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कृषि उपज मण्डी व्यवस्था के कारण किसानों को मिल रहा फसलों का उचित मूल्य: शिवराज

कृषि उपज मण्डी व्यवस्था के कारण किसानों को मिल रहा फसलों का उचित मूल्य: शिवराज

देश, मध्य प्रदेश
- कृषि विपणन बोर्ड के स्वर्ण-जयंती महोत्सव में शामिल हुए मुख्यमंत्री चौहान भोपाल (Bhopal)। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Chief Minister Shivraj Singh Chouhan) ने कहा कि प्रदेश में कृषि उपज मण्डी (agricultural produce market) की उत्तम व्यवस्था (Best arrangement) के कारण किसानों (farmers ) को उनकी फसल का उचित मूल्य (Fair price crops) मिल पा रहा है। यह सब आप सबके निरंतर प्रयासों का ही परिणाम है कि मण्डी समितियों ने जिन्सों की आवक और मण्डी की आय में अब तक की सर्वाधिक वृद्धि हासिल की है। मैं प्रदेश के सभी किसानों और मण्डी बोर्ड की पूरी टीम को बधाई और शुभकामनाएँ देता हूँ। मुख्यमंत्री चौहान शुक्रवार को प्रशासन अकादमी में मध्यप्रदेश राज्य कृषि विपणन बोर्ड के स्वर्ण-जयंती महोत्सव में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने दीप प्रज्ज्वलन और कन्या-पूजन के साथ महोत्सव का विधिवत शुभारंभ किया। कार्यक्रम में क...
आओ थोड़ा सा तुम फागुन हो जाओ

आओ थोड़ा सा तुम फागुन हो जाओ

अवर्गीकृत
- प्रभुनाथ शुक्ल खेतों में फसलों की रंगत बदल गई है। सरसों के पीले फूल खत्म हो गए हैं। सरसों फलियों से गदाराई है। मटर और जौ की बालियां सुनहरी पड़ने लगी हैं। जवान ठंड अब बूढ़ी हो गई है। हल्की पछुवा की गलन गुनगुनी धूप थोड़ा तीखी हो गई है। घास पर पड़ी मोतियों सरीखी ओस की बूंदें सूर्य की किरणों से जल्द सिमटने लगी हैं। प्रकृति के इस बदलाव के साथ फागुन ने आहिस्ता-आहिस्ता कदम बढ़ा दिया है। टेशू , गेंदा और गुलाब फागुन की मस्ती में खिलखिला रहे हैं। अमराइयों में आम में लगे बौरों की मादकता अजीब गंध फैला रही है। भौंरे कलियों का रसपान कर वसंत के गीत गुनगुना रहे हैं। पेड़ों से पत्ते रिश्ते तोड़ वसंत के स्वागत में धरती पर बिछ जाने को आतुर हैं। प्रकृति और उसका एहसास फागुन के होने की दस्तक देता है। लेकिन इंसान बिल्कुल बदल चुका है। वह फागुन को जीना नहीं चाहता है। वह प्रकृति से साहश्चर्य नहीं रखना चाहता है। ...

बेमौसम की भारी बरसात: फसलों को हुए नुकसान की कैसे हो भरपाई

अवर्गीकृत
- डॉ. रमेश ठाकुर खेती किसानी अब तुक्का हो गई है, सही सलामत फसल कट जाए तो समझो बड़ी गनीमत है। वरना, कुदरत का प्रकोप उन्हें नहीं छोड़ता। बीते तीन वर्षों से लगातार बेमौसम बारिश ने किसानों की कमर तोड़ रखी है। जब फसल पक कर खेतों में खड़ी होती है तभी बारिश हो जाती है और उसे बर्बाद कर देती है। किसान चाहकर भी कुछ नहीं कर पाते। अन्नदाताओं को बेमौसम की बारिश ने एक बार फिर तबाह कर दिया। किसान खेतों में जाकर बर्बाद हुई फसलों को मायूसी भरी निगाहों से देख रहे हैं। तेज बौछारों ने हजारों-लाखों हेक्टेयर फसल चौपट कर दी। कई महीनों की मेहनत पर क्षण भर में पानी फिर गया। अपने खेतों में बेचारे असहाय खड़े होकर कुदरत के कहर से बर्बाद होती फसलें देखते रहे। किसानों के लिए उनकी फसलें नवजात शिशु समान होती हैं जिसे वह छह महीने अपनी औलाद की तरह पालता-पोसता है। जब यही फसल नुमा बच्चे उनकी आंखों के सामने ओझल हो जाएं, तो उनके ...