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जीवन-सौन्दर्य के लिए चाहिए संस्कृति संवर्धन

अवर्गीकृत
- गिरीश्वर मिश्र संस्कृति लोक-जीवन की सतत सर्जनात्मक अभिव्यक्ति का पुंज होती है जिसका इतिहास, साहित्य, शिक्षा, विविध कला रूपों, स्थापत्य, शिल्प तथा जीवन-शैली आदि के साथ घनिष्ठ संबंध होता है। संस्कृति को उन उदात्त जीवन मूल्यों के रूप में भी देखा जाता है जो आदर्श रूप में प्रतिष्ठित होते हैं और समाज की गतिविधि के लिए उत्प्रेरक का काम करते हैं। बहु आयामी संस्कृति की सत्ता उन अनेकानेक मूर्त और प्रतीकात्मक परंपराओं में रची-पगी विभिन्न रूपों में सामाजिक जीवन में उपस्थित रहती है। वह वाचिक प्रथाओं और व्यवहारों के प्रत्यक्ष अभ्यासों के रूप में पीढ़ी-दर-पीढ़ी संक्रमित होते हुए आगे बढ़ती है। संस्कृति के सभी पक्षों में समय के साथ परिवर्तन भी अनिवार्य रूप से घटित होते हैं। दूसरी संस्कृति(यों) के साथ सहयोग और (या) संघर्ष की प्रवृत्ति वाले प्रभाव भी जन्म लेते हैं। उनको लेकर क्रिया- प्रतिक्रिया भी होती है।...