित्र,आज्ञाकारी पुत्र, आज्ञाकार...
चुनावी पिटारा कितना सहारा !

चुनावी पिटारा कितना सहारा !

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- गिरीश्वर मिश्र चुनाव को लोकतंत्र का पवित्र महोत्सव कहा जाता है । अब इसकी संस्कृति का पूरी तरह से कायाकल्प हो गया है । चुनाव आने के थोड़े दिन पहले गहमा-गहमी तेज होती है और अंतिम कुछ दिनों में हाईकमान अपने कंडिडेट का ऐलान करता है । साथ ही भूली बिसरी जनता की सुधि आती है। चुनाव आते ही सभी राजनीतिक दल अपना-अपना जादू का पिटारा खोलते है और उनकी सोई हुई जन-संवेदना जागती है । आहत जनता को राहत देने के लिए कमर कसते हुए सभी दल सुविधाओं की फेहरिस्त तैयार करने में जुट जाते हैं । रेल , सड़क , स्कूल , अस्पताल , नौकरी , कर्ज यानी जीने के लिए जो भी चाहिए उस सूची में शामिल किया जाता है । चुनावी राज्यों में पुलिस द्वारा करोड़ों रुपयों की जब्ती और शराब की आवाजाही आम बात हो गई है जिनका कोई दावेदार नहीं मिलता । यह सब इसलिए होता है ताकि जनता को अधिकाधिक मात्रा में लुभाया जा सके । जन-प्रलोभनों की यह अजीबोगरीब...
मध्य प्रदेश: संस्कार, संस्कृति, साहित्य में उन्मेष और उत्कर्ष

मध्य प्रदेश: संस्कार, संस्कृति, साहित्य में उन्मेष और उत्कर्ष

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- डॉ. मयंक चतुर्वेदी भारत अपने गौरवशाली ''स्व'' को जानने के नए संदर्भों में 75 वर्ष का उत्सव मना रहा है। हिमालयी क्षेत्र से आरंभ हुआ ''उन्मेष'' देश के हृदय प्रदेश आ पहुंचा है। 'उन्मेष' का यह दूसरा संस्करण है। पहला आयोजन शिमला में गत वर्ष हुआ ही है। आप पूछ सकते हैं आखिर ये उन्मेष है क्या? वस्तुत: धरती पर सूर्य की पहली किरण पड़ते ही जगत जाग उठता है। जागना अर्थात अंतस की जागृति, क्रिया के रूप में जागना और विचारों में जाग जाना है। आप जब जागे रहते हैं तो आपके बाहर से लेकर अंदर तक सभी कुछ सचेत होता है। आप हर क्रिया की प्रतिक्रिया देने में सक्षम रहते हैं। इसी जागने को संस्कृत में 'उन्मेष' कहा गया। जीवन में 'उन्मेष' आ जाए तो फिर किसी और की आवश्यकता नहीं रहती । यह 'उन्मेष' जीवन से जुड़ी हर जरूरत को पूरा करने में सक्षम है। जैसे कि जो जागा हुआ है, फिर उसे किस का भय ! स्वभाविक है जो जागा हुआ है, 'उत...
नई शिक्षा नीति और सीखने-सिखाने की संस्कृति का विकास

नई शिक्षा नीति और सीखने-सिखाने की संस्कृति का विकास

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- गिरीश्वर मिश्र कहा जाता है धरती पर ज्ञान जैसी कोई दूसरी पवित्र वस्तु नहीं है। भारत में प्राचीनकाल से ही न केवल ज्ञान की महिमा गाई जाती रही है बल्कि उसकी साधना भी होती आ रही है। इस बात का असंदिग्ध प्रमाण देती है काल के क्रूर थपेड़ों के बावजूद अभी भी शेष बची विशाल ज्ञान राशि। अनेकानेक ग्रंथों तथा पांडुलिपियों में उपस्थित यह विपुल सामग्री भारत की वाचिक परम्परा की अनूठी उपलब्धि के रूप में वैश्विक स्तर पर अतुलनीय और आश्चर्यकारी है। यह हमारे लिए सचमुच गौरव का विषय है कि आज जैसी उन्नत संचार तकनीकी के अभाव में भी मानव स्मृति में भाषा के कोड में संरक्षित होकर यह सब जीवित रह सका। इस परम्परा में मनुष्य के जीवन में होने वाले आरम्भ में विकास और उत्तर काल में ह्रास की अकाट्य सच्चाई को स्वीकार करते हुए मनुष्य को जीने के लिए तैयार करने की व्यवस्था की गई थी। ज्ञान केंद्रित भारतीय संस्कृति के अंतर्गत अभ...