औरत-मर्दः बाहरी एकरूपता
- डॉ. वेदप्रताप वैदिक
न्यूयार्क टाइम्स ने अपने मुखपृष्ठ पर एक खबर छापी है कि अमेरिका में कई आदमी अब औरतों का वेश धारण करने लगे हैं और औरतें तो पहले से ही वहां आदमियों की वेशभूषा पहनते रही हैं। उनका कहना है कि कपड़ों में भी औरत-मर्द का भेद क्या करना? वह जमाना लद गया जब औरतों के लिए खास तरह की वेशभूषा, जेवर और जूते-चप्पल पहनना अनिवार्य हुआ करता था। उन्हें घर से बाहर निकलने की अनुमति नहीं होती थी। घूंघट और बुर्का लादना आवश्यक माना जाता था।
हमारे संस्कृत नाटकों को देखें तो कालिदास और भवभूति जैसे महान लेखकों की रचनाओं में उनकी महिला पात्र संस्कृत में नहीं, प्राकृत में संवाद करती थीं। महिलाओं को पुरुषों के समान न हवन करने का अधिकार था और न ही जनेऊ धारण करने का! वेदपाठ करना तो उनके लिए असंभव ही था। आर्यसमाज के प्रवर्तक महर्षि दयानंद सरस्वती की कृपा से भारतीय स्त्रियों को इन बंधनों से मुक्ति मिली...