Friday, September 20"खबर जो असर करे"

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सृष्टि का आधार है परिवार, इसे बिखरने न दें

सृष्टि का आधार है परिवार, इसे बिखरने न दें

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- सियाराम पांडेय 'शांत' पूरी दुनिया 15 मई को विश्व परिवार दिवस मनाएगी। संयुक्त राष्ट्र संघ की पहल पर यह सहमति बनी थी कि साल में एक दिन विश्व परिवार दिवस मनाया जाए। वर्ष 1994 में पहली बार अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस मनाया गया था। तब से अब तक यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। हालांकि विश्व परिवार दिवस मनाने का प्रस्ताव तो संयुक्त राष्ट्र संघ में 1989 में ही पारित हो गया था लेकिन इसे व्यावहारिक धरातल पर उतरने में पांच साल लग गए। खैर, देर आयद-दुरुस्त आयद। परिवार को जोड़े रखने का, उससे जुड़े रहने की पहल का ही नतीजा है कि दुनिया भर में हर साल अलग-अलग थीम पर विश्व परिवार दिवस मनाया जाता है। लेकिन, इस तरह के नवोन्मेष की जरूरत क्यों पड़ी, यह अपने आप में विचार का विषय है। भारत तो सदियों से पूरी धरती को अपना परिवार मानता रहा है। उसने वसुधैव कुटुम्बकम का मंत्र यूं ही नहीं दिया था। कोलंबस और वास्को डिगामा की खो...
गीता और सृष्टि का वास्तविक रहस्य

गीता और सृष्टि का वास्तविक रहस्य

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- ह्रदय नारायण दीक्षित गीता दर्शन ग्रंथ है। इसका प्रारम्भ विषाद से होता है और समापन प्रसाद से। विषाद पहले अध्याय में है और प्रसाद अंतिम में। अर्जुन गीता समझने का प्रभाव बताते हैं- 'नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादान्मयाच्युत।' हे कृष्ण आपके प्रसाद से 'त्वत्प्रसादान्मयाच्युत' मोह नष्ट हो गया। प्रश्न उठता है कि यह विषाद क्या है? युद्ध के प्रारम्भ में ही अर्जुन के सामने कठिनाई आती है। उसके अपने घर के लोग ही युद्ध तत्पर सामने खड़े हैं। सगे सम्बंधी हैं। वह तय नहीं कर पाता कि क्या सगे सम्बंधियों को मार कर युद्ध में जीतकर राज्य लिया जाना चाहिए। अर्जुन विषाद ग्रस्त है। वह अपनी मनोदशा बताता है- 'सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति। हमारा पूरा शरीर कंपकपी में है। हमारा मुंह सूख रहा है। हे कृष्ण मैं युद्ध नहीं करूंगा।' यहां अर्जुन निश्चयात्मक हो गया है। पहले बाएं या दाएं जाने की बात थी। वह अब ...