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आचार्य शंकर: राष्ट्रीय एकता एवं सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रवर्तक

आचार्य शंकर: राष्ट्रीय एकता एवं सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रवर्तक

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- वीरेन्द्र सिंह परिहार जगतगुरु श्री शंकराचार्य का जन्म उस समय हुआ था, जब बौद्ध धर्म पतनात्मक स्थिति की ओर जा रहा था, धर्म के नाम पर अनाचार फैल रहा था। विडम्बना यह कि अनेक वर्षों तक राजाश्रय प्राप्त होने के चलते बौद्धों को सत्ता का स्वाद लग चुका था। विदेशियों ने ढलती हुई बौद्ध सत्ता का उन्नायक बनकर भारत में प्रवेश किया और बौद्धों ने बिना सोचे-समझे उनका सहयोग किया। लेकिन प्रखर राष्ट्रीयता का पोषक हिन्दू समाज इसे सहन न कर सका, जिसके चलते कुमारिल भट्ट द्वारा प्रज्ज्वलित चिंगारी शंकराचार्य के रूप में दावानल बनकर प्रगट हुई- जिसने सभी झाड़-झंखाड़ को भस्मीभूत कर दिया, जिसके चलते देश एवं धर्म की रक्षा हुई। पुत्र की प्राप्ति पर भगवान शंकर का वरदान मानकर उनके पिता शिवगुरु ने उनका नाम शंकर रखा। शंकर की असाधारण बुद्धि को देखते हुए शिवगुरु ने तीन वर्ष की उम्र में ही उनका अक्षराभ्यास आरंभ करा दिया। पांच...
महाकाल लोक और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद

महाकाल लोक और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद

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- डॉ दिलीप अग्निहोत्री भारतीय सभ्यता और संस्कृति दुनिया में सर्वाधिक प्राचीन है। सभ्यताओं के प्रादुर्भाव के साथ वह तिरोहित भी हुई। मध्यकाल में आक्रांताओं के आस्था के स्थलों पर बेहिसाब हमलों के बाबजूद यह शाश्वत संस्कृति गरिमा के साथ कायम है। स्वतंत्रता के बाद प्रथम उप प्रधानमंत्री बल्लभ भाई पटेल के प्रयासों से सोमनाथ मंदिर का भव्य निर्माण हुआ। उनके बाद ऐसे सभी विषयों को सांप्रदायिक घोषित कर दिया गया। नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद इस प्रचलित राजनीति में बदलाव हुआ। सांस्कृतिक विषयों को देश की अर्थव्यवस्था से जोड़ा गया। तीर्थाटन और पर्यटन अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में समाहित हुए। पौराणिक और ऐतिहासिक स्थलों के विश्वस्तरीय विकास का संकल्प लिया गया। यह महत्वपूर्ण है कि विश्व के अन्य हिस्सों में जब मानव सभ्यता का विकास भी नहीं हुआ था तब हमारे यहां राष्ट्र प्रादुर्भाव हो चुका था। ऋग्वे...

गौरक्षपीठ, योगी और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद

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- दिलीप अग्निहोत्री उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को संन्यास और राष्ट्रसेवा का भाव गौरक्षपीठ से विरासत में मिला है। इस वैचारिक और ऐतिहासिक पीठ का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के जागरण में उल्लेखनीय योगदान है। पीठाधीश्वर के रूप में योगी आदित्यनाथ इसका सतत संवर्धन कर रहे हैं। यही नहीं, मुख्यमंत्री पद के संवैधानिक दायित्व का निर्वाह भी वह इसी भाव से कर रहे हैं। यही कारण है कि प्रदेश में संस्कृति और विकास के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य हो रहे हैं। गौरक्षपीठ करीब दो दर्जन शिक्षण संस्थानों का संचालन करती है। इन सभी में ज्ञान-विज्ञान के साथ ही भारतीय संस्कृति के प्रति स्वाभिमान की प्रेरणा दी जाती हैं। योगी आदित्यनाथ के मार्गदर्शन में गौरक्षपीठ सामाजिक सेवा और जन जागृति के कार्यों का विस्तार दे रही है। संविधान की परिधि में संचालित यह प्रकल्प आमजन के जीवन को सरल बना रहे हैं। इसका निहितार्थ ...

भाजपा की रगों में दौड़ता है सांस्कृतिक राष्ट्रवाद

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- डॉ. दिलीप अग्निहोत्री भाजपा अपने जन्मकाल से ही सुशासन और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रति समर्पित है। यही उसका वैचारिक आधार और संबल है। इसके बल पर ही उसने जनता का विश्वास प्राप्त किया है। केंद्र और उत्तर प्रदेश में लगातर दूसरी बार पूर्ण बहुमत से उसे सरकार बनाने का अवसर मिला है। वस्तुतः जनसंघ की स्थापना ही इसी वैचारिक अवधारणा के साथ हुई थी। प्रारंभिक दशकों में उसका संख्याबल बल कांग्रेस के मुकाबले बहुत कमजोर था। मगर इस विचारधारा के आधार पर उसने देश की राजनीत में महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है। श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन में वह अन्य सभी पार्टियों से अलग रही। इससे उसका जनाधार बढ़ा ही नहीं अपितु उसने देश की राजनीति की दिशा और दशा ही बदल दी। भाजपा सरकार ने सुशासन की मिसाल कायम की है। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार है। यह डबल इंजन सरकार है। इस दौरान अनेक ऐतिहासिक कार्य हुए। सदियों से लंबित ...